दलाल कैसे बने?

उनके साथ होने का कुछ काल्पनिक कहानियाँ गढ ले, अब भले ही हकीकत में वे आपको अपने दरबान से भी ज्यादा हिराकत भरी नजरों से देखें लेकिन बेफिक्र होकर अपना गुणगान करते हैं क्यो कि गहराई में जाकर सच्चाई पता करने की फुर्सत किसे होती है? सामने वाले शख्सियत को भी अपना भौकाल बनाए रखने के लिए भी भीड की जरूर होती है,ऐसे मे आप की इज्जत बनते हुए बच जाती है।
मुट्ठीभर लोग ही होते हैं बाजार में सफल, दिग्गज की राय
भारतीय शेयर बाजार लंबा सफर तय कर चुका है. मॉडर्न इंफ्रास्ट्रक्चर और सिस्टम के बावजूद, पूरा लाभ सिर्फ चार पक्षों को ही मिल रहा है.
मॉडर्न इंफ्रास्ट्रक्चर और सिस्टम के बावजूद, पूरा लाभ सिर्फ चार पक्षों- नियामक, स्टॉक एक्सचेंज, टैक्स विभाग और ब्रोकर्स को मिल रहा है. कारोबारी कल भी निराश थे. आज भी उनका हालत वैसी ही है. सिर्फ चुनिंदा लोग ही बाजार में सफल हुए हैं.
इस मुट्ठीभर लोगों की सूची में सभी निवेशक हैं, कोई कारोबारी नहीं है. भारत में शेयर कारोबार में सफलता महज 1 फीसदी लोगों को ही मिलती है. अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों है? जवाब साफ है, यह हमारी रगों में नहीं है.
हम तीन तरह से चीजों को सीख सकते हैं: जन्म के साथ ही वह हमारे डीएनए से आए; स्कूल के दौरान वह हमारी शिक्षा का हिस्सा हो या फिर हमारी घरेलू संस्कृति का अंग हो; और युवाअवस्था में किताबों में, फिल्मों में, या लोगों को दुनिया भर में देखकर.
जैसे जमैका के धावक छोटी दौड़ और अफ्रीकी धावक मैराथन दौड़ के महारथी माने जाते हैं, उसी तरह सिर्फ पढ़ाई और कोचिंग के जरिए सब कुछ सीख पाना संभव नहीं होता. हम अपनी युवा पीढ़ी से निवेश की उम्मीद करते हैं, जबकि हमारे पूर्वजों ने इस पर कभी ध्यान ही नहीं दिया.
कई खानदानों ने अपनी संपत्ति बाजार में लुटा दी और यही वजह है कि कई औद्योगिक घरानों में निवेश प्रतिबंधित है. कारोबार तो छोड़िए, हमें हमारे स्कूल, कॉलेज और घर में भी कभी भी निवेश का कोई पाठ सीखने को नहीं मिलता.
युवा पीढ़ी अपनी समझ को नष्ट कर रही है. फिल्म 'उड़ता पंजाब' की तरह, शेयर बाजार का नशा भी निवेशकों की नब्ज पर हावी हो रहा है. शेयर ट्रेडिंग किसी लत से कम नहीं है. यह भी एक प्रकार का नशा हो सकता है और कई लोग कारोबार के लिए अपना सबकुछ लुटा देते हैं.
मुझे याद है, एक बार मैं आईआईएम-अहमदाबाद में लेक्चर दे रहा था. तब एक छात्र ने मुझे बताया कि वह अपनी पिता की पेंशन की रकम से शेयर बाजार में कारोबार करना चाहता है. मैने उसका हाथ पकड़ा और उससे वादा करवाया कि वह ऐसा नहीं करेगा.
मेरी पत्नी अंग्रेजी पढ़ाती है. अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में उसने मुझसे पूछा कि क्या हमारा बेटा उनकी पेंशन की रकम से दलाल कैसे बने? शेयरों में कारोबार कर सकता हैं? यह सुन कर मैं हैरान रह गया. यह बंदर के हाथ में बंदूक देने के समान है.
सेबी को बिना कोर्स किए शेयर कारोबार की अनुमति नहीं देनी चाहिए. यह जरूरी है. यदि ऐसा नहीं हुआ तो तमाम बिचौलिए और उनके कर्मचारी मोटी कमाई करते रहेंगे और बाकी 99 फीसदी छोटे कारोबारी अपने गुजर-बसर के लिए भी जूझते रहेंगे.
बिना समझ के यदि कोई बाजार से करोड़पति बनना चाहता है, तो उसे अरबों रुपये के साथ शुरुआत करनी चाहिए. शेयर बाजार एकदम अलग खेल है. आप बिना घाटा खाए इसे नहीं समझ सकते. इसमें समझ के साथ-साथ धैर्य, टाइमिंग और अनुशासन की खास जगह है.
ट्रेडिंग आपके वित्तीय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. आप सिर्फ एक ही सौदे में अपने 50 साल की कमाई लुटा सकते हैं. आज के दौर में ब्रोकर टीवी और इंटरनेट विज्ञापनों के जरिए युवाओं को कारोबार के लिए आकर्षित कर रहे हैं. यह उन्हें बरगलाने का एक तरीका है.
इस दाम में खरीदें, इतने में बेचें और इतना स्टॉप लॉस रखें. यह तो भगवान भी नहीं बता सकते. यह सिर्फ उनके लिए बिजनेस हासिल करने का एक माध्यम है. मुझे राज कपूर की फिल्म 'श्री 420' याद आती है, जिसमें वो एक स्कीम के तहत किसी निश्चित तिथि पर 100 रुपये में घर बेचने का वादा करते हैं.
जब उनसे किसी ने पूछा कि वे 100 रुपये में घर कैसे बेचेंगे, तो उन्होंने कहा कि वे नहीं बेच सकते. वे सिर्फ सपने का सौदा दलाल कैसे बने? कर रहे हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो वे मूर्ख बनाने का सौदा था. इसी तरह शेयर बाजार है. सीड कैपिटल के नाम पर लोग बाजार में घुस जाते हैं.
उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि कारोबार में कैपिटल जुटाने के लिए उन्हें ब्रांडेड कपड़े, साधारण मोबाइल, महंगे रेस्त्रां में खाना और खुद के वाहनों का त्याग करना चाहिए. यदि वे ऐसा नहीं करेंगे, तो उनके पास कोई पूंजी शेष ही नहीं रहेगी. कम समय में करोड़पति बनने का सपना सबसे बड़ा धोखा है.
लोगों को निवेश और कारोबार के बीच का फर्क नहीं पता. रोम एक दिन में नहीं बना था, मगर हिरोशिमा और नागासाकी एक ही पल में तबाह जरूर हो गए थे. बाजार आपकी अवधारणा पर नहीं चलता है. यह जुआ भी नहीं है. यदि आपको जुआ खेलना है, तो दलाल पथ नहीं, गोवा जाइए.
शुरुआती दिनों में कलकत्ता स्टॉक बाजार में लोग सिर्फ पांच अक्षरो - त, थ, द, ध, न, में ही कारोबा कर लेते थे. 'त' का अर्थ था तरुणी, 'थ' का अर्थ था थोड़ी मात्रा, 'द' का अर्थ था दलाल, 'ध' का इस्तेमाल धनवान के लिए होता था, जबकि 'न' का मतलब था कि कोई नुकसान के बाद पैसे देने दलाल कैसे बने? से इनकार कर रहा है.
ट्रेडिंग से ज्यादा खतरनाक है फ्यूचर्स ट्रेडिंग, जो आपके जीवन को निष्क्रिय और कारोबार को विकलांग बना देती है. एक सच यह भी है कि ज्यादातर फ्यूचर्स कारोबारी कम उम्र में ही रक्तचाप के मरीज बन जाते हैं. यह जीवन आपका है और आप ही को तय करना है कि आपको खुशियां कैसे चाहिए.
नोट: यह लेख विजय केडिया के विचार को व्यक्त करता है. केडिया एक जाने-माने निवेशक हैं. ये बातें उन्होंने लंदन बिजनेस स्कूल में दिए गए अभिभाषण के दौरान कहीं थीं.
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छुट भईया नेता या समाजसेवी कैसे बने?
डॉ.धीरज फुलमती सिंह
व्यंग
मुबंई: छुट भईया नेता और समाज सेवक इंसानो की यह वह नश्ल है,जो हर गली,नुक्कड,चौराहे पर आपको आसानी से घूमती नजर आ जाएगी। कभी किसी चाय की टपरी पर तो कभी पान की बखाड पर झक्क सस्ते सफ़ेद कुर्ते मे खडे हुए नजर आ जाता है। ये शहर मे भी मिलते हैं और गांव में भी पाए जाते हैं। ये हर जगह उपलब्ध होते हैं।
छुट भईये नेताओ और समाज सेवकों की जमात में शामिल होना है तो अपने चेले-चपाटों को जमा करें। चेले चपाटे कहां से मिलेंगे, इस बात दलाल कैसे बने? के लिए निश्चित रहे,भारत मे बहुत बेकारी और बेरोजगारी है, आसानी से मिल जाएगे।फिर किसी सस्ते,सुंदर, टिकाऊ से दलाल तमीज की भाषा मे जिसे “सलाहकार- कंस्लटेंट” कहते हैं,को पकड कर सबसे पहले एक सामाजिक संस्था बना लें।
खुद उस संस्था का अध्यक्ष बन जाए, अपनी पत्नी या पति,भाई को सचीव बना लें। उसके कुछ कार्ड छपवा लिजिए, जिस पर आप का तकल्लुफ राष्ट्रीय अध्यक्ष लिखा हो,अब भले ही आपको पड़ोसी जानता न हो, भाव न देता हो वैसे भी कोई पड़ोसी किसी को भाव देते कहा है?
इस बात की जरा सी भी चिंता न करें,लेकिन हर जगह अपने को राष्ट्रीय अध्यक्ष जताने की कोशिश मे लगे रहे। चेले चपाटो को हडकाए रहें,उनमे भौकाल बनाए रहे। सभी राष्ट्रीय अध्यक्ष यही करते हैं। निश्चित रहे, आप भी कोई अलग और अजूबा नही कर रहे हैं। भले ही आप की सामाजिक संस्था मे कुल मिलाकर वही गिनती के दो चार सदस्य हो,कोई और न हो लेकिन विजिटिंग कार्ड पर हमेशा अपने नाम के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष लिखवाए, ऐसा करने से भौकाल अच्छा बनता है।
किसी प्रिटींग प्रेस वाले को धर कर समय समय पर अपने ही पैसे से अपना फोटो लगा बैनर बनवा लिया करें, पैसे कम पडे तो अपने चेलों चपाटों को उनका भी फोटो चस्पां करने का लालच देकर कॉट्रिब्यूशन मे पैसे इकट्ठा करें। हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा। लो बन गये, लोकल लिडर। उसके बाद समय बे समय बडी-बडी हस्तियों से अच्छे और वयक्तिगत संबंध होने का गुणगान करते हैं।
उनके साथ होने का कुछ काल्पनिक कहानियाँ गढ ले, अब भले ही हकीकत में वे आपको अपने दरबान से भी ज्यादा हिराकत भरी नजरों से देखें लेकिन बेफिक्र होकर अपना गुणगान करते हैं क्यो कि गहराई में जाकर सच्चाई पता करने की फुर्सत किसे होती है? सामने वाले शख्सियत को भी अपना भौकाल बनाए रखने के लिए भी भीड की जरूर होती है,ऐसे मे आप की इज्जत बनते हुए बच जाती है।
अपने जन्म दिन पर एक सौ- देढ सौ रूपये का गुलदस्ता और साथ मे सत्तर अस्सी रूपये का एक शाल खरीद ले। कई बार कुछ मूर्ख किसीम के लोग आपकी नजरों में चढने के लिए खुद ही सौ पचास का गुलदस्ता भेट करने लग जाते हैं। ऐसे लोग हर समाज में मिल जाते हैं, ईश्वर बहुत दयालु है, उसने ऐसे बहुत से लोगो को बनाया है। फिर चार-आठ लोगो से लेंते-देते फोटो खिंचवाने और उसी को अपने फेसबुक और वाट्सअप समूह में बांट दे, भेज दें। फिर अपने चेले चमचों से अपनी तारीफ के पुलिंदे बंधवा ले। फिर देखिएगा देश की बडी बडी हस्तियां भी आपके आगे पानी भरते नजर आएंगे। ये चेले चमचे समां बांधने मे बडे माहिर होते हैं।
बडे-बडे नेताओं के साथ हमेशा फोटो खिचते- खिंचवाते रहे। नेता आपको जानता हो या नही,फिकर नॉट लेकिन सोशल मीडिया पर उनके जन्म दिन की शुभेच्छा देते रहे,ऐसा करने से आस पास के लोगो और इलाके में रुतबा बढता है।
जैसे ही कोई चुनाव नजदीक आए,लोगो को कहना शुरु कर दिजिए कि आप चुनाव लड़ने के जरा भी इच्छुक नही है,अब भले ही अंदर से चुनाव लड़ने की इच्छा जोर मार रही हो, ऐसा कहने से लोगो मे जिज्ञासा पैदा होती है फिर धीरे से,पीछे से अपने चमचों को सोशल मीडिया पर अपनी मुनादी करवाने के लिए कहिए कि आप भावी विधायक, पार्षद है। आपकी अपनी बात भी रह जाएगी और बेइज्जती भी नही होगी । भले ही चुनाव के वक्त कोई पार्टी आपको घास भी न डालें लेकिन तब तक इलाके में भौकाल तो बन ही जाता है।
साल मे एकाध बार लिट्टी चोखा, फाफडा जलेबी की पार्टी जरूर दे,ज्यादा क़रीबी लोगों को मटन मछली की खैरात एक बार दे दे। इसमे पैसे ज्यादा खर्च नही होते लेकिन भौकाल बहुत बनता है। एक बात और स्थानिय नकली पत्रकारों को पकड कर रखें,इनकी कीमत ज्यादा नही होती है, ये दो-ढाई सौ रुपये मे हमेशा बिकने को तैयार रहते हैं, ऐसे बहुत से तथाकथित नकली पत्रकार आपको अपने इलाके में आसानी से मिल जाएगे।
पुलिस स्टेशनों,सरकारी दफ्तरों मे अपने आस पास के लोगो का काम करवाते रहें,लोग आप से दलाल कैसे बने? खुश रहेंगे मगर पीछे से अपना कमीशन लेना न भूलें। आखिर समाज सेवकी और नेतागिरी भी तो चमकानी है, बिना कमीशन के पैसो के काम कैसे चलेगा भला ? अगर काम नहीं भी कर सके तो कोई बात नहीं है, बस बंदर की तरह इधर उधर उछलते कूदते रहे ताकि लोगो को लगे कि आप काम करने की कोशिश मे लगे हैं जैसे वो दिल्ली का मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हमेशा करते रहता है। बस बिलकुल वैसे ही एक्टिग करते रहना है।
और हाँ, काम हो या ना हो, फोटो खिंचवाना न भूले। ये फोटो सोशल मीडिया पर हमेशा चेंपते रहें। ऐसे फोटो आपका भौकाल बनाने मे हमेशा काम आते हैं।….लो जी आप तो समाज सेवा मे नेता बन गये। कितना आसान है ना,छुट भईया समाज सेवक और नेता बनना?
जय हिंद
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जानें कौन हैं वरुण धवन की होने वाली पत्नी नताशा दलाल, कैसे हुई वरुण से मुलाकात?
बॉलीवुड अभिनेता वरुण धवन आजकल अपनी शादी को लेकर काफी चर्चा में बने हुए हैं. दरअसल वरुण धवन आज नताशा दलाल के साथ शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं।
नई दिल्लीः बॉलीवुड अभिनेता वरुण धवन आजकल अपनी शादी को लेकर काफी चर्चा में बने हुए हैं. दरअसल वरुण धवन जल्द ही अपनी लेडी लव नताशा दलाल के साथ शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं। वरुण और नताशा की शादी आज यानी 24 जनवरी को है।
natasha dalal
वरुण धवन संग नताशा की शादी की तैयारियां काफी पहले से चल रहीं हैं. वहीं इन दोनों की शादी दलाल कैसे बने? का लोगों को बड़ी ही बेसब्री से इंतजार है। लेकिन इसी बीच वरुण के कई फैंस ऐसे है जो नताशा के बारे में जानना चाहते है आखिर वो कौन हैं और उनकी वरुण धवन से मुलाकात कैसे हुई ? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब हम लेकर आएं हैं।
natasha dalal
बता दें की नताशा दलाल एक स्थापित फैशन डिजाइनर हैं। नताशा का खुद का ब्रांड लेबल है। उन्होंने अपनी पढ़ाई न्यूयॉर्क से की है। न्यूयॉर्क से पढ़ाई पूरी करने के बाद नताशा साल 2013 में भारत लौटी थीं। वरुण और नताशा बचपन से ही दोस्त रहे हैं। इन दोनों को कई पार्टीज और बॉलीवुड की गैदरिंग्स में भी साथ देखा जाता रहा है।
लड़की की कीमत पांच सौ! ‘500 रुपए दे दो और लड़की ले जाओं’…, पुलिस को ही ग्राहक समझ बैठे दलाल….
जबलपुर : मध्यप्रदेश के जबलपुर में एक बार फिर सेक्स रैकेट का पर्दाफाश हुआ है। शहर के गढ़ा थाना अंतर्गत बेदीनगर इलाके में स्थित एक मकान में ये देहव्यापार का धंधा चल रहा था। पुलिस ने दबिश देकर 4 महिला और पुरूष को आपत्तिजनक हालत में गिरफ्तार किया है। इसके साथ ही सेक्स रैकेट संचालक को भी हिरासत लेकर पूछताछ की जा रही है।
दरअसल, पुलिस को लंबे समय से शिकायत मिल रही थी कि गढ़ा थाना अंतर्गत बेदी नगर में एक मकान में देह व्यापार चल रहा है। इसके बाद पुलिस ने प्लानिंग के साथ इस ठिकाने पर दबिश दी। पुलिस ने एक जवान को ग्राहक बनाकर बेदी नगर में स्थित मकान पर भेजा। ग्राहक बनकर गए पुलिस जवान ने शख्स से बात की तो उसने 500 से 1000 तक में लड़की उपलब्ध कराने की बात कहीं। पुलिस जवान ने घर के अंदर जाकर देखा तो दो अलग-अलग कमरे बने थे। जिसमें एक युवक और युवती आपत्तिजनक हालत में थे, जबकि दूसरे कमरे में एक युवती बैठी हुई थी।
पुलिस ने इस सेक्स रैकेट का पर्दाफाश करते हुए 4 महिला और पुरूष को आपत्तिजनक हालत में गिरफ्तार किया है। वहीं मौके पर कई आपत्तिजनक सामान भी मिला है। इसके साथ ही पुलिस सेक्स रैकेट संचालक को भी हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है।