विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?

विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?
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विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?
चीन में व्याप्त मंदी के प्रभाव से निपटने के क्रम में भारत क्या कोशिशें कर सकता है, इस संबंध में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं अजय शाह
इस बात की काफी संभावना है कि अगले कुछ सालों तक चीन की स्थिति कमजोर बनी रहे। भारत के लिए इसके क्या निहितार्थ हैं? इससे एक ऐसा वैश्विक वित्तीय संकट आने की आशंका है जो भारत समेत तमाम उभरते बाजारों को प्रभावित करेगा। चीन की समस्या वैश्विक कारोबारी कीमतों पर दबाव बनाएगी। यह बात भारत में कारोबारी उत्पादकों के मुनाफे को प्रभावित करेगी जबकि खरीदार इससे फायदा पाएंगे। चीन मॉडल को भारत में बहुत अधिक सराहना नहीं मिलने वाली, यह बात बेहतर नीति निर्माण के लिहाज से महत्त्वपूर्ण है।
चीन में खासी निराशा का भाव है। वर्ष 2014 के मध्य से ही वहां पूंजी का पलायन बड़े पैमाने पर हो रहा है। अनुमान के मुताबिक 18 महीनों में वहां से करीब 15 खरब डॉलर की पूंजी बाहर गई है। चीन का बुर्जुआ वर्ग भविष्य को लेकर बहुत आशान्वित नहीं है। यही वजह है कि वे अपनी पूंजी और अपने परिजन को नुकसान से दूर कर रहे हैं। इसका संबंध विनिमय दर नीति से भी है। एक वक्त जब केंद्रीय बैंक लगातार अधिमूल्यन कर रहा था तो जिस प्रकार पूंजी चीन में जा रही थी जब अधिमूल्यन के दौर में पूंजी उसी प्रकार बाहर जा रही है। निजी उद्यमों की बात करें तो उनके लिए भी पूंजी को चीन से बाहर ले जाना ही श्रेयस्कर है। राजनेता और नौकरशाहों को नियंत्रण कायम करना पसंद है। वे अस्थिरता के प्रबंधन में राजनीतिक आग्रह का ध्यान रखेंगे लेकिन यह प्रक्रिया भी नुकसान ही देगी।
वैश्विक वित्त को लेकर मुख्य धारा का नजरिया कहता है कि फिलहाल कोई बड़ा खतरा आसन्न नहीं है। बहरहाल, प्रत्येक अंतरराष्टï्रीय वित्तीय संकट अपनी तरह से अनूठा होता है। हम फिलहाल कई नजरिये से अलग हैं। वैश्विक इतिहास में किसी भी केंद्रीय बैंक ने मुद्रा बाजार के सटोरियों से निपटने के लिए मासिक 100 अरब डॉलर की राशि खर्च नहीं की होगी। वैश्विक इतिहास में कोई ऐसी अर्थव्यवस्था इतना बड़ा स्वरूप कभी ग्रहण नहीं कर पाई जो बाजार आधारित नहीं हो। उसे लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता है कि कौन सा हिस्सा या प्रक्रिया धोखा दे जाएगी।
भारत में हमें भी समस्याओं को लेकर विचार करना शुरू कर देना चाहिए और उन कारकों पर भी विचार करना चाहिए जो हमें प्रभावित कर सकते हैं। अतीत से भी ऐसे दो उदाहरण हमारे सामने हैं। ये हमें बताते हैं कि भविष्य को लेकर हमारी विचारधारा क्या हो। मोटे तौर पर भारत ने वर्ष 2008 के वित्तीय संकट से निपटने में अच्छा प्रदर्शन किया। जबकि वर्ष 2013 के छोटे संकट से निपटने में हमसे मामूली चूक हो गई। हमें इन विरोधाभासी अनुभवों से आगे विचार करना होगा।
वर्ष 2008 में हमने बाजार को उसका काम करने दिया और रुपये में भारी अवमूल्यन हुआ। वर्ष 2013 में हमने रुपये के अवमूल्यन का मुकाबला करने की ठानी और इस दौरान ब्याज दरों में 400 आधार अंक का इजाफा विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं? किया गया और कई सुधारों को पलट गया।
बाजार आधारित विनिमय दर का त्याग करने के कई नुकसान देखने को मिले: कंपनियों का दावा है कि सरकार ही उनके जोखिम का प्रबंधन करेगी। विनिमय दर प्रबंधन की लागत का भार अर्थव्यवस्था उठा रही है। जबकि उसके लाभ कंपनियों के जोखिम को कम करने तक सीमित हैं। फिलहाल जो हालात हैं उनमेंं आगे चलकर राजनीतिक दबाव और बढ़ेगा। मुद्रा में भारी गिरावट की स्थिति में कंपनियां पुन: सरकार से चाहेंगी कि वह इस पर कोई प्रतिक्रिया प्रकट करे। इस अरुचिकर परिदृश्य से बचने के लिए वर्ष 2013 के बाद विनिमय दर व्यवस्था से दूरी बनाने का क्रम समय रहते शुरू कर देना चाहिए।
भारत को प्रभावित करने वाला दूसरा कारक है कारोबार के लायक वस्तुओं की कीमत। चीन में अंकेक्षण और मुनाफे के विचार को कई कंपनियां ठीक से समझ नहीं पाई हैं। कई घाटे में चल रही कंपनियों को चालू रखा गया है। इनको सरकारी ऋण मिलता है। उत्पादन घटाने, कामगारों की छंटनी करने और फैक्टरियों को बंद करने के कदमों को अक्सर राजनीतिक बना दिया जाता है और यथास्थिति बरकरार रखने के लिए राजनीतिक दबाव बनाया जाता है। ये तमाम बातें मिलकर ऐसी फर्म को जन्म देती हैं जो लागत से कम दाम पर उत्पादन और बिक्री करती हैं।
चूंकि चीन का आकार इतना बड़ा है इसलिए उनकी कंपनियों के मूल्य निर्धारण का फैसला पूरी दुनिया पर नकारात्मक असर डालता है। चीन का संकट उन बाजारों में मूल्य और मुनाफे को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है जहां चीन की कंपनियों का दबदबा हो। भारत के लिए इसके दो निहितार्थ हैं। हमें संरक्षणवादी उपायों में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। इससे कारोबारी खुलेपन की ओर हमारे 25 सालों के सफर को झटका पहुंचेगा। घटता हुआ मुनाफा देश के निजी क्षेत्र में भुगतान संतुलन के संकट को बढ़ावा देगा।
इसके साथ ही, विभिन्न फर्म और उद्योग धंधे जो ये सस्ती कारोबारयोग्य वस्तुएं खरीदते हैं उनको लाभ होगा। दीर्घकालिक नजरिया रखने वाले लोगों के लिए यह एक अच्छा अवसर है, ऐसी वस्तुओं का भंडारण करने का। उदाहरण के लिए अगर कोई फर्म चीनी मशीनी उपकरणों की असेंबली लाइन तैयार करना चाहती है तो उसके लिए अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाने का यह सही समय है। इसलिए कि वर्ष 2016-2017 में इन मशीनों की कीमत खासी कम रहेगी। वित्तीय बाजारों के नजरिये से देखा जाए तो यह वक्त है निफ्टी और रुपये को लेकर बड़ी नकारात्मक गतिविधियों से संरक्षण हासिल करने का। अगर भारत विनिमय दर व्यवस्था में सुधार करने में सफल नहीं हुआ वृहद कारोबार के अवसर उत्पन्न होंगे।प्रभाव की आखिरी लहर विचारों की दुनिया से ताल्लुक रखती है। कई सालों तक चीन की सफलता ने भारत के नीतिगत क्षेत्र को आंदोलित रखा। ऐसा लगा कि चीन उदार लोकतंत्र और बाजार अर्थव्यवस्था के विकल्प के रूप में उभर रहा है। इसने राजनेताओं और नौकरशाहों द्वारा अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण, सरकार के नियंत्रण वाले निवेश, विनिमय दर नीति, वित्तीय व्यवस्था का निरोध, किसानों का जबरिया पुनर्वास, आदि की राह दिखाई। भारत के बारे में कहा जाने लगा कि वह चीन का अनुकरण करे।
यह भारत के मुख्य पथ से एक भटकाव था। भारत का मुख्य पथ है एक उदार लोकतंत्र का निर्माण, जिसमें कानून का शासन हो और जहां सुव्यवस्थित बाजार अर्थव्यवस्था हो। अब यह नकारात्मक प्रभाव उतना प्रभावी नहीं होगा और हम भारत को अधिक परिपक्व बाजार अर्थव्यवस्था बना सकेंगे। इसमें राज्य के काम को सीमित करते हुए बाजार की विफलताओं को संबोधित किया जाएगा। उनसे निपटने के लिए सरकारी क्षमताएं विकसित की जाएंगी।
TCI ग्लोबल टूलकिट: डिमांड जेनरेशन
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बढ़ते सबूत से पता चलता है कि सामाजिक और व्यवहार विज्ञान सिद्धांतों के आधार पर मांग पीढ़ी के हस्तक्षेप एक सैद्धांतिक आधार के बिना उन लोगों की तुलना में अधिक प्रभावी हैं, खासकर जब कई सिद्धांतों और अवधारणाओं पर विचार कर रहे हैं ।
एक मजबूत सिद्धांत व्यवहार पर प्रभावित कारकों की समझ प्रदान करके प्रभावी कार्यक्रमों को डिजाइन, लागू करने और मूल्यांकन करने में मदद कर सकता है, जिस तरह से व्यवहार परिवर्तन होता है और व्यवहार परिवर्तन हस्तक्षेप के लिए संभावित प्रवेश बिंदु।
विचार सिद्धांतों और ढांचे में से एक है जो अक्सर सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन प्रोग्रामिंग में उपयोग किया जाता है। विचार व्यक्तियों और समूहों के बीच संचार और सामाजिक संपर्क के माध्यम से एक समुदाय के माध्यम से सोचने के नए तरीके (या नए व्यवहार) को कैसे फैलाया जाता है।
विचार अवधारणा पकड़ है कि लोगों के कार्यों को दृढ़ता से अपने विश्वासों, विचारों, और भावनाओं ("विचारकारक कारकों") से प्रभावित कर रहे है और है कि उंहें बदलने के व्यवहार को बदल सकते हैं, गर्भनिरोधक व्यवहार सहित । इन विचारकारकों में से कुछ व्यक्तिगत हैं, जैसे कि एक व्यक्ति परिवार नियोजन के बारे में क्या जानता है और उन्हें कैसे लगता है कि यह उन्हें प्रभावित करेगा। दूसरों को सामाजिक मानदंडों को प्रतिबिंबित, जैसे लोगों का मानना है कि अंय लोगों को उनके बारे में सोचना होगा अगर वे परिवार नियोजन का उपयोग करें । एक व्यक्ति जितना अधिक सकारात्मक विचारवादी कारक रखता है, व्यक्ति वांछित व्यवहार को उतना ही अधिक करेगा।
सबूत क्या है?
नाइजीरियाई शहरी विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं? प्रजनन स्वास्थ्य पहल (NURHI) सफलतापूर्वक छह नाइजीरियाई शहरों में शहरी गरीबों के बीच आधुनिक गर्भनिरोधक के उपयोग को बढ़ाने के प्रयासों में विचार मॉडल का इस्तेमाल किया ।
आधाररेखा और मध्यावधि में गणना किए गए विचार स्कोर से पता चला है कि NURHI अभियान के लिए अधिक जोखिम वाली महिलाओं के बीच, विचार स्कोर शून्य एक्सपोजर वाली महिलाओं की तुलना में 13% अधिक थे। NURHI कार्यक्रम के संपर्क में महिलाओं को और अधिक विचारकारक कारकहोने की संभावना थी, और उच्च विचारीय कारकों के साथ महिलाओं को और अधिक गर्भ निरोधकों का उपयोग करने की संभावना थी । गर्भनिरोधक उपयोग को प्रभावित करने वाले इन संज्ञानात्मक, भावनात्मक और सामाजिक कारकों में परिवार नियोजन के बारे में सामाजिक मानदंडों की धारणाएं शामिल थीं; परिवार नियोजन के बारे में ज्ञान, दृष्टिकोण और विश्वास; और गर्भनिरोधक का उपयोग करने के लिए आत्म-प्रभावकारिता।
Contraceptive Prevalence at Midterm Among Married Women Who Were Not Using a Modern Method at Baseline, by Level of Ideation at Midterm, N = 1,992. Significance of differences across groups: P < .001. और जानो
नाइजीरिया में इन निर्धारकों की गतिशीलता को समझने के लिए, TCI गुणात्मक आंकड़ों और सेवा आंकड़ों के साथ संवर्धित आवधिक जनसंख्या आधारित सर्वेक्षणों को लागू करता है। जनसंख्या आधारित सर्वेक्षण के कई दौरों के आंकड़ों से पता चलता है कि सकारात्मक विचारात्मक कारकों (यानी, मनोसामाजिक कारकों जो व्यवहार की भविष्यवाणी करते हैं) वृद्धि करते हैं, गर्भनिरोधक उपयोग भी बढ़ता है। में प्रमुख विचारात्मक परिणामों की समीक्षा TCI -समर्थित राज्यों से पता चला है कि जो महिलाएं आत्मविश्वास से परिवार नियोजन के उपयोग की सिफारिश कर सकती हैं और अपने पति या पत्नी के साथ परिवार नियोजन पर चर्चा कर सकती हैं, वे गर्भ निरोधकों का उपयोग करने की संभावना से दो गुना अधिक हैं, और कथित आत्म-प्रभावकारिता ६२% तक विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं? बाधाओं को बढ़ाती है । विभिन्न गर्भनिरोधक तरीकों के पर्याप्त ज्ञान वाले लोगों को परिवार नियोजन का उपयोग करने की संभावना चार गुना अधिक होती है। इसी तरह, मिथकों की अस्वीकृति ने बाधाओं को 68% तक बढ़ा दिया, जबकि सामाजिक अनुमोदन ने बाधाओं को 65% तक बढ़ा दिया। इन निष्कर्षों का उपयोग करना, TCI एसबीसी कार्यक्रम गतिविधियों को विकसित करने के लिए राज्यों का समर्थन करता है जो विभिन्न विचारात्मक कारकों को संबोधित करते हैं जो किसी विशेष राज्य के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक हैं। यह धार्मिक और समुदाय के नेताओं, मीडिया चिकित्सकों और सेवा प्रदाताओं के साथ संलग्न करने के लिए विकसित संदेशों में परिलक्षित होता है ।
हाल ही में प्रशिक्षण और सगाई के साथ The Challenge Initiative कैसे मैं अपने समुदाय के सदस्यों के साथ संलग्न के रूप में मेरे जुड़ाव कौशल को बढ़ाने है सुधार हुआ है । जिस तरह से मैं और मेरे समुदाय के स्वयंसेवकों हमारे संभावित ग्राहकों के दृष्टिकोण बदल गया है क्योंकि हमारी क्षमता विकसित किया गया है । अब मैं चीजों को अलग ढंग से करने में सक्षम हूं क्योंकि अब मैं बहुत सारी चीजें जानता हूं जो मुझे अतीत में नहीं पता था । अब मेरे पास आईपीसी (पारस्परिक संचार) कौशल है जिसका उपयोग मैं समुदाय के सदस्यों के साथ उलझाने में करता हूं। एसबीसी दृष्टिकोण भी मुझे समझने में मदद करता है क्यों लोगों को एक निश्चित तरीके से व्यवहार करते है और कैसे दूसरे में उन चिंताओं को संबोधित करने के लिए अपने व्यवहार को बदलने के लिए । अब मैं अपने संदेशों को लक्षित करने के लिए विचार कारक है कि मेरे LGA में लोगों के लिए आम है पता । मैं समुदाय के सदस्यों के साथ बातचीत कर सकता हूं और अपने बेहतर आईपीसी कौशल के कारण अतीत की तुलना में अब बेहतर जानकारी प्रदान कर सकता हूं। यहां तक कि आईईसी सामग्री मिथकों और गलत धारणा को कंघी करने में मदद कर रही है जो मेरे समुदाय के सदस्यों को एफपी सेवाओं तक पहुंचने से सीमित करने वाले विचारों में से एक है इस प्रकार एफपी पर उनके ज्ञान में सुधार। मैं भी रेफरल कार्ड का उपयोग कर सेवा तेज के लिए पीएचसी के लिए लोगों को संदर्भित करते हुए मैं दस्तावेज़ और मेरी प्रगति को ट्रैक । यह पता है जो पीएचसी हर महीने का समर्थन करने के लिए मदद कर रहा है के रूप में मैं अब डेटा मैं उल्लेख कर सकते है."
-स्वास्थ्य शिक्षक, पठार राज्य प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल बोर्ड Jos दक्षिण एलजी में तैनात
भौगोलिक क्षेत्रों में, TCI कोच स्थानीय सरकारों को कैसे प्रभावी ढंग से डिजाइन और एसबीसी दृष्टिकोण को लागू करने के लिए । नीचे दी गई तालिका में विभिन्न एसबीसी दृष्टिकोणों के कई उदाहरण प्रदान किए गए हैं TCI - समर्थित भौगोलिक क्षेत्र।
श्वसन को प्रभावित करने वाले कारक , factors that affect respiration , श्वसन की दर (respiration rate in hindi)
(ii) सामान्यत: श्वसन की दर तापमान के समानुपाती होती है तथा इस समानुपाती की सीमा 5 से 30 डिग्री सेल्सियस तक होती है अर्थात 30 डिग्री सेल्सियस तापमान तक श्वसन की क्रिया में वृद्धि होती है परन्तु इससे अधिक तापमान होने पर पादपो में उपस्थित एंजाइम विकृति होने से श्वसन दर घटने लगती है।
नोट : पादपो में श्वसन की दर को “वांट हॉफ गुणांक” के द्वारा ज्ञात किया जाता है जिसके अनुसार प्रत्येक 10 डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि होने पर श्वसन की दर दुगुनी हो जाती है।
जैसे यदि श्वसन की दर Q 10 = 1 हो तो 10 डिग्री सेल्सियस ताप बढाने पर Q 10 = 2 हो जाती है।
ii. श्वसन दर तापमान के समानुपाती होने के कारण शीत ग्रहों में लम्बे समय तक फल तथा सब्जियाँ बिना सड़े संचित किया जाता है।
2. ऑक्सीजन : श्वसन की क्रिया हेतु पादपो में ऑक्सीजन एक महत्वपूर्ण कारक की भूमिका निभाता है क्योंकि वायवीय श्वसन के अंतर्गत ऑक्सीजन अंतिम इलेक्ट्रॉन ग्राही की तरह कार्य करता है अत: ऑक्सीजन की सान्द्रता कम होने पर पादपो के द्वारा वायवीय व अवायवीय दोनों प्रकार का श्वसन दर्शाया जाता है।
यदि बाह्य वातावरण में ऑक्सीजन की सांद्रता शून्य हो तो पादपो के द्वारा केवल अवायवीय श्वसन दर्शाया जाता है तथा ऐसी अवस्था में श्वसन गुणांक का मान अनन्त होगा अत: श्वसन की दर (R.O.R) –
R.O.R ∝ ऑक्सीजन की सान्द्रता
3. जल : पादपों के जीवद्रव्य का 90% जल से निर्मित होता है तथा पादपो में संपन्न होने वाली सभी उपापचयी क्रियाओ में जल एक माध्यम का कार्य करता है।
प्रत्येक पादप में जल के द्वारा विभिन्न प्रकार के परिवहन तंत्र एंजाइमो के स्थानान्तरण तथा गैस के विनिमय हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है। इसके अतिरिक्त जल की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट घुलनशील शर्करा में बदल कर श्वसन की दर में वृद्धि करते है।
उपरोक्त के फलस्वरूप पादपो में श्वसन की दर जल के समानुपाती होती है अत:
नोट : शुष्क फल तथा बीजो में जल की मात्रा नगण्य पायी जाती है जिसके कारण ऐसे फल तथा बीजों में उपापचयी क्रियाएँ मंद गति से संपन्न होती है अर्थात श्वसन की दर न्यूनतम पायी जाती है अत: ऐसे फल तथा बीजो को लम्बे समय तक संचित किया जा सकता है।
4. प्रकाश : प्रकाश की उपस्थिति या अनुपस्थिति प्रत्यक्ष रूप से श्वसन की दर को प्रभावित नहीं करती है परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से प्रकाश की उपस्थिति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
क्योंकि प्रकाश की उपस्थिति के कारण पादपो में निम्न क्रियाएं संपन्न होती है।
- प्रकाश की उपस्थिति के कारण तापमान में वृद्धि होती है जो श्वसन की दर में वृद्धि करता है।
- प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण संपन्न होता है जो कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करता है तथा कार्बोहाइड्रेट की उपस्थिति किसी भी पादप में एक महत्वपूर्ण श्वसन क्रियाधार का कार्य करती है।
- प्रकाश की उपस्थिति में रन्ध्र खुलते है जो गैसों के विनिमय हेतु महत्वपूर्ण होते है तथा गैसों की विनिमयता से श्वसन की दर प्रभावी होती है।
5. कार्बन डाइ ऑक्साइड ( CO 2) : पादपो में कार्बन डाइ ऑक्साइड की सांद्रता श्वसन की दर (R.O.R) के व्युत्क्रमानुपाती होती है। अर्थात CO 2 की सांद्रता बढे तो पादपो की पत्तियों में पाए जाने वाले रंध्र बंद हो जाते है तथा बंद होने से CO 2 का अभाव हो जाता है तथा श्वसन की दर घट जाती है।
नोट : CO 2 की सान्द्रता में वृद्धि होने के कारण बीजों के अंकुरण तथा पादपों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
Heath नामक वैज्ञानिक के द्वारा CO 2 की सान्द्रता अधिक होने पर रंध्रो के बंद होने की क्रिया को सिद्ध किया।
पादपो में श्वसन की दर को प्रभावित करने वाले आन्तरिक कारक
1. जीवद्रव्य : पादपो की कोशिकाओ में जीवद्रव्य अधिक मात्रा में तथा अधिक सक्रीय होने पर श्वसन की दर में वृद्धि होती है वही कोशिका के जीवद्रव्य की मात्रा में कमी होने पर या कम सक्रीय रहने पर श्वसन की दर धीमी गति से संपन्न होती है।
उपरोक्त के आधार पर पादपो में पायी जाने वाली विभज्योतकीय कोशिकाओ में पादप की अन्य कोशिकाओ की अपेक्षा अधिक श्वसन दर पायी जाती है।
2. श्वसन क्रियाधार : यदि श्वसन की क्रिया के अन्तर्गत श्वसन क्रियाधार के रूप में सीधे ग्लूकोज , फ्रुक्टोस या माल्टोज का उपयोग किया जाए तो श्वसन की दर तेज गति से संपन्न होती है वही अन्य श्वसन क्रियाधार जैसे वसा , प्रोटीन आदि के उपयोग करने से इन्हें शर्करा में परिवर्तित करता है।
नोट : एक स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा रोग ग्रसित व्यक्ति को साधारण भोजन के स्थान पर सीधे शर्करा के स्रोत प्रदान किये जाते है जैसे ग्लूकोज। जिसके फलस्वरूप श्वसन की क्रिया त्वरित रूप से संपन्न होती है तथा बिना विलम्ब के एक रोगी व्यक्ति को ऊर्जा प्रदान की जा सकती है।
3. कोशिका की आयु : पादपो में पायी जाने वाली तरुण या नवीन कोशिकाओ में श्वसन की क्रिया तीव्र गति से सम्पन्न होती है अर्थात श्वसन की दर अधिक पायी जाती है वही प्रोढ़ या वृद्ध कोशिकाओ में श्वसन की दर धीमी गति से संपन्न होती है।
4. चोट / घाव : पादप के किसी भाग के क्षतिग्रस्त होने पर कोशिकाओ में तीव्र विभाजन होता है जिससे पादप के ऐसे भागो में श्वसन की दर अधिक पायी जाती है।