दिन के कारोबार के लिए एक परिचय

मुझे दलाल का उपयोग क्यों करना चाहिए?

मुझे दलाल का उपयोग क्यों करना चाहिए?

सच्चे रचनाकार की पहचान उसके शब्द-उसकी शैली हैं, न कि उसकी तस्वीर

१९४७ में सात दशक पहले, दिलीप कुमार की एक फिल्म आई थी- ‘जुगनू’. उसमें मोहम्मद रफी ने अभिनय भी किया था. एक सीन में दिलीप साहब और रफी साहब एक साथ हैं और रफी साहब गा रहे हैं: ‘वो अपनी याद दिलाने को एक इश्क की दुनिया छोड गए, जल्दी में लिपस्टिक भूल गए, रुमाल पुराना छोड गए.’

गुलजार साहब ने ‘बंटी और बबली’ के कजरारे वाले गीत में ‘पर्सनल से सवाल’ का उपयोग करने से दशकों पहले हिंदी फिल्मों में अंग्रेजी शब्दों का अनायास ही उपयोग हो रहा था. गुलजार से एक बार ए.आर. रहमान ने ‘साथिया’ के ओ हमदम वाले गीत में सनम शब्द का उपयोग करने के लिए कहा था. गुलजार ने पूछा: क्यों? तब रहमान ने कहा: मैने ट्यून कंपोज करते समय डमी शब्द डाले हैं जिसमें सनम शब्द आया था जो कि अब मेरी जबान पर चढ गया है, उसके बिना मुझे गीत अधूरा लगेगा. गुलजार साहब ने कहा: रहमान, मुझे दलाल का उपयोग क्यों करना चाहिए? मैं इस शब्द का उपयोग अपने गीत में नहीं करूंगा. रहमान ने पूछा: क्यों? क्या इसका कोई उल्टा अर्थ भी निकलता है? गुलजार साहब कहते हैं : नहीं. लेकिन सनम शब्द हिंदी फिल्मी गीतों में इतनी बार घिसा गया है कि उसकी चमक अब बिलकुल फीकी पड चुकी है.

गुलजार कहते हैं कि ‘बलम’ का हाल भी ऐसा ही है, लेकिन ग्रामीण परिवेश का जब गीत होता है तब मुझे ‘बलम’ शब्द’ का उपयोग अगर करना पडे तो जरूर करूंगा.

जीवन में आप क्या क्या करते हैं, यह जितना महत्वपूर्ण है उतना ही महत्वपूर्ण है आप क्या क्या नहीं करते हैं. जीवन की ये बात हर व्यक्ति के काम के लिए भी लागू होती है. लिखने के काम पर भी यह बात खरी उतरती है.

‘हर रचनाकार का मिजाज हमेशा उसके काम में झलकता है- चाहे वह सिंगर हो, चित्रकार हो, संगीतकार हो,’ ऐसा गुलजार ने नसरीन मुन्नी कबीर को दिए अत्यंत दीर्घ इंटरव्यू की किताब जिया जले में कहा है: ‘आपकी लेखन शैली से, शीर्षक और उपशीर्षक बनाने की शैली से ही भी आप पहचान जाते हैं. आप कैसे शब्दों का चयन करते हैं. (और किन शब्दों का उपयोग नहीं करते, इससे आप अनूठे बनकर दूसरों की तुलना में एक स्तर ऊँचे उठ जाते हैं.’

जावेद अख्तर ने एक बार गुलजार साहब से कहा था: ‘मैं जब कोई गीत सुनता हूँ तब उसकी पहली पंक्ति से ही बता देता हूँ कि ये गीत आपने लिखा है.’

गुलजार साहब कहते हैं कि,‘मेरे लिए ये बडा कॉम्प्लीमेंट था, क्योंकि मुझे पता है कि किसी भी रचनाकार के लिए उसकी अलहदा आवाज खडी करने का काम कितना कठिन होता है. जावेद साहब कवि हैं और बहुत ही अच्छे गीतकार हैं, इसीलिए उनके शब्दों का मूल्य मेरे लिए बहुत बडा है. मैंने उनकी कविता पढी है और मुझे भी पता चल जाता है कि फलॉं गीत उन्होंने लिखा है. उदाहरण के लिए उन्हें उपमा अलंकार का उपयोग करना बहुत ही अच्छा लगता है (एक लडकी को देखा तो ऐसा लगा, जैसे खिलता गुलाब, जैसे शायर का ख्वाब, जैसे उजली किरण, जैसे बन में हिरन, जैसे चॉंदनी रात, जैसे नग्मे की बात, जैसे मंदिर में हो एक जलता दिया…..’ मैं इंदीवर, हसरत जयपुरी और शकील बदायुनी के गीतों को भी पहचान सकता हूँ. वे कौन से शब्द पसंद करते हैं, उसके आधार पर ध्यान में आ जाता है कि कौन सा गीत किसने लिखा है.’

गुलजार इस पडाव पर कविता के अनुवाद की प्रक्रिया के बारे में एक महत्वपूर्ण बात करते हैं. (कविता के अनुवाद के बारे में गुजराती के लेखक सुरेश दलाल ने एक बार अपने अनूठे अंदाज में लिखा था:‘कविता का अनुवाद करना इत्र की एक शीशी से दो शीशियॉं भरने जैसा कार्य है. थोडी सी सुगंध तो कम हो ही जाती है.’ सुरेशभाई की इस अभिव्यक्ति को कई उठाईगिरों ने इस तरह से इस्तेमाल किया है मानो वे उन्हीं के शब्द हों. भगवान उनका भला करें. गुलजार साहब कहते हैं कि ‘किसी कविता का अनुवाद करते समय मैं उस कवि ने जो चित्र खडा किया है उससे बंधता नहीं हूँ. मैं तो कविता के शब्द मुझमें जो भाव पैदा करते हैं, उन भावों की उंगली थाम कर अनुवाद करता हूँ. वह शब्दश: अनुवाद नहीं होता. कवि अपनी कविता में क्या कहना चाहता है, काव्य का केंद्रीय विचार क्या है, उसके आधार पर अनुवाद होता है.’

अब सुनिए अधिक महत्वपूर्ण बात: ‘अनुवाद करते समय प्रास मिलाने की माथापच्ची करने के कारण आपको ऐसे ऐसे शब्दों का उपयोग करना पडता है जो बिलकुल ही अनुकूल नहीं होते. कविता का अर्थ, उसके पीछे निहित विचार महत्वपूर्ण होता है, न कि प्रास (यानी रदीफ-काफिये का मेल).’

गुलजार-नसरीन मुन्नी कबीर की बातचीत का दौर कल आगे बढाने से पहले आज के लेख की शुरुआत में गुलजार साहब ने जो बात की उसे विस्तारित करते हैं, थोडी सी निजी बात करके. मार्केटिंग के जमाने में कई लेखक अपनी पुस्तकों पर अपनी बडी बडी तस्वीरें छपवाने का आग्रह करने लगे थे, ये उस जमाने की बात है. कई तो अंतिम पेज पर संपूर्ण रूप से अपनी तसवीर का उपयोग करने का आग्रह करते हैं तो कई लोग प्रकाशक पर दबाव डालते हैं कि अंतिम पेज पर नहीं, बल्कि पूरे मुखपृष्ठ पर छा जाय इस तरह से अपनी फोटो छपवाना चाहते हैं.

मेरा दृढ विश्‍वास है कि जिस प्रकार ऐक्टर को अपने विचार उसके पाठकों तक नहीं पहुँचाने होते हैं, उसे अपनी पहचान अपने चेहरे के माध्यम से दर्शकों तक पहुँचानी होती है. इसीलिए अभिनेताओं की तस्वीर जितनी भी छपे, वह कम होती है. उनके प्रोफेशन के लिए उनकी तस्वीरें छपें, छपती रहें, ये जरूरी होता है, लेकिन लेखक-कवि-उपन्यासकार-साहित्यकार-पत्रकार को अपना चेहरा पाठकों तक नहीं पहुँचाना होता बल्कि उसे अपने विचार अपनी अनूठी शैली में पाठकों तक पहुँचाने होते हैं. इसीलिए मेरी पुस्कों के विभिन्न प्रकाशकों ने जब भी मेरी फोटो मेरी पुस्तक में छापने की बात की, मैने उनसे कहा है कि: ‘मैं थिएटर में या किसी सार्वजनिक स्थान पर जाऊँ और पाठक मुझे देखकर पचहना ले तो मुझे संतोष मिलने का एहसास बिलकुल नहीं होगा. लेकिन भेलपुरी या सींग चना खाते समय पाठक को खोलकर पढने की आदत होती है और मेरी कॉलम के हिस्सेवाला कागज या मेरे उपन्यास के किसी अध्याय के पृष्ठ को किसी मैगजीन के पन्ने पर पढकर, और उसमें से मेरा नाम कट गया हो, तब भी वह पढकर बता दे कि ये लेखन और किसी का नहीं हो सकता, बल्कि सौरभ शाह का ही हो सकता है, तो मुझे रीयली खुशी होगी.’

खैर पसंद अपनी अपनी. अब तो सोशल मीडिया का जमाना है. आपकी डीपी या आपके प्रोफाइल पिक्चर्स के कारण लोग आपको पहचान लेते हैं- ऐसा तर्क मेरे प्रकाशक ने हाल में दिया था, इसीलिए अंत में मैने अपनी फोटो छापने की अनुमति दे दी, लेकिन अब भी गुलजार साहब की बात तो सौ प्रतिशत सत्य ही है. रचनाकार का अपनी रचना के जरिए पहचाना जाना ही उसकी असली महत्ता है.

एक स्मार्ट ब्रोकर बनने में आपका तरीका कैसे बात करें

व्यक्तिगत रूप से और पेशेवर रूप से आप जीवन में कैसे काम करते हैं यह मुझे दलाल का उपयोग क्यों करना चाहिए? निर्णय लेने में संचार कौशल के लिए एक महान भूमिका है। कितनी अच्छी तरह आप लोगों के समूह के साथ संवाद करते हैं, जो आप के साथ सौदा करते हैं, काफी हद तक, यह निर्धारित करते हैं कि आप भविष्य में उनके साथ किस प्रकार के संबंध विकसित करते हैं। हालांकि, यह कौशल उन लोगों के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जो अंदर हैं, मैं क्या कहता हूं, "बात कर रहे व्यवसाय" खराब संचार कौशल के साथ, एक वकील, एक अभिनेता या संपत्ति दलाल की कल्पना करना मुश्किल है, जो जीवन में बहुत सफलता हासिल कर रहा है। यहां कुछ युक्तियां दी गई हैं जो आपको एक अच्छे से एक महान कम्युनिकेटर तक ले जाती हैं: उन्हें रोगी सुनें दें आप विशेषज्ञ हैं और आप इसे सब जानते हैं लेकिन जब मैं आपको घर के खरीदार के रूप में समझाता हूं, मेरे मन में बहुत सी बातें होती हैं I उदाहरण के लिए, मुझे कागजात की संख्या से बहुत परेशान किया जा सकता है, जिसे मैं इसे अपने बैंक में जमा कर दूँगा। मैं भी उनकी संपत्ति खरीद में लोगों के कई मामलों में धोखा होने के बहुत से सुनते हैं मुझे दलाल का उपयोग क्यों करना चाहिए? विशेषज्ञ के रूप में, आपको मुझे रोगी सुनवाई देना चाहिए। इससे पहले कि मैं बहुत सारे सवाल पूछे बिना आपको भरोसा करना शुरू कर दूं, मुझे आपके अंदर मेरा आत्मविश्वास बनाना होगा। यह एक दीर्घकालिक गठबंधन हो सकता है भोलेदार घर खरीदार को "केवल एक ग्राहक" के रूप में न मानें, जिनसे आपको मौद्रिक लाभ प्राप्त करना है। यदि आप मुझसे विनम्र हैं, उदाहरण के लिए, मैं, सभी संभावनाओं में, अपने नाम की सिफारिश करूँगा जब मेरे मित्र या परिचित लोग संपत्ति में निवेश करना चाहते हैं। एक सफल भागीदारी जीवनकाल संघों की ओर जाता है। और, खरीदार के साथ आपका संचार उस अवधि को तय करेगा, जिस पर यह अंतिम रहेगा। ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है हो सकता है कि एक हज़ार विवरण हो जो आप खरीददारों के साथ साझा नहीं करना चाहते, क्योंकि आप अपने लाभों के लिए कुछ मुद्दों पर भ्रम का इस्तेमाल कर सकते हैं। या, आप महसूस कर सकते हैं कि समय सही नहीं है और वार्ताएं एक और उन्नत स्तर पर हैं जब कुछ विवरण सबसे बाद के बाद प्रकट किए जाते हैं। हमें एक बात मत भूलना खरीद के साथ किए जाने के बाद अधिकांश घर खरीदारों वित्त स्नातक बन जाते हैं कुछ समय पर भ्रम की स्थिति स्पष्ट होगी। उन्हें पता होगा कि आपने उन बिंदुओं को अंधेरे में क्यों रखा था। इससे आपके बारे में एक नकारात्मक राय बनाने वाले खरीदार हो सकते हैं उन्हें बताएं कि आपने इसे अर्जित किया है खरीदार और विक्रेता के बीच सौदा करने के लिए आपने बहुत मुश्किल काम किया है और कोई रास्ता नहीं है कि आप अपने कट में बातचीत करने के लिए तैयार हैं। काफी उचित हालांकि, अपने इरादों को ऐसे तरीके से ज्ञात करें जो आपके क्लाइंट को अपमान न करें। इस बिंदु पर एक संचार विफलता आप खर्च हो सकता है प्रिय यह भी पढ़ें: आरईआरए भारत में एक ब्रोकर की भूमिका को मजबूत कर सकता है

आफताब जैसी क्रूरता, ठिकाने लगाने का भी वही तरीका; क्यों पत्नी-बेटे ने अंजन के किए 22 टुकड़े

दिल्ली में आफताब जैसी क्रूरता का एक और मामला सामने आया है। पूर्वी दिल्ली के पांडव नगर में पुलिस ने एक महिला और उसके बेटे को गिरफ्तार किया है। महिला ने बेटे के साथ मिलकर पति के 22 टुकड़े कर दिए।

आफताब जैसी क्रूरता, ठिकाने लगाने का भी वही तरीका; क्यों पत्नी-बेटे ने अंजन के किए 22 टुकड़े

दिल्ली में आफताब जैसी क्रूरता का एक और मामला सामने आया है। पूर्वी दिल्ली के पांडव नगर में पुलिस ने एक महिला और उसके बेटे को गिरफ्तार किया है। आरोप है कि महिला ने बेटे के साथ मिलकर पति के 22 टुकड़े कर डाले। आफताब की तरह उन्होंने भी शव के टुकड़ों को फ्रिज में रखा और धीरे-धीरे सभी को ठिकाने लगा दिया। श्रद्धा की तरह अंजन दास की हत्या भी करीब 6 महीने पहले ही हुई थी, जिसका खुलासा अब हुआ है।

पुलिस को जून के महीने में कुछ मानव अंग मिले थे। इसके बाद कुछ और जगहों से अंग मिले तो पुलिस ने तहकीकात शुरू की। हालांकि, अभी तक खुलासा नहीं हो पाया था। श्रद्धा मर्डर केस के बाद केस की जांच तेज हुई तो पुलिस सूबतों के तार जोड़ते हुए मृतक की पत्नी पूनम और बेटे दीपक तक पहुंच गई। बताया जा रहा है कि पूनम और दीपक ने अंजन दास के टुकड़े करने के बाद शव को फ्रिज में रखा। रात को वह पूर्वी दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में अंगों को फेंकेत रहे।

डीसीपी क्राइम अमित गोयल ने बताया कि पूनम की यह तीसरी शादी थी जो उसने 2017 में अंजन दास के साथ की। 2016 में दूसरे पति कल्लू की मौत हो गई थी। दीपक कल्लू का ही बेटा था और एक बेटी भी है। पूनम बिहार की रहने वाली थी और उसके पहली शादी बिहार में हुई थी लेकिन पति ने उसे छोड़ दिया था।अंजन दास की शादी भी बिहार में हो चुकी थी। अंजन के 8 बच्चे थे। दिल्ली में दोनों की मुलाकात के बाद दोनों नजदीक आए और शादी कर ली थी। पूनम के कुछ गहने बेचकर अंजन ने पैसे बिहार में परिवारवालों को भेज दिए थे। इसको लेकर झगड़े होते थे। पूनम को यह भी शक था कि अंजन उसकी बेटी और बहू पर भी बुरी नजर रखता था। पुलिस ने बताया कि पूनम और दीपक ने शराब में मिलाकर नींद की गोलियां दीं और फिर उसका गला काट दिया।

अंजन मुझे दलाल का उपयोग क्यों करना चाहिए? दास की हत्या का मामला ऐसे समय पर सामने आया है जब हाल ही में श्रद्धा मर्डर केस के खुलासे ने पूरे देस को हैरान कर दिया। आफताब ने अपनी प्रेमिका श्रद्धा का गला दबाकर हत्या की और 35 टुकड़े करके शव को ठिकाने लगा दिया। पुलिस इस केस की जांच में जुटी है और सबूतों को तलाश रही है।

किसानों के आंदोलन पर जो भी चुप पाए जाएंगे.. इतिहासों के कालखंड में सब कायर कहलाएंगे

यह अजब देश है जहां शराब, सौंदर्य प्रसाधन, जहरीले कोल्ड ड्रिंक्स, विलासिता की सामग्रियां बनाने वाले लोग, मक्कार राजनेता, सियासी दलाल, रिश्वतखोर अफसर और परजीवी साधु-संत अरबों-खरबों में खेलते हैं और देश का अन्नदाता किसान अपने उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए सड़कों पर पुलिस की बर्बरता झेल रहा है।

जहां क्रिकेट की एक-एक गेंद पर अरबों का सट्टा लगता है और वाज़िब दाम के अभाव में किसान अपने आलू-टमाटर सड़कों पर फेंकने को मजबूर ,होते हैं ! क्या हमें आश्चर्य नहीं होता कि हमारे देश के कृषि कानून भी किसानों से संवाद किए और उनकी मुश्किलें जाने बगैर बना दिए जाते हैं ? अगर सरकार को लगता है कि उसके बनाए नए कृषि कानून किसानों के उत्पादों को अधिक मूल्य दिलाने के लिए लाए गए हैं तो इसकी क्या गारंटी है कि आने वाले दिनों में मंडियों को निष्प्रभावी कर बड़े व्यावसायी कृषि उत्पादों के मनमाने मूल्य ख़ुद नहीं तय करने लगेंगे ?

सरकार समय-समय पर फसलों के जो न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है, उनकी कानूनी हैसियत क्या है ? किसानों का संदेह दूर करने के लिए समर्थन मूल्य को बाध्यकारी और उनके उल्लंघन को संज्ञेय तथा अजमानतीय अपराध बना देने में सरकार को क्या मुश्किल है ? किसानों की मांग पर अनाजों के अलावा जल्दी नष्ट होने वाली सब्जियों के लिए भी समर्थन मूल्य क्यों नहीं निर्धारित किए जा सकते ? ऐसा क्यों लग रहा है कि सरकार किसानों के साथ नहीं, कृषि व्यापार में उतरने वाले बड़े व्यवसायियों के साथ खड़ी है ?

अन्नदाता किसानों के संदेह और उनकी मांग नाजायज़ नहीं है। यह वक़्त उनके साथ खड़े होने का है। अगर किसी को लगता है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन राजनीति से प्रेरित है तो भी ऐसी राजनीति का स्वागत होना चाहिए ☺️
-Dhruv gupt

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