फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझना

Future Trading in Hindi
अगर आप शेयर मार्केट में ट्रेडिंग करते हैं तो आपने कभी न कभी फ्यूचर ट्रेडिंग का नाम सुना ही होगा, तो आज हम Future Trading in Hindi पोस्ट में जानेंगे कि फ्यूचर ट्रेडिंग क्या है, फ्यूचर ट्रेडिंग कैसे की जाती है और इसमें कौन – कौन से जोखिम शामिल है।
फ्यूचर ट्रेडिंग डेरीवेटिव का ही एक भाग है, जैसा कि आपको पता होगा कि डेरिवेटिव फाइनेंसियल कॉन्ट्रैक्ट होते है जो स्टॉक, कमोडिटीज, करेंसी आदि जैसे एसेट से अपना मूल्य प्राप्त करते हैं। डेरीवेटिव को विस्तार से समझने के लिए आपको यह लेख पढ़ना चाहिए।
चलिए अभी हम Future Trading in Hindi लेख में फ्यूचर ट्रेडिंग क्या है? इसके वारे में समझते है….
फ्यूचर ट्रेडिंग क्या है?
फ्यूचर ट्रेडिंग को समझने से पहले, हम समझते हैं कि फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स क्या होते हैं?
फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट:- फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीददार और विक्रेता के बीच एक कॉन्ट्रैक्ट होता है जिसमें खरीददार और विक्रेता दोनों भविष्य में एक पूर्वनिर्धारित क्वांटिटी में किसी एसेट को एक निश्चित प्राइस पर खरीदने और बेचने का कॉन्ट्रैक्ट करते हैं। इस कॉन्ट्रैक्ट को फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट कहा जाता है।
फ्यूचर ट्रेडिंग :- फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को खरीदने और बेचने की प्रक्रिया को फ्यूचर ट्रेडिंग कहा जाता है।
स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से बहुत से स्टॉक्स और इंडेक्स में फ्यूचर ट्रेडिंग की जा सकती है इसके साथ – साथ आप करेंसी और कमोडिटी में भी फ्यूचर ट्रेडिंग के माध्यम से ट्रेडिंग कर सकते है।
फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट कितने तरह के होते है?
फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स में तीन महीने के कॉन्ट्रैक्ट होते हैं:
- Current Month Contract
- Near Month Contract
- Far Month Contract
Current Month Contract :- Current Month Contract का मतलब है जो महीना चल रहा है उस महीने के कॉन्ट्रैक्ट को खरीदना या बेचना।
उदाहरण के लिए,
माना अभी जनवरी का महिना चल रहा है और आप जनबरी महीने के ही कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड करते है तो उन कॉन्ट्रैक्ट को Current Month Contract कहा जाता है।
Near Month Contract :- Near Month Contract का मतलब है जो महीना चल रहा है उससे अगले महीने के कॉन्ट्रैक्ट को खरीदना या बेचना।
उदाहरण के लिए,
माना अभी जनवरी का महिना चल रहा है और आप फरबरी महीने के कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड करते है तो उन कॉन्ट्रैक्ट को Near Month Contract कहा जाता है।
Far Month Contract :- Far Month Contract का मतलब है जो महीना चल रहा है उससे अगले दो महीने के कॉन्ट्रैक्ट को खरीदना या बेचना।
उदाहरण के लिए,
माना अभी जनवरी का महिना चल रहा है और आप मार्च महीने के कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड करते है तो उन कॉन्ट्रैक्ट को Far Month Contract कहा जाता है।
नोट :- जिस महीने के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को आप खरीद या बेच रहे है, वह कॉन्ट्रैक्ट उस महीने के आखिरी गुरुवार को एक्सपायर हो जाता है।
फ्यूचर ट्रेडिंग कैसे करते हैं?
अभी Future Trading in Hindi लेख में हम एक उदाहरण की मदद से समझते है कि फ्यूचर ट्रेडिंग कैसे की जाती है?
माना अगर हम एचडीएफसी बैंक के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को खरीदना या बेचना चाहते हैं, तो हम इसके तीन फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स को खरीद या बेच सकते हैं।
हम फ्यूचर्स को केवल लॉट में खरीद या बेच सकते हैं और प्रत्येक स्टॉक और इंडेक्स के लिए लॉट साइज अलग-अलग होता है। यह लॉट साइज स्टॉक एक्सचेंज द्वारा तय किए जाते है कि किस स्टॉक और इंडेक्स का लॉट साइज क्या होगा। एक्सचेंज किसी भी स्टॉक और इंडेक्स के लॉट साइज को कभी भी बदल सकता है।
उदाहरण,
एचडीएफसी बैंक अप्रैल फ्यूचर फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझना
वर्तमान प्राइस – 1500 रु
लॉट साइज – 500 शेयर्स
अव अगर एचडीएफसी बैंक के शेयर प्राइस में अप्रैल के अंत तक 10 रुपये का उछाल आता है तो आपको 500×10 यानी 5 हजार रूपये का प्रॉफिट होगा। इसके दूसरी तरफ अगर एचडीएफसी बैंक के शेयर प्राइस में अप्रैल के अंत तक 10 रुपये की गिरावट आती है तो आपको 500×10 यानी 5 हजार रूपये का नुकसान होगा।
फ्यूचर में ट्रेड क्यों करे?
यदि आप फ्यूचर में ट्रेड करते हैं, तो आप बहुत कम पैसे में बहुत अधिक शेयरों में ट्रेड कर सकते हैं। जहाँ हमें एक दिन से अधिक समय के लिए शेयर खरीदने पर शेयरों की पूरी राशि देनी होती है, उसी फ्यूचर्स में हम केवल शेयरों के मूल्य का 15 – 50% देकर ट्रेड कर सकते हैं, इस राशि को प्रारंभिक मार्जिन भी कहा जाता है।
लॉन्ग टाइम के लिए शॉर्ट पोजीशन :- स्टॉक्स में आप एक दिन से ज्यादा शॉर्ट पोजीशन नहीं ले सकते हैं, लेकिन फ्यूचर ट्रेडिंग में आप कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने तक अपनी शॉर्ट पोजीशन होल्ड रख सकते हैं।
कम ब्रोकरेज और टैक्स :- अगर हम फ्यूचर्स में ट्रेडिंग करते हैं तो कुल मिलाकर हमें शेयर ट्रेडिंग की तुलना में बहुत कम चार्जेज देने पड़ते है।
फ्यूचर्स ट्रेडिंग की विशेषताएं
* फ्यूचर्स ट्रेडिंग की कई विशेषताएं हैं, जिसके कारण फ्यूचर्स ट्रेडिंग बहुत लोकप्रिय है। आइए फ्यूचर ट्रेडिंग की कुछ विशेषताओं को समझते हैं जो इस प्रकार हैं:
* फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की प्राइस उसकी संपत्ति (स्टॉक या इंडेक्स) पर निर्भर करती है। यदि संपत्ति की कीमत बढ़ती है, तो फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की कीमत भी बढ़ेगी।
* फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को आसानी से ट्रेड किया जा सकता है। फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझना
* यदि कोई ट्रेडर अपने कॉन्ट्रैक्ट से निकलना चाहता है तो वह कभी भी बाहर जा सकता है जिसके लिए उसे कोई जुर्माना नहीं देना होगा।
* फ्यूचर ट्रेडिंग दो पक्षों के बीच होती है जिसमें दोनों पक्षों द्वारा अपने कॉन्ट्रैक्ट को पूरा नहीं करने का डर हमेशा बना रहता है, इसलिए इसे सेबी द्वारा नियंत्रित किया जाता है, ताकि ट्रेडिंग में कोई घोटाला न हो।
* फ्यूचर ट्रेडिंग को सेबी द्वारा सुचारू रूप से चलाया जाता है, जिसमें चूक की संभावना न के बराबर होती है।
* फ्यूचर्स ट्रेडिंग के अपने नियम होते हैं जिनका एक ट्रेडर को पालन करना होता है।
* फ्यूचर ट्रेडिंग में सेटलमेंट का समय निश्चित होता है, जिसमें दोनों पक्ष अपने कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार समय पर अपने कॉन्ट्रैक्ट को पूरा करते हैं और इसके लिए किसी भौतिक दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होती है।
फ्यूचर ट्रेडिंग में शामिल जोखिम
फ्यूचर ट्रेडिंग में शेयर ट्रेडिंग की तुलना में अधिक जोखिम होता है और इस कारण से एक ट्रेडर को फ्यूचर ट्रेडिंग करते समय अपने जोखिम का प्रबंधन करना चाहिए। फ्यूचर ट्रेडिंग में हम वास्तविक राशि से कम राशि देकर ट्रेडिंग करते हैं, इसलिए फ्यूचर ट्रेडिंग में रिस्क और रिवॉर्ड दोनों ज्यादा होते हैं।
निष्कर्ष
फ्यूचर ट्रेडिंग, इक्विटी ट्रेडिंग की तुलना में ज्यादा जोखिम भरी है और इक्विटी ट्रेडिंग से अलग ज्ञान की मांग करती है इसलिए फ्यूचर ट्रेडिंग में आने से पहले फ्यूचर ट्रेडिंग को अच्छे से समझले उसके उपरान्त ही फ्यूचर ट्रेडिंग की शुरुआत करे। अगर आप बिना मार्केट और फ्यूचर ट्रेडिंग की समझ के इसमें आते है तो आप बहुत बड़ा जोखिम ले रहे है।
हेलो दोस्तों, अगर Future Trading in Hindi से संबंधित कोई संदेह है, तो आप इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर सकते हैं। हम आपके प्रश्न का उत्तर जल्द से जल्द देंगे।
फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस क्या हैं? निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें
हर कोई अपने निवेश से मुनाफा कमाना चाहता है. मार्केट (बाजार) में निवेश के कई विकल्प मौजूद हैं. आज हम वित्तीय साधनों (फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट) के बारे में बात करेंगे, जिन्हें फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के तौर पर जाना जाता है.
TV9 Bharatvarsh | Edited By: राघव वाधवा
Updated on: Sep 16, 2022 | 5:35 PM
हर कोई अपने निवेश से मुनाफा कमाना चाहता है. मार्केट (बाजार) में निवेश के कई विकल्प मौजूद हैं. आज हम वित्तीय साधनों (फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट) के बारे में बात करेंगे, जिन्हें फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के तौर पर जाना जाता है. फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के जरिए न केवल शेयरों में, बल्कि सोने, चांदी, एग्रीकल्चर कमोडिटी और कच्चे तेल (क्रड ऑयल) सहित कई अन्य डेरिवेटिव सेगमेंट में भी कारोबार करके पैसा कमाया जा सकता है. फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस को समझने से पहले उस मार्केट को समझना जरूरी है, जिसमें ये प्रोडक्ट्स खरीदे और बेचे जाते हैं.
इन दोनों प्रोडक्ट का डेरिवेटिव मार्केट में कारोबार होता है. ऐसे कई प्लेटफॉर्म हैं, जहां से ये ट्रेड किए जा सकते हैं. अगर आप भी इसमें शुरुआत करना चाहते हैं, तो 5paisa.com (https://bit.ly/3RreGqO) वह प्लेटफॉर्म है जो डेरिवेटिव ट्रेडिंग में आपका सफर शुरू करने में मदद कर सकता है.
डेरिवेटिव्स फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझना क्या होते हैं?
डेरिवेटिव वित्तीय साधन (फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट) हैं, जो एक अंतर्निहित परिसंपत्ति (अंडरलाइंग एसेट) या बेंचमार्क से अपनी कीमत (वैल्यू) हासिल करते हैं. उदाहरण के लिए, स्टॉक, बॉन्ड, करेंसी, कमोडिटी और मार्केट इंडेक्स डेरिवेटिव में इस्तेमाल किए जाने वाले कॉमन एसेट हैं. अंतर्निहित परिसंपत्ति (अंडरलाइंग एसेट) की कीमत बाजार की स्थितियों के मुताबिक बदलती रहती है. मुख्य रूप से चार तरह के डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट हैं – फ्यूचर (वायदा), फॉरवर्ड, ऑप्शन और स्वैप.
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट (वायदा अनुबंध) क्या है?
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के जरिए खरीदार (या विक्रेता) भविष्य में एक पूर्व निर्धारित तिथि पर एक पूर्व निर्धारित मूल्य पर संपत्ति खरीद या बेच सकता है. वायदा कारोबार (फ्यूचर ट्रेडिंग) करने वाले दोनों पक्ष अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) को पूरा करने के लिए बाध्य होते हैं. इन अनुबंधों का स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार होता है. वायदा अनुबंध की कीमत अनुबंध खत्म होने तक मार्केट के हिसाब से बदलती रहती है.
एक ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट (विकल्प अनुबंध) क्या है?
ऑप्शन एक अन्य तरह का डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है, जो खरिदार (या विक्रेता)को फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझना भविष्य में एक खास कीमत पर एक अंतर्निहित परिसंपत्ति को खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, लेकिन उस तारीख पर शेयर खरीदने या बेचने की कोई बाध्यता नहीं होती है. इस स्थिति में अगर जरूरी हो, तो वह किसी भी समय ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट (विकल्प अनुबंध) से बाहर निकल सकता है. लेकिन फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट (वायदा अनुबंध) में ऐसा करना संभव नहीं है. आपको फ्यूचर डिलीवरी के फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझना समय कॉन्ट्रैक्ट (अनुबंध) पूरा करना होगा. दो तरह के ऑप्शन (विकल्प) हैं. पहला है कॉल ऑप्शन और दूसरा है पुट ऑप्शन. कॉल ऑप्शन संपत्ति (एसेट) खरीदने का अधिकार देता है जबकि पुट ऑप्शन बेचने का अधिकार देता है.
ऑप्शन्स ट्रडिंग्स को समझने का सबसे आसान तरीका
हिंदी में समझाए गए इस बेसिक ऑप्शन्स ट्रेडिंग कोर्स का मुख्य उद्देश्य है फ्यूचर्स और ऑप्शन्स की गहराई को समझना | इस पाठ्यक्रम में आप विस्तार से बहुत सी परिभाषाओ के बारे में जानेंगे जैसे ओप्तिओंस, टाइप्स ऑफ़ ऑप्शन्स , पुट और फ्यूचर्स आदि | छात्रों को इस पाठ्यक्रम के माध्यम से विभिन्न विकल्पों और प्रभावी व्यापार रणनीतियों के साथ व्यापार करने की समझ भी प्राप्त होगी |
About the Trainer
Mr. Govind Jhawar has 14 years of experience in the Capital and Derivatives Market. He is a well-known icon in the field of Options Training Program being conducted by him since past 10 years. Till date more than 4500 students have been trained by him and his focus on developing new options strategies and trading techniques. He provides consultancy to members of exchange for Options Trading. He has done international workshops on options. He has successfully anchored 20 workshops on Options on Behalf of BSE.
Objective
लक्ष्य
ऑप्शन ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी आपको ऑप्शन मार्किट से जुड़े विभिन्न शब्दावलियों को समझने में सहायता करता है |यह कोर्स एक सुचालक रूप में डिजाईन किया गया है जिससे आपको विभिन्न तकनीकी शब्दों को समझने में सहायता मिलेगी | इस कोर्स से आप खुदकी स्ट्रेटेजीज बना पाएंगे जो की आपको निवेश करने में मदद करेगा |
Benefits
लाभ
ऑप्शन्स बाजार में मुख्य रूप से लाभप्रद पहलू यह है कि हम बाजार के विभिन्न छेत्रो के बारे में जान सकते है |में देखने के किसी भी प्रकार के ले जा सकते है जैसे स्लाइटली बुलिश , बेरिश , हाइली बुलिश , बेरिश , वोलेटाइल , रेंज -बाउंड आदि | ऑप्शन्स बाजार में कई प्रकार के स्ट्राइक प्रिंसेस होते है इससे हम व्यापार रणनीतियों और उपयुक्त तकनीकी जानकारी भी ले सकते है|
वर्चुअल क्लास सॉफ्टवेयर और अध्ययन सामग्री भी ऑप्शन ट्रेडिङ्ग टुटोरिअल को समझने में काफी सहायता करती है | इस कार्यशाला में आपको बहुत प्रकार के स्ट्रेटेजीज जैसे बैल कॉल स्प्रेड, बेयर पुट स्प्रेड, बैल पुट स्प्रेड, बेयर कॉल स्प्रेड, स्टर्ड़ले, स्ट्रांगली, कंडर, बटरफ्लाई, रेश्यो स्प्रेड, कैलेंडर स्प्रेड आदि की जानकारी भी मिलेगी |
इस कार्यशाला में आप ओपन इंटरेस्ट सिद्धांत के विस्तृत नियमो को समझ पाएंगे | ओपन इंटरेस्ट विश्लेषण हर एक स्ट्राइक प्राइस पर निवेशकों की भागीदारी के बारे में बताता हैं।
Topics Covered
विषेयों की सूची
- ऑप्शन बेसिक्स
- फार्मूला फॉर सिंथेटिक दृवटिवेस
- स्टर्ड़ले एंड स्ट्रांगल स्ट्रेटेजीज
- बुलिश एंड बेरिश स्ट्रेटेजीज
- राठीओ स्प्रेड स्ट्रेटेजीज
- बटरफ्लाई एंड कंडर स्ट्रेटेजीज
- कैलेंडर स्प्रेड एंड पीसीपी
- ओपन इंटरेस्ट थ्योरी
- बेसिक ऑप्शन ट्रेडर
Intended Participants
प्रतिभागी
यह पाठ्यक्रम उन लोगो के लिए ज़रूरी है जो पूंजी बाजार में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं| यह कोर्स सीए, एमबीए या वित्तीय सलाहकार, जो अपने ग्राहकों के जोखिम के खिलाफ विभिन्न हेजिंग तकनीक को समझने चाहते है उनके लिए सर्वोपरि है | यह सीए, सीएफए, एमबीए के छात्रों को, जो फंड प्रबंधन, अंतरपणन, अनुसंधान क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं उनके लिए भी लाभदायक है।
निफ्टी फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस से कैसे कमाएं मुनाफा?
हाल में हमने आपको फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के बारे में बताया था. अब हम आपको निफ्टी फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के बारे में बता रहे हैं.
अगर कारोबार के बारे में आपका ठोस नजरिया है और आप जोखिम ले सकते हैं तो थोड़ी कीमत चुका कर आप निफ्टी ऑप्शंस और फ्यूचर्स पर दांव खेल सकते हैं.
कॉल ऑप्शन इस खरीदने वाले को तय अवधि के दौरान पहले से तय कीमत पर निफ्टी खरीदने का अधिकार देता है. बायर को चाहे तो अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है. वह चाहे तो अपने फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझना अधिकार का इस्तेमाल नहीं भी कर सकता है. इसी तरह पुट ऑप्शन इसे खरीदने वाले को इंडेक्स बेचने का अधिकार देता है. इंडेक्स फ्यूचर्स के सौदों का निपटारा कैश में होता है.
प्रश्न: निफ्टी फ्यूचर्स एंड ऑप्शन सौदा कैसे काम करता है?
उत्तर: इसे उदाहरण के साथ समझते हैं. मान लीजिए ट्रेडर ए को लगता है कि निफ्टी 10,7000 के स्तर तक चढ़ेगा. इसके लिए वह कुछ मार्जिन चुकाता है, जो कॉन्ट्रैक्स की कुल लागत का छोटा हिस्सा होता है. वह जिससे सौदा करता है, वह ट्रेडर बी है, जो इस स्तर पर निफ्टी बेचता है.
यदि निफ्टी 10,8000 के स्तर तक चढ़ जाता है, तो ए के पास अधिकार होगा कि वह अपने बी से 10,700 के भाव पर ही निफ्टी खरीद सके और उसके मौजूदा भाव यानी 10,800 के स्तर पर बेच सके. इस तरह उसे 7,500 रुपये (75x100) का फायदा होगा.
इसी तरह यदि निफ्टी फ्यूचर्स 10,600 तक लुढ़क जाता हैं, तो बी निफ्टी फ्यूचर्स को ए को 10,700 के स्तर पर ही बेचेगा. ऐसे में ए को 100 रुपये प्रति शेयर का नुकसान होगा.
ए को 10,700 के स्तर पर कॉल ऑप्शन खरीदने के लिए 200 रुपये का प्रीमियम (शुक्रवार का क्लोजिंग प्राइस) प्रति शेयर चुकाना होगा. यदि निफ्टी 100 अंक की छलांग लगाकर एक्सपाइरी से पहले 10,800 तक पहुंच जाता है तो ऑप्शन की वैल्यू में 100 रुपये इजाफा होगा.
ऐसे सौदों में विक्रेता का पैसा ज्यादा फंसा हुआ माना जाता है. हालांकि, कॉल खरीदार को भी घाटा हो सकता है, यदि निफ्टी उसकी उम्मीद से अधिक लुढ़क जाए. यदि स्टॉक एक्सचेंज की कोई खास शर्त या नियम न हो, तो इन सौदों का सेटलमेंट नकद में होता है.
प्रश्न: फ्यूचर्स और ऑप्शंस में किसे खरीदने में ज्यादा फायदा है?
उत्तर: दोनों ही प्रकार के सौदों के अपने लाभ और हानि हैं. एक ऑप्शन विक्रेता को अधिक जोखिम और मार्जिन रखना पड़ता है, जो खरीदार द्वारा उसे मिलने वाले प्रीमियम से अधिक होता है. हालांकि, फ्यूचर सौदा खरीदने या बेचने के लिए खरीदार और विक्रेता को समान मार्जिन रखना होता है.
अमूमन यह पूरे सौदे की वैल्यू के 10 फीसदी तक होता है. एक ऑप्शन को लंबे समय तक अपने पास रखना वैल्यू कम कर देता है.फ्यूचर्स के साथ ऐसा नहीं होता क्योंकि उन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है.
हालांकि, फ्यूचर्स में फायदा और नुकसान असीमित हो सकता है. ऑप्शन के मामले में (खरीदार के लिए) घाटे सिर्फ चुकाए गए प्रीमियम तक ही सीमित होता है, जबकि मुनाफा काफी अधिक हो सकता है.
प्रश्न: इन सौदों का कारोबार कहां और कैसे होता है?
उत्तर: इन सौदों के के लिए आप ब्रोकर के साथ ट्रेडिंग खाता खुलवा सकते हैं. कैश सेटलमेंट के चलते इन सौदों के लिए डीमैट जरूरी नहीं होगा. इन सौदों का कारोबार बीएसई और एनएसई पर होता है.एनएसई पर इन सौदों की लिक्विडिटी अधिक होती है.
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F&O: फ्यूचर्स-ऑप्शंस देते हैं कम लागत में ज्यादा पैसा कमाने का मौका
Futures & Options: आप केवल स्टॉक नहीं, बल्कि कृषि वस्तुओं, पेट्रोलियम, सोना, मुद्रा आदि में भी फ्यूचर्स-ऑप्शंस ट्रेडिंग कर सकते हैं.
- Vijay Parmar
- Publish Date - July 27, 2021 / 02:38 PM IST
Future & Option: कम इन्वेस्टमेंट करके ज्यादा मुनाफा कमाना कौन नहीं चाहेगा? सभी लोग ऐसा चाहते हैं और उसके लिए मार्केट में कई तरह के विकल्प उपलब्ध हैं. आज हम ऐसे ही एक विकल्प, यानी फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) डेरिवेटिव्स के बारे में जानेंगे. यह आपको केवल स्टॉक फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझना नहीं, बल्कि कृषि वस्तुओं, पेट्रोलियम, सोना, मुद्रा आदि में भी ट्रेडिंग करके पैसा कमाने का मौका देता है. इससे आपको कीमतों में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचने में मदद मिलती है.
फ्यूचर्स (Futures) क्या होता है?
कई प्रकार के डेरिवेटिव (derivative) में से एक प्रकार है फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट. इस प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार (या विक्रेता) किसी विशेष संपत्ति की एक निश्चित मात्रा को भविष्य की तारीख में एक विशिष्ट कीमत पर खरीदने (या बेचने) के लिए सहमत होता है.
उदाहरण से समझते हैंः आपने एक फिक्स्ड तारीख पर XYZ कंपनी के 50 शेयरों को 100 रुपये में खरीदने के लिए एक फ्युचर कोन्ट्राक्ट खरीदा है. जब ये कॉन्ट्रैक्ट की एक्स्पायरी होगी तब आप उसकी मौजूदा कीमत के बावजूद, 100 रुपये पर ही शेयर प्राप्त करेंगे. यहां तक कि अगर कीमत 120 रुपये तक जाती है, तो भी आपको प्रत्येक शेयर 100 रुपये पर मिलेगा, जिसका मतलब है कि आप 1,000 रुपये का शुद्ध लाभ कमाते हैं. यदि शेयर की कीमत 80 रुपये तक गिरती फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझना है, तो भी आपको उन्हें 100 रुपये पर खरीदना होगा, ऐसे में आपको 1,000 रुपये का नुकसान होगा.
ऑप्शंस (Options) क्या होते हैं?
डेरिवेटिव्स के अन्य एक प्रकार को ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट कहते हैं. यह फ्युचर कोन्ट्राक्ट से थोड़ा अलग है जिसमें एक खरीदार (या विक्रेता) को एक विशिष्ट पूर्व-निर्धारित तिथि पर एक निश्चित कीमत पर एक विशेष संपत्ति खरीदने (या बेचने) का अधिकार देता है, लेकिन ऐसा करना उसका दायित्व नहीं होता. ऑप्शंस दो तरह के होते हैं, कॉल ऑप्शंस और पुट ऑप्शंस.
कॉल ऑप्शन – मान लें कि आपने एक निश्चित तिथि पर XYZ कंपनी के 50 शेयर 100 रुपये पर खरीदने के लिए कॉल ऑप्शन खरीदा है, लेकिन शेयर की कीमत एक्स्पायरी के वक्त 80 रुपये तक गिर जाती है, और आप 1,000 रुपये के नुकसान में चले जाते हैं. तब आपके पास 100 रुपये में शेयर नहीं खरीदने का अधिकार है, इसलिए सौदे पर 1,000 रुपये खोने के बजाय, आपको केवल कॉन्ट्रैक्ट के लिए चुकाए गए प्रीमियम का नुकसान होगा, जो बहुत कम होता है.
पुट ऑप्शंस – इस प्रकार के ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में आप भविष्य में एक सहमत मूल्य पर संपत्ति बेच सकते हैं, लेकिन ऐसा करना आपका दायित्व नहीं. यदि आपके पास XYZ कंपनी के शेयरों को भविष्य की तारीख में 100 रुपये पर बेचने का विकल्प है, और समाप्ति तिथि से पहले शेयर की कीमतें 120 रुपये तक बढ़ जाती हैं, तो आपके फ्यूचर्स ट्रेडिंग को समझना पास शेयर को 100 रुपये में नहीं बेचने का विकल्प है, ऐसे में आप 1,000 रुपये के नुकसान से बच सकते हैं.
फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस में ट्रेडिंगः
फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) का एक फायदा यह है कि आप इन्हें विभिन्न एक्सचेंजों पर स्वतंत्र रूप से व्यापार कर सकते हैं. आप स्टॉक एक्सचेंजों पर स्टॉक F&O का व्यापार कर सकते हैं, कमोडिटी एक्सचेंजों पर कमोडिटी आदि. F&O ट्रेडिंग में आपको 1 लाख रुपये के शेयर या कमोडिटी में ट्रेडिंग करने के लिए केवल 10,000 रुपये की जरूरत पड़ती है, क्योंकि आपको उसका पूरा दाम चुकाने के बजाय 10-30% मार्जिन पर सौदा करने का मौका मिलता है. आप किसी वस्तुओं को खरीदे बिना उसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव का लाभ उठा सकते हैं.
F&O ट्रेडिंग में जोखिमः
फ्यूचर्स बाजार में हेजिंग का टूल नहीं है यानी इसमें सौदे को ओपन (खुला) छोड़ते हैं या फिर स्टॉप लॉस लगाते हैं. स्टॉप लॉस न लगाया तो नुकसान ज्यादा होता है, जबकि पुट ऑप्शन में खरीदे हुए सौदे को हेज कर सकते हैं.