शेयर तरलता

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अधिकांश शेयर को सामान्य शेयर के तौर पर बेचा जाता है। सामान्य शेयर उनकी मूल्य वृद्धि तथा लाभांश में वृद्धि के माध्यम से बढ़ोतरी की संभावना पेश करते हैं। सामान्य शेयर के दामो में अधिमानी शेयरों के मुकाबले अत्यधिक तरलता होती है। सामान्य शेयरधारकों को आमतौर पर शेयरधारक बैठकों में मतदान का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
#3: अधिमानी शेयर क्या है?
अधिमानी शेयर नियत लाभांश के माध्यम से नियमित आय पेश करते हैं और शेयर के बढ़ते दामों के माध्यम से वृद्धि की संभावना होती है। अधिमानी शेयरों के दाम सामान्य शेयर के दाम के मुकाबले अधिक स्थिर होते हैं। अधिमानी शेयर निश्चित समय पर अपने शेयर भुनाने के अधिकार या अपने शेयर को निश्चित दाम पर सामान्य शेयर में परिवर्तित करने के अधिकार जैसी सुविधाएं पेश कर सकते हैं। तथापि, अधिमानी शेयर सामान्यत: मतदान के अधिकारों के साथ नहीं आते हैं।
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#4: शेयर से धन कैसे बनता है?
शेयर से धन बनाने के सामान्य तौर पर दो तरीके हैं। प्रथमत:, शेयर के मूल्य में वृद्धि हो सकती है। यदि आप शेयर के लिए किए गए भुगतान के एवज में अधिक दाम पर शेयर बेचते हैं, तो आपको पूंजीगत लाभ होता है। अनेक कारक शेयर के दाम को प्रभावित करते हैं। दूसरे, कंपनी लाभांश – इसके लाभ के हिस्से का भुगतान कर सकती है। कंपनियों को लाभांश का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होती है। यदि लाभांश का भुगतान किया जाता है, तो आपको अपने स्वयं के शेयरों की संख्या के आधार पर लाभांश प्राप्त होता है।
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#5: कुछ जोखिम क्या हैं?
शेयरों में निवेश से जुड़े दो प्रमुख जोखिम हैं कि प्रतिलाभ की कोई गारंटी नहीं है और आपको धन का नुकसान भी हो सकता है। कंपनी और आपके स्वामित्व वाले स्टॉक के प्रकार के आधार पर, आपको निवेश संबंधी शेयर तरलता अन्य कई तरह के जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है। एक वित्तीय सलाहकार जोखिमों को समझने, और यह सीखने कि जोखिमों का प्रबंधन कैसे करना है, में आपकी सहायता कर सकता है – उदाहरणार्थ, अपने पोर्टफोलियो का विविधिकरण करने के लिए।
राहत पैकेज से बैंकों को मिलेगी 70,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त तरलता सुविधा: SBI
एसबीआइ के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष ने रिपोर्ट में कहा कि सोमवार की घोषणाओं में व्यापक रूप से चार क्षेत्रों स्वास्थ्य पर्यटन एमएफआइ तथा कृषि पर जोर दिया गया है। जिन अन्य उपायों की घोषणा शेयर तरलता की गई है उनसे पहले से मौजूद व्यवस्था को बेहतर किया जा सकेगा।
नई दिल्ली, पीटीआइ। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का मानना है कि महामारी से प्रभावित क्षेत्रों को कर्ज प्रदान करने की नवीनतम पहल तथा अन्य राहत उपायों से राजकोषीय घाटे पर 0.60 फीसद का अतिरिक्त असर होगा। इससे बैंकों के लिए 70,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त तरलता सुविधा उपलब्ध होगी।
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वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) आरबीआई द्वारा बैंक के क्रेडिट और अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के विस्तार को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाने वाला एक उपकरण है। निम्नलिखित में शेयर तरलता से कौन-सा कथन बढ़ी हुई एसएलआर के मामले में अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को दर्शाता है?
I. बैंकों की तरलता तक पहुंच होगी
II. यह मुद्रास्फीति को रोक शेयर तरलता सकता है
III. इससे बैंक की क्रेडिट क्षमता कम हो जाएगी
उत्तर (C) सही है, बता दें, भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को देश के मुद्रा बाजारों को प्रभावित करने वाली तरलता दाब को कम करने के लिए सांविधिक नकदी भंडार को और बढ़ाने की अनुमति दी है।
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सुशासन दिवस: 25 दिसंबरभारत में प्रतिवर्ष
अर्थव्यवस्था ________ ने 'ग्रीन फिक्स्ड
एल्बिनो इंडियन फ्लैपशेल कछुए संदर्भ: भारतीय
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जीडीपी ग्रोथ में भी कमी का अनुमान
यूरोपीय अर्थव्यवस्था महंगाई की तगड़ी मार झेल रही है। शेयर तरलता रूस की रणनीतिक चालों के कारण इन बाजारों में तेल-गैस कीमतों में भी तेज बढ़ोतरी हुई है। इसका सीधा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है और उसकी जीडीपी ग्रोथ कम हो रही है। ईसीबी ने अपने पूर्व के अध्ययन में 2022 में जीडीपी में 2.1 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया था, लेकिन नए अनुमानों में इसे एक फीसदी से भी नीचे केवल 0.9 फीसदी तक रह जाने का अनुमान लगाया गया है। कई देशों में नकारात्मक वृद्धि होने का अनुमान भी लगाया जा रहा है।
अमेरिका और यूरोपीय बाजार भारत के बड़े बिजनेस पार्टनर हैं। इन देशों को भारतीय सामानों की बड़ी मात्रा का निर्यात किया जाता है। लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि महंगाई और कमजोर जीडीपी ग्रोथ के कारण इन देशों में आम आदमी की क्रय शक्ति में कमी आएगी और भारतीय उत्पादों की मांग घट सकती है। भारत के लिए केवल संतोष करने वाली बात यह है कि इसी शेयर तरलता बीच चीन में कोरोना की मार दोबारा तेज हो चुकी है और उसके कई बाजारों में अभी भी उत्पादन नहीं हो पा रहा है। चीन के दूसरे बाजारों में भी सप्लाई चेन टूट रही है। इससे चीनी वस्तुओं का निर्यात नहीं हो पा रहा है, जिसका लाभ भारत को मिल सकता है।
विस्तार
यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ECB) ने महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए नीतिगत जमा दरों में अप्रत्याशित 75 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर दी है। ईसीबी के इस निर्णय को एतिहासिक बताया जा रहा है और अनुमान है कि आने वाले दिनों में नीतिगत दरों में और ज्यादा बढ़ोतरी की जा सकती है। अमेरिकी सेंट्रल बैंक ने पहले ही नीतिगत दरों में बढ़ोतरी का रुख अपनाया हुआ है। आने वाले दिनों में अमेरिकी सेंट्रल बैंक भी नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर सकता है। इसका सीधा असर भारतीय शेयर बाजार पर पड़ सकता है। इससे विदेशी निवेशक एक बार फिर विदेशी घरेलू बाजारों की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे भारतीय शेयर बाजार में एक बार फिर बड़ी गिरावट हो सकती है। इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है।
पूरी दुनिया में ज्यादातर देश महंगाई की मार से जूझ रहे हैं। महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए नीतिगत दरों को बढ़ाकर बाजार से तरलता घटाने को इससे निपटने का आजमाया हुआ तरीका माना जाता है। इसी कारण दुनिया के ज्यादातर बैंक नीतिगत दरों को बढ़ाकर महंगाई पर नियंत्रण करने की नीति अपनाए हुए हैं। अमेरिका के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी पॉलिसी रेट्स में बढ़ोतरी शेयर तरलता की थी। अब यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने भी नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर दी है। माना जा रहा है कि इन बैंकों के द्वारा जल्द ही दोबारा नीतिगत दरों में बढ़ोतरी की जा सकती है।
यूरोप में बनी रहेगी महंगाई
ईसीबी का अनुमान है कि यूरोपीय देशों में आने वाले समय में भी महंगाई की औसत दर 8.1 फीसदी रह सकती है। अगले वर्ष महंगाई में कुछ राहत मिलने के आसार हैं, लेकिन इसके बाद भी यह 5.5 फीसदी बनी रह सकती है, जो आम आदमी की जिंदगी को परेशानी में डालने वाली रहेगी। हालांकि, इसके अगले वर्ष यानी 2024 तक महंगाई पर नियंत्रण पाने का अनुमान लगाया गया है। 2024 तक महंगाई दर घटकर 2.3 शेयर तरलता फीसदी तक रह सकती है।
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. नागेंद्र कुमार शर्मा ने अमर उजाला से कहा कि अमेरिका-यूरोपीय केंद्रीय बैंकों के द्वारा नीतिगत दरों में शेयर तरलता बढ़ोतरी का सीधा असर भारतीय शेयर बाजार पर पड़ सकता है। विदेशी निवेशकों शेयर तरलता ने भारतीय बाजारों में कमजोर रिटर्न को देखते हुए विदेशी बाजारों का रुख करना शुरू कर दिया था। लेकिन भारत में महंगाई के नियंत्रण में आने और शेयर बाजार में स्थिरता बने रहने के कारण वे शीघ्र ही लौट आए। लेकिन जिस प्रकार से यूरोपीय बैंक ने अब तक की नीतिगत दरों में सबसे बड़ी बढ़ोतरी की है, इससे विदेशी निवेशक एक बार फिर विदेशी बाजारों का रुख कर सकते हैं। इसका सीधा असर भारतीय बाजारों पर पड़ना तय है।