चरण निर्देश

व्यापारियों के लिए समर्थन और शिक्षा

व्यापारियों के लिए समर्थन और शिक्षा

जनसुविधाएँ

हमारे देश में निजी शैक्षिणक संसथान- स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान बड़े पैमाने पर खुलते जा रहे हैं। दूसरी तरफ सरकारी शिक्षा संस्थानों का महत्व कम होता जा रहा है। आपकी राय में इसका क्या असर हो सकता है? चर्चा कीजिए

हमारे देश में निजी शैक्षिणक संसथान बड़े पैमाने पर खुलते जा रहे हैं। दूसरी तरफ सरकारी शिक्षा संस्थानों का महत्व कम होता जा रहा है। इसके निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं-

(i) धीरे-धीरे सरकारी संस्थानों का महत्व समाप्त हो जाएगा।

(ii) आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग उच्च शिक्षा से वंचित रह जायेगा क्योंकि निजी शैक्षिणक संसथानों की फीस बहुत महँगी होती है जिसे उठाना गरीब व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल है।

किसानों द्वारा चेन्नई के जल व्यापारियों को पानी बेचने से स्थानीय लोगों पर क्या असर पड़ रहा है? क्या आपको लगता है कि स्थानीय लोग भूमिगत पानी के इस दोहन का विरोध कर सकते हैं? क्या सरकार इस बारे में कुछ कर सकती है?

(i) किसानों द्वारा चेन्नई के जल व्यापारियों को पानी भेजने से स्थानीय लोगों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।पीने हेतु शुद्ध पानी की कमी पड़ रही है। सिंचाई के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध नहीं है जिसे फसल गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है।

(ii) हाँ, लोग भूमिगत पानी के दोहन का विरोध कर सकते हैं क्योंकि पानी एक प्राकृतिक संसाधन है। जिसका निजी कंपनियां अपने स्वार्थ हेतु अनावश्यक रूप से दोहन नहीं कर सकती।

(iii) हाँ, सरकार उन जलव्यपारियों दोनों के खिलाफ कदम उठा सकती है।उनसे जुर्माना वसूल किया जा सकता है तथा उन्हें दंड भी दिया जा सकता है।

ज़्यादातर निजी अस्पताल और स्कूल कस्बों या ग्रामीण इलाकों की बजाय बड़े शहरों में ही है, क्योंकि-

(i) शहरों में लोगो की जिंदगी भागदौड़ से भरी है उनकी आमदनी अच्छी होती है। यहां लोग यह चाहते हैं कि उनके सभी काम निर्धारित समय से पूर्व हो जाये बजाय इसके कि सरकारी स्कूल और अस्पतालों में लंबी कतारों में खड़ा होना पड़े।

(ii) कस्बों या ग्रामीण इलाकों की अपेक्षा यातायात, बिजली, जलापूर्ति आदि सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती है।

आपको ऐसा क्यों लगता है कि दुनिया में निजी जलपूर्ति के उदाहरण कम है?

जल एक आवश्यक जनसुविधा है इसलिए यह जिम्मेदारी सरकार की बनती है कि वह इसे सफलतापूर्वक लोगों तक पहुँचाए। यह जनसुविधा सभी को मुहैया होनी चाहिए। इस कार्य के लिए नुकसान और फायदे को अलग करना आवश्यक होता है। निजी कंपनियां केवल अपने मुनाफे के बारे में सोचती है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि व्यक्ति तक वह वस्तु पहुँच रही है या नहीं। जलपूर्ति का निजीकरण करने का अर्थ है कि लोगों की जनसुविधा की उपलब्धता में अनियमितता, इससे देश में अराजकता फैल सकती है। यही कारण है कि निजी जलापूर्ति के उदाहरण कम देखने को मिलते हैं।

चेन्नई एक ऐसी जगह है जहाँ पानी की बहुत कमी है। न्यायपालिका केवल शहर की लगभग आधी जरूरत को ही पूरा कर पाती है। कुछ इलाकों में पानी नियमित रूप से पानी आता है और कुछ इलाकों में बहुत कम पानी आता है। उन स्थानों में जहाँ पानी का भंडारण किया गया है। उसके आसपास के इलाके में ज़्यादा पानी आता है और दूर की बस्तियों में कम पानी मिलता है।

इस समस्या का सामना ज़्यादातर गरीब व्यक्ति को करना पड़ता है क्योंकि उच्च या माध्यम वर्ग का व्यक्ति इस समस्या का हल आसानी से ढूंढ़ लेता है। वे बोरवेल खोद कर या बोतलों का पानी खरीद कर अपना काम चला लेते हैं।

क्या आपको लगता है व्यापारियों के लिए समर्थन और शिक्षा कि हमारे देश में जनसुविधाओं का वितरण पर्याप्त और निष्पक्ष हैं? अपनी बात के समर्थन में एक उदाहरण दीजिए।

नहीं, हमारे देश में जनसुविधाओं का वितरण पर्याप्त और निष्पक्ष नहीं है।

उदाहरण के लिए दिल्ली में विभिन्न जन सुविधाओं जैसे जल,बिजली, परिवहन सेवा, स्कूल-कॉलेज आदि सुलभ रूप से मौजूद है जबकि दिल्ली के कुछ किलोमीटर दूर ही स्थित मथुरा, अलीगढ़ में इनका आभाव है।

फ्लिपकार्ट डील पर Walmart ने कहा, व्यापारियों और किसानों को होगा फायदा

फ्लिपकार्ट और वॉलमार्ट के बीच 16 अरब डॉलर में डील हुई. वॉलमार्ट ने भारतीय कंपनी में 77 फीसदी हिस्‍सेदारी खरीदी है.

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फ्लिपकार्ट डील पर Walmart ने कहा, व्यापारियों और किसानों को होगा फायदा

नई दिल्ली : अमेरिका की रिटेल कंपनी वॉलमार्ट ने पिछले महीने भारतीय फ्लिपकार्ट में बड़ी हिस्‍सेदारी खरीदी थी. फ्लिपकार्ट और वॉलमार्ट के बीच 16 अरब डॉलर (1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा) में यह डील हुई. वॉलमार्ट ने भारतीय कंपनी में 77 फीसदी हिस्‍सेदारी खरीदी है. फ्लिपकार्ट में हिस्‍सेदारी रखने वाले जापानी ग्रुप सॉफ्टबैंक के सीईओ मासायोशी सोन ने भी इसकी पुष्टी की. वॉलमार्ट का दावा है कि उनकी इस डील से भारत के खुदरा व्यापारियों और किसानों को फायदा होगा और उनके लिए व्यापार के नए अवसर खुलेंगे.

वॉलमार्ट ने इस सौदे से खुदरा व्यापारियों के व्यापार पर किसी तरह के प्रभाव से इनकार किया है. वॉलमार्ट ने जारी एक बयान में कहा है कि भारत में हमारे बी-2बी व्यवसाय के माध्यम से हम न केवल छोटे किराना व्यापारियों के सफल होने का समर्थन कर रहे हैं बल्कि उन्हें आधुनिक बनाने में भी मदद कर रहे हैं.

वॉलमार्ट की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि सरकार की एफडीआई नीति मार्केटप्लेस ई-कॉमर्स मॉडल के तहत 100% एफडीआई की अनुमति देता है, फ्लिपकार्ट के साथ हमारी साझेदारी हजारों स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं और निर्माताओं को बाजार मॉडल के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंच प्रदान करेगी. यह साझेदारी इस मंच के माध्यम से बाजार तक पहुंच प्राप्त करने और भारत में स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए देश के किसानों के एसएमई आपूर्तिकर्ताओं का समर्थन करेगी.

कंपनी का मानना ​​है कि फ्लिपकार्ट और वॉलमार्ट की संयुक्त क्षमताओं से भारत का अग्रणी ई-कॉमर्स मंच तैयार होगा. इससे छोटे आपूर्तिकर्ताओं, किसानों और महिलाओं के उद्यमियों के लिए नई कुशल नौकरियां और नए अवसर पैदा करते समय ग्राहकों के लिए गुणवत्ता, किफायती सामान प्रदान करके भारत को फायदा होगा.

उधर, वॉलमार्ट की इस डील को लेकर दिल्ली के कुछ व्यापारियों ने सोमवार को विरोध-प्रदर्शन किया. अखिल भारतीय व्यापारी संघ (सीएआईटी) के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे व्यापारियों ने इस सौदे की निंदा की और कहा कि इससे बाजार में अनुचित प्रतिस्पर्धा पैदा होगी. व्यापारियों ने सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है. उन्होंने यह भी कहा कि ई-कॉमर्स को नियमित करने वाली एक संस्था को भी स्थापित किया जाना चाहिए.

सीएआईटी के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि इस सौदे से अनुचित प्रतिस्पर्धा पैदा होगी और साथ ही साथ बाजार में असमानता, हिंसक मूल्य निर्धारण, ज्यादा छूट और वित्त पोषण का नुकसान भी झेलना पड़ेगा.

प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि सोमवार को देशभर में इसी तरह से करीब एक हजार जगहों पर धरना-प्रदर्शन किए गए, जिसमें 10 लाख ऑफलाइन और ऑनलाइन व्यापारियों ने हिस्सा लिया है. सीएआईटी ने एक बयान में कहा कि दिल्ली के करोल बाग में धरना-प्रदर्शन किया गया, तथा इसके अलावा मुंबई, नागपुर, पुणे, सूरत, अहमदाबाद, भोपाल, चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलुरु, पुडुचेरी, रायपुर, राउरकेला, रांची, कोलकाता, लखनऊ, कानपुर और अन्य शहरों में भी व्यापरियों ने प्रदर्शन किया.

शिक्षा का उद्देश्य पर निबंध - Purpose of Education Essay in Hindi - Shiksha ka Uddeshya par Nibandh - Essay on Purpose of Education in Hindi

हमारे जीवन में शिक्षा का एक अहम योगदान है। जब से मानव सभ्यता का विकास हुआ है तभी से भारत अपनी शिक्षा के लिए प्रसिद्द है। भारतीय संस्कृत ने विश्व का सदैव पथ-प्रदर्शन किया और आज भी समाज में जीवित है। शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक और एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। मनुष्य जन्म से ही सुख और शांति जीवन जीने का प्रयास करता है। किसी भी व्यक्ति की उन्नति और विकास के लिए उचित शिक्षा मिलना आवश्यक है। क्योंकि शिक्षा के बिना उज्जवल भविष्य संभव नहीं है। वर्तमान समय में भी महान दार्शनिक एवं शिक्षा शास्त्री इस बात का प्रयास कर रहे हैं की शिक्षा भारत में हर युग में शिक्षा का उद्देश्य अलग-अलग रहा है।


शिक्षा क्या है / शिक्षा की परिभाषा / शिक्षा किसे कहते हैं / शिक्षा का अर्थ

'शिक्षा' शब्द 'शिक्ष्' मूल से भाव में ' अ' तथा “टाप्' प्रत्यय जोड़ने पर बनता है। इसका अर्थ है- सीखना, जानना, अध्ययन तथा ज्ञानाभिग्रहण। शिक्षा क लिए वर्तमान युग में शिक्षण, ज्ञान, विद्या, एजूकेशन (Education) आदि अनेक ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है। एजूकेशन (Education) शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के "Educare" शब्द से मानी जाती है। "Educare" शब्द का अर्थ है, "To educate, to Bring up, to raise" अर्थात् शिक्षित करना पालन-पोषण करना तथा जीवन में हमेशा आगे बढ़ना। शिक्षा हमारे मानसिक तथा नैतिक विकास के साथ ही हमारे कौशल और व्यापारी विकास पर केन्द्रित होती है। शिक्षा हमारे समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी अपने ज्ञान और समझ को हस्तांतरण का सफल प्रयास है। शिक्षा-शास्त्री के विद्वानो का विचार है, शिक्षा विकास का वह क्रम है, जिससे व्यक्ति अपने को धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार से अपने भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण में खुद को अनुकूल बना लेता है। जीवन ही वास्तव में शिक्षा है। प्रोफेसर ड्यूबी के मत में, 'शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसमें बालक के ज्ञान, चरित्र तथा व्यवहार को एक विशेष साँचे में ढाला जाता है।


ज्ञान और संस्कृति / ज्ञान और संस्कृति शिक्षा का उद्देश्य है

ज्ञान क्या है ? किसी बात या विषय के सम्बन्ध में होने वाली यह तथ्यपूर्ण, वास्तविक और संगत जानकारी या परिचय जो अध्ययन, अनुभव, निरीक्षण या प्रयोग आदि के द्वारा प्राप्त होता है, ज्ञान कहलाता है। ज्ञान अनुभव की पुत्री है। दूसरे शब्दों में मनुष्य के संचित अनुभवों का कोश हो वह ज्ञान है। स्वामी शिवानन्द का मत है कि, 'सत्य का साक्षात्कार' ही ज्ञान है। सुकरात ने ज्ञान को शक्ति माना है। बेकन ने इसी बात का समर्थन करते हुए कहा है, "Knowledge Itself is Power"(ज्ञान स्वयं ही शक्ति है।) डिजराइली का कथन है, 'अपनी अनभिज्ञता का बोध, ज्ञान की ओर एक बड़ा कदम है।'

ज्ञान जीवन के लिए उपयोगी तभी है, जब उसका प्रयोग किया जाए। विचारों को कार्यान्वित किया जाए, जिससे चिन्तन- प्रक्रिया एवं मानव-व्यवहार में परिवर्तन आए। ज्ञान प्राप्ति शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। आधुनिक सभ्यता शिक्षा के माध्यम द्वारा ज्ञान-प्राप्त करके विकसित हुई है। न तो ज्ञान अपने आप में सम्पूर्ण शिक्षा है, न ही शिक्षा का अंतिम उद्देश्य। यह तो शिक्षा का मात्र एक भाग है, और एक साधन है। अत: शिक्षा का उद्देश्य सांस्कृतिक ज्ञान की प्राप्ति होना चाहिए ताकि मानव सभ्य, शिष्ट, संयत बने। साहित्य, संगीत और कला आदि का विकास कर सके। जीवन को मूल्यवानू बनाकर जीवन-स्तर को ऊँचा उठा सके। साथ ही आने वाली पीढ़ी को सांस्कृतिक धरोहर सौंप सके।


चरित्र-निर्माण / चरित्र-निर्माण करना शिक्षा का उद्देश्य है

चरित्र मनुष्य की पहचान है | चैनिंग के शब्दों में, 'व्यक्तिगत चरित्र समाज की महान आशा है। 'प्रेमचन्द जी के शब्दों में, 'गौरव-संपन्न प्राणियों के लिए अपना चरित्र-बल ही सर्वप्रधान है। हरबर्ट के अनुसार, 'न केवल शिक्षा, अपितु चरित्र मानव की रक्षा करता है। उच्च चरित्र एक धन है । 'पंडित नेहरू के अनुसार, 'सहनशीलता एवं नैतिकता के बिना भौतिक धन बेकार है।' चरित्र दो प्रकार का होता है, अच्छा और बुरा। सच्चरित्र ही समाज की शोभा है। निर्धन का धन है। जीवन-विकास का मूल है। जीवन जन्मजात नहीं होता, बनाया जाता है। इसके निर्माण का दायित्व शिक्षा वहन करती है। गाँधी जी के शब्दों में 'चरित्र शुद्धि ठोस शिक्षा की बुनियाद है।' शिक्षा का उद्देश्य सांवेगिक एवं नैतिक विकास होना चाहिए। एक अच्छा इंजीनियर या डॉक्टर बेकार है, यदि उनमें नैतिकता के गुण नहीं है। कारण, चरित्र हीन ज्ञानी सिर्फ ज्ञान का भार ढोता है। वास्तविक शिक्षा मानव में निहित सदगुण एवं पूर्णत्व का विकास करती है। सच्चाई तो यह है कि चारित्रिक विकास में ही शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य निहित हैं। यदि शिक्षा मानवीय चरित्र का विकास करने में असफल रहतो है, तो उसका उद्देश्य पूरा नहीं होता।


व्यवसाय और रोजगार / व्यवसाय और रोजगार में शिक्षा का उद्देश्य है

व्यवसाय का अर्थ है जीविका निर्वाह का साधन। इसका अर्थ यह है कि शिक्षा में इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वह 'अर्थकरी' हो अर्थात शिक्षित व्यक्ति की रोजी-रोटी की गारण्टो ले सके। गाँधी जी के शब्दों में, 'सच्ची शिक्षा बेरोजगारी के विरुद्ध बीमे के रूप में होनी चाहिए।' स्वतंत्रता-पूर्व शिक्षा का उद्देश्य नौकरी पाना था। उस समय भारत की आबादी कम थी और शिक्षित व्यक्ति को प्राय: नौकर मिल जाती थी। देश आजाद हुआ। जनसंख्या सुरसा के मुँह की तरह बढ़ने लगी और नौकरियाँ उसके अनुपात में चींटी की चाल से बढ़ी। परिणामत: देश में शिक्षित बेरोजगारों की लंबी लाइन लग गईं | तब व्यवसाय का दूसरा अर्थ लिया गया - 'काम धंधा।' इसका अर्थ है, सामान्य शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक जीवन के लिए उपयोगी विधाओं, शिल्पों एवं व्यवसायों का ज्ञान प्राप्त करना। श्रम का प्रेमी अपनी जीविका कमा ही लेगा। इसलिए “व्यवसाय के लिए शिक्षा' शिक्षा का ध्येय होना अनिवार्य है। शिक्षा के ऊपर लिखे चारों उद्देश्य-ज्ञान प्राप्ति, संस्कृति, चरित्र तृथा व्यवसाय के लिए एकांगी हैं, स्वत: सम्पूर्ण नहीं। शिक्षा जीवन की जटिल प्रक्रिया और दुःख, कष्ट, विपत्ति में जीवन को सुंखमय बनाने की क्षमता और योग्यता प्रदान करे। व्यवसाय के लिए 'शिक्षा' या ' व्यावसायिक शिक्षा' का लक्ष्य कुशल शिल्पी तैयार करना नहीं, विद्यार्थी में उद्योग- धन्धों के प्रति प्रेम और उनकी ओर झुकाव उत्पन्न करके शारीरिक श्रम के महान की अनुभूति कराना है।


जीने की कला सीखना / जीने की कला सिखने के लिए शिक्षा का उद्देश्य है

शिक्षा में एक व्यापक उद्देश्य अर्थात्‌ सम्पूर्ण जीवन के सभी पक्ष में सम्पूर्ण विकास का समर्थन करता है। वह पुस्तकालीयता का खंडन करता है तथा परिवार चलाने, सामाजिक, आर्थिक, सम्बन्धों को चलाने तथा भावनात्मक विकास करने वाली क्रियाओं का समर्थन करता है। इन क्रियाओं में सफलता के पश्चात व्यक्ति आगामी जीवन के लिए तैयार हो जाता है। डॉ. डी.एन. खोसला के अनुसार, समस्त शिक्षा कार्य से आरम्भ होनी चाहिए और वहीं समाप्त होनी चाहिए। शिक्षा ही पूजा है और व्यक्ति को इस पूजा के लिए तैयार होना चाहिए। जीवन एक कला है, जो शिक्षा सिखाती है।


व्यक्तित्व विकास / व्यक्तित्व विकास लाना शिक्षा का उद्देश्य है

किसी व्यक्ति की निजी विशिष्ट क्षमताएं, गृण, प्रवृत्तियाँ आदि जो उसके उद्देश्यों, कार्यो, व्यवहारों आदि में प्रकट होती हैं और जिनसे उस व्यक्ति का सामाजिक स्वरूप स्थिर होता है, व्यक्तित्व है | व्यक्तित्व दो भाग में विभक्‍त है आन्तर और बाह्य आन्तर व्यक्तित्व मूलत: नैसर्गिक या प्राकृतिक होता है और आध्यात्मिक, दैविक तथा दैहिक शक्तियों का सम्मिलित रूप होता है। वह मनुष्य के अन्दर रहने वाली समस्त प्रकट तथा प्रच्छनन प्रवृत्तियों और शक्तियों का प्रतीक होता है। बाद्य व्यक्तित्व इसी का प्रत्याभास मात्र होता है। फिर भी, लोक के लिए वही गोचर या दृश्य होता है । इससे यह सूचित होता है कि कोई व्यक्ति अपनी आंतरिक प्रवृत्तियों और शक्तियों को कहाँ तक कार्यान्वित तथा विकसित करने में समर्थ है या हो सका है।

शिक्षा व्यक्तित्व के विकास के लिए भी है और जीवकोपार्जन के लिए भी है। अत: उसका उद्देश्य दोहग(दुगनी) हो जाता है। स्वतंत्र भारत का उत्तरदायिन्वपूर्ण नागरिक होने के लिए विद्यार्थी वर्ग को चरित्र की आवश्यकता थी, जो व्यक्तित्व विकास में ही सम्भव थी । जीवकोपार्जन की क्षमता सबका सामाजिक प्राप्य थी। बाह्य लक्ष्यों को उपेक्षा कर देने से शिक्षा एक प्रकार से समय बिताने का साधन हो गई। शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक और एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। मनुष्य जन्म से ही सुख और शांति जीवन जीने का प्रयास करता है। किसी भी व्यक्ति की उन्नति और विकास के लिए उचित शिक्षा मिलना आवश्यक है। क्योंकि शिक्षा के बिना उज्जवल भविष्य संभव नहीं है।

Purpose of Education Essay in Hindi

हमारे जीवन में शिक्षा का एक अहम योगदान है। जब से मानव सभ्यता का विकास हुआ है तभी से भारत अपनी शिक्षा के लिए प्रसिद्द है। भारतीय संस्कृत ने विश्व का सदैव पथ-प्रदर्शन किया और आज भी समाज में जीवित है। शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक और एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। मनुष्य जन्म से ही सुख और शांति जीवन जीने का प्रयास करता है। किसी भी व्यक्ति की उन्नति और विकास के लिए उचित शिक्षा मिलना आवश्यक है। क्योंकि शिक्षा के बिना उज्जवल भविष्य संभव नहीं है। वर्तमान समय में भी महान दार्शनिक एवं शिक्षा शास्त्री इस बात का प्रयास कर रहे हैं की शिक्षा भारत में हर युग में शिक्षा का उद्देश्य अलग-अलग रहा है।

'शिक्षा' शब्द 'शिक्ष्' मूल से भाव में ' अ' तथा “टाप्' प्रत्यय जोड़ने पर बनता है। इसका अर्थ है- सीखना, जानना, अध्ययन तथा ज्ञानाभिग्रहण। शिक्षा क लिए वर्तमान युग में शिक्षण, ज्ञान, विद्या, एजूकेशन (Education) आदि अनेक ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है। एजूकेशन (Education) शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के "Educare" शब्द से मानी जाती है। "Educare" शब्द का अर्थ है, "To educate, to Bring up, to raise" अर्थात् शिक्षित करना पालन-पोषण करना तथा जीवन में हमेशा आगे बढ़ना। शिक्षा हमारे मानसिक तथा नैतिक विकास के साथ ही हमारे कौशल और व्यापारी विकास पर केन्द्रित होती है। शिक्षा हमारे समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी अपने ज्ञान और समझ को हस्तांतरण का सफल प्रयास है। शिक्षा-शास्त्री के विद्वानो का विचार है, शिक्षा विकास का वह क्रम है, जिससे व्यक्ति अपने को धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार से अपने भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण में खुद को अनुकूल बना लेता है। जीवन ही वास्तव में शिक्षा है। प्रोफेसर ड्यूबी के मत में, 'शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसमें बालक के ज्ञान, चरित्र तथा व्यवहार को एक विशेष साँचे में ढाला जाता है।

ज्ञान क्या है ? किसी बात या विषय के सम्बन्ध में होने वाली यह तथ्यपूर्ण, वास्तविक और संगत जानकारी या परिचय जो अध्ययन, अनुभव, निरीक्षण या प्रयोग आदि के द्वारा प्राप्त होता है, ज्ञान कहलाता है। ज्ञान अनुभव की पुत्री है। दूसरे शब्दों में मनुष्य के संचित अनुभवों का कोश हो वह ज्ञान है। स्वामी शिवानन्द का मत है कि, 'सत्य का साक्षात्कार' ही ज्ञान है। सुकरात ने ज्ञान को शक्ति माना है। बेकन ने इसी बात का समर्थन करते हुए कहा है, "Knowledge Itself is Power"(ज्ञान स्वयं ही शक्ति है।) डिजराइली का कथन है, 'अपनी अनभिज्ञता का बोध, ज्ञान की ओर एक बड़ा कदम है।'

ज्ञान जीवन के लिए उपयोगी तभी है, जब उसका प्रयोग किया जाए। विचारों को कार्यान्वित किया जाए, जिससे चिन्तन- प्रक्रिया एवं मानव-व्यवहार में परिवर्तन आए। ज्ञान प्राप्ति शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। आधुनिक सभ्यता शिक्षा के माध्यम द्वारा ज्ञान-प्राप्त करके विकसित हुई है। न तो ज्ञान अपने आप में सम्पूर्ण शिक्षा है, न ही शिक्षा का अंतिम उद्देश्य। यह तो शिक्षा का मात्र एक भाग है, और एक साधन है। अत: शिक्षा का उद्देश्य सांस्कृतिक ज्ञान की प्राप्ति होना चाहिए ताकि मानव सभ्य, शिष्ट, संयत बने। साहित्य, संगीत और कला आदि का विकास कर सके। जीवन को मूल्यवानू बनाकर जीवन-स्तर को ऊँचा उठा सके। साथ ही आने वाली पीढ़ी को सांस्कृतिक धरोहर सौंप सके।

चरित्र मनुष्य की पहचान है | चैनिंग के शब्दों में, 'व्यक्तिगत चरित्र समाज की महान आशा है। 'प्रेमचन्द जी के शब्दों में, 'गौरव-संपन्न प्राणियों के लिए अपना चरित्र-बल ही सर्वप्रधान है। हरबर्ट के अनुसार, 'न केवल शिक्षा, अपितु चरित्र मानव की रक्षा करता है। उच्च चरित्र एक धन है । 'पंडित नेहरू के अनुसार, 'सहनशीलता एवं नैतिकता के बिना भौतिक धन बेकार है।' चरित्र दो प्रकार का होता है, अच्छा और बुरा। व्यापारियों के लिए समर्थन और शिक्षा व्यापारियों के लिए समर्थन और शिक्षा सच्चरित्र ही समाज की शोभा है। निर्धन का धन है। जीवन-विकास का मूल है। जीवन जन्मजात नहीं होता, बनाया जाता है। इसके निर्माण का दायित्व शिक्षा वहन करती है। गाँधी जी के शब्दों में 'चरित्र शुद्धि ठोस शिक्षा की बुनियाद है।' शिक्षा का उद्देश्य सांवेगिक एवं नैतिक विकास होना चाहिए। एक अच्छा इंजीनियर या डॉक्टर बेकार है, यदि उनमें नैतिकता के गुण नहीं है। कारण, चरित्र हीन ज्ञानी सिर्फ ज्ञान का भार ढोता है। वास्तविक शिक्षा मानव में निहित सदगुण एवं पूर्णत्व का विकास करती है। सच्चाई तो यह है कि चारित्रिक विकास में ही शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य निहित हैं। यदि शिक्षा मानवीय चरित्र का विकास करने में असफल रहतो है, तो उसका उद्देश्य पूरा नहीं होता।

व्यवसाय का अर्थ है जीविका निर्वाह का साधन। इसका अर्थ यह है कि शिक्षा में इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वह 'अर्थकरी' हो अर्थात शिक्षित व्यक्ति की रोजी-रोटी की गारण्टो ले सके। गाँधी जी के शब्दों में, 'सच्ची शिक्षा बेरोजगारी के विरुद्ध बीमे के रूप में होनी चाहिए।' स्वतंत्रता-पूर्व शिक्षा का उद्देश्य नौकरी पाना था। उस समय भारत की आबादी कम थी और शिक्षित व्यक्ति को प्राय: नौकर मिल जाती थी। देश आजाद हुआ। जनसंख्या सुरसा के मुँह की तरह बढ़ने लगी और नौकरियाँ उसके अनुपात में चींटी की चाल से बढ़ी। परिणामत: देश में शिक्षित बेरोजगारों की लंबी लाइन लग गईं | तब व्यवसाय का दूसरा अर्थ लिया गया - 'काम धंधा।' इसका अर्थ है, सामान्य शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक जीवन के लिए उपयोगी विधाओं, शिल्पों एवं व्यवसायों का ज्ञान प्राप्त करना। श्रम का प्रेमी अपनी जीविका कमा ही लेगा। इसलिए “व्यवसाय के लिए शिक्षा' शिक्षा का ध्येय होना अनिवार्य है। शिक्षा के ऊपर लिखे चारों उद्देश्य-ज्ञान प्राप्ति, संस्कृति, चरित्र तृथा व्यवसाय के लिए एकांगी हैं, स्वत: सम्पूर्ण नहीं। शिक्षा जीवन की जटिल प्रक्रिया और दुःख, कष्ट, विपत्ति में जीवन को सुंखमय बनाने की क्षमता और योग्यता प्रदान करे। व्यवसाय के लिए 'शिक्षा' या ' व्यावसायिक शिक्षा' का लक्ष्य कुशल शिल्पी तैयार करना नहीं, विद्यार्थी में उद्योग- धन्धों के प्रति प्रेम और उनकी ओर झुकाव उत्पन्न करके शारीरिक श्रम के महान की अनुभूति कराना है।

शिक्षा में एक व्यापक उद्देश्य अर्थात्‌ सम्पूर्ण जीवन के सभी पक्ष में सम्पूर्ण विकास का समर्थन करता है। वह पुस्तकालीयता का खंडन करता है तथा परिवार चलाने, सामाजिक, आर्थिक, सम्बन्धों को चलाने तथा भावनात्मक विकास करने वाली क्रियाओं का समर्थन करता है। इन क्रियाओं में सफलता के पश्चात व्यक्ति आगामी जीवन के लिए तैयार हो जाता है। डॉ. डी.एन. खोसला के अनुसार, समस्त शिक्षा कार्य से आरम्भ होनी चाहिए और वहीं समाप्त होनी चाहिए। शिक्षा ही पूजा है और व्यक्ति को इस पूजा के लिए तैयार होना चाहिए। जीवन एक कला है, जो शिक्षा सिखाती है।

किसी व्यक्ति की निजी विशिष्ट क्षमताएं, गृण, प्रवृत्तियाँ आदि जो उसके उद्देश्यों, कार्यो, व्यवहारों आदि में प्रकट होती हैं और जिनसे उस व्यक्ति का सामाजिक स्वरूप स्थिर होता है, व्यक्तित्व है | व्यक्तित्व दो भाग में विभक्‍त है आन्तर और बाह्य आन्तर व्यक्तित्व मूलत: नैसर्गिक या प्राकृतिक होता है और आध्यात्मिक, दैविक तथा दैहिक शक्तियों का सम्मिलित रूप होता है। वह मनुष्य के अन्दर रहने वाली समस्त प्रकट तथा प्रच्छनन प्रवृत्तियों और शक्तियों का प्रतीक होता है। बाद्य व्यक्तित्व इसी का प्रत्याभास मात्र होता है। फिर भी, लोक के लिए वही गोचर या दृश्य होता है । इससे यह सूचित होता है कि कोई व्यक्ति अपनी आंतरिक प्रवृत्तियों और शक्तियों को कहाँ तक कार्यान्वित तथा विकसित करने में समर्थ है या हो सका है।

शिक्षा व्यक्तित्व के विकास के लिए भी है और जीवकोपार्जन के लिए भी है। अत: उसका उद्देश्य दोहग(दुगनी) हो जाता है। स्वतंत्र भारत का उत्तरदायिन्वपूर्ण नागरिक होने के लिए विद्यार्थी वर्ग को चरित्र की आवश्यकता थी, जो व्यक्तित्व विकास में ही सम्भव थी । जीवकोपार्जन की क्षमता सबका सामाजिक प्राप्य थी। बाह्य लक्ष्यों को उपेक्षा कर देने से शिक्षा एक प्रकार से समय बिताने का साधन हो गई। शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक और एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। मनुष्य जन्म से ही सुख और शांति जीवन जीने का प्रयास करता है। किसी भी व्यक्ति की उन्नति और विकास के लिए उचित शिक्षा मिलना आवश्यक है। क्योंकि शिक्षा के बिना उज्जवल भविष्य संभव नहीं है।

व्यापारियों के लिए समर्थन और शिक्षा

Weekly Newsletter of CSC e-Governance Services India Limited, February 16, 2018 | CSC network is one of the largest Government approved online service delivery channels in the world

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड( सीबीएससी ), परीक्षा प्राधिकरण ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा 2018 के आवेदन पत्र पंजीकरण करने के लिए उम्मीदवारों का समर्थन करने के लिए कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) बनाया है। उम्मीदवार अब पूरे देश में स्थित सीएससी के माध्यम से एनईईटी आवेदन फॉर्म 2018 भर सकते हैं

परीक्षा की तारीख - 6 मई 2018 ( रविवार)

माननीय मंत्री - "एक करोड़ व्यापारियों को सक्षम किया जाएगा और सीएससी के माध्यम से बीएचआईएम क्यूआर कोड प्रदान किया जाएगा"

औद्योगिक और आईटी मंत्री माननीय श्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा है कि एक करोड़ व्यापारियों को सक्षम किया जाएगा और सीएससी के माध्यम से बीएचआईएम क्यूआर कोड प्रदान किया जाएगा। उन्होंने आईटी मंत्रियों और आईटी सचिवों के सम्मेलन के उद्घाटन के दौरान ऐसा कहा। माननीय मंत्री ने उन सभी को आग्रह किया कि वे विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्मों जैसे यूएमएएनजी, सीएससी, स्कॉलरशिप पोर्टल, डिजीलोकर, बीएचआईएम-यूपीआई आदि पर नागरिकों के सशक्तिकरण और डिजिटल इंडिया को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करें।


The Government of Jharkhand is planning to setup 15 vision centres through CSCs. These centres will help provide eye tele-consultations to help the rural populations have access to quality eyecare health service throughout Jharkhand. In this process CSCs will work as an important vehicle to assess, diagnose and identify patients who require these health services. 5 Districts are proposed to be involved under the plan , where the CSCs along with diagnosis, will also help in offering corrective solutions. The support of local Hospitals and trained medical personnel would be used.

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