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मुद्रा पहलू

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ईडी (प्रवर्तन निदेशालय)

प्रवर्तन निदेशालय, मुख्यालय, नई दिल्ली में वर्ष 1956 में स्थापित किया गया था। यह विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (फेमा) और धन आशोधन अधिनियम के तहत कुछ प्रावधानों को लागू करने के लिए उत्तरदायी है। पीएमएल के तहत मामलों की जांच और मुकदमे से संबंधित कार्य प्रवर्तन निदेशालय को सौंपे गए हैं। यह निदेशालय, परिचालन उद्देश्यों के लिए राजस्व विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन है; फेमा के नीतिगत पहलू, इसके विधायन तथा संशोधन के आर्थिक कार्य विभाग के दायरे में हैं। हालांकि, पीएमएल अधिनियम से संबंधित नीतिगत मुद्दे, राजस्व विभाग की जिम्मेदारी है। फेमा के प्रभावी (1 जून 2000) लागू होने से पूर्व, निदेशालय ने विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 के तहत नियमों को लागू कर दिया है।

श्री सुधीर नाथ, अपर सचिव पद के एक अधिकारी इसके निदेशक हैं। इसके मुख्यालय में दो विशेष निदेशक और मुंबई में एक विशेष निदेशक हैं।

निदेशालय में 10 जोनल अधिकारी हैं जिनमें से प्रत्येक का अध्यक्ष एक उप निदेशक तथा 11 उप जोनल अधिकारी हैं जिनमें से प्रत्येक का अध्यक्ष एक सहायक निदेशक है।

जोनल कार्यालय- मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, चंडीगढ़, लखनऊ, कोच्चि, अहमदाबाद, बंगलौर तथा हैदराबाद।

उप जोनल कार्यालय- जयपुर, जालंधर, श्रीनगर, वाराणसी, गुवाहाटी, कालीकट, इंदौर, नागपुर, पटना, भुवनेश्वर तथा मदुरै।

क्रिप्टोकरेंसी उद्योग ने की निवेशकों से शांत रहने की अपील,सरकार से सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर कदम उठाने का आग्रह

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी इस महीने के प्रारंभ में क्रिप्टोकरेंसी को अनुमति दिए जाने के खिलाफ सख्त विचार व्यक्त किए थे और कहा था कि ये वित्तीय प्रणाली के लिए गंभीर खतरा है।

Edited मुद्रा पहलू by: India TV Paisa Desk
Published on: November 24, 2021 18:56 IST

Crypto industry urges govt to take nuanced approach, asks investors to remain calm- India TV Hindi

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Crypto industry urges govt to take nuanced approach, asks investors to remain calm

Highlights

  • प्रस्तावित विधेयक में भारत में सभी तरह की निजी क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित करने की बात कही गई है
  • भारत में अभी क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग के संबंध में न तो कोई प्रतिबंध है और न ही कोई नियमन की व्यवस्था है
  • उद्योग निवेशकों की सुरक्षा को सबसे आगे रखते हुए सभी हितधारकों के साथ सक्रिय रूप से संवाद कर रहा है

नई दिल्ली। आभासी मुद्रा क्रिप्टोकरेंसी उद्योग ने बुधवार को सरकार से भारत में क्रिप्टो परिसंपत्तियों को विनियमित करने के लिए सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए दृष्टिकोण अपनाने की अपील की है। उद्योग के दिग्गजों ने देश में निवेशकों को शांत रहने तथा जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचने का भी आग्रह किया है। सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित विधेयक पेश कर सकती है। इसमें निजी क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित करने तथा रिजर्व बैंक द्वारा जारी डिजिटल मुद्रा को विनियमित करने के लिए ढांचा तैयार करने की बात कही गई है।

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लोकसभा के बुलेटिन के अनुसार, संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान निचले सदन में पेश किए जाने वाले विधेयकों की सूची में क्रिप्टोकरेंसी एवं आधिकारिक डिजिटल मुद्रा विनियमन विधेयक 2021 सूचीबद्ध है। इस विधेयक में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी आधिकारिक डिजिटल मुद्रा के सृजन के लिए एक सहायक ढांचा सृजित करने की बात कही गई है। इस प्रस्तावित विधेयक में भारत में सभी तरह की निजी क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित करने की बात कही गई है। हालांकि, इसमें कुछ अपवाद भी है, ताकि क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित प्रौद्योगिकी एवं इसके उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए। भारत में अभी क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग के संबंध में न तो कोई प्रतिबंध है और न ही कोई नियमन की व्यवस्था है।

बाय-यूक्वाइन के सीईओ शिवम ठकराल ने कहा कि कंपनी उम्मीद करती है कि विधेयक भारतीय क्रिप्टो धारकों, भारतीय क्रिप्टो उद्यमियों और निवेशकों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखेगा, जिन्होंने भारत में क्रिप्टो करेंसी के विकास में अपना विश्वास रखा है। उन्होंने कहा कि नई ब्लॉकचेन परियोजनाओं के फलने-फूलने के लिए क्रिप्टो विधेयक में पर्याप्त लचीलापन होना चाहिए और हमारा मानना है कि व्यापार के लिए भारत में किसी भी एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने से पहले नई क्रिप्टोकरेंसी के लिए एक मानक प्रक्रिया होनी चाहिए। ठकराल ने कहा कि मुझे लगता है कि बिटकॉइन और एथेरियम जैसी लोकप्रिय क्रिप्टो परिसंपत्तियों को एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने के लिए नियामकों द्वारा पूर्व-अनुमोदित किया जाएगा। हम सरकार से क्रिप्टो परिसंपत्तियों के कराधान और फाइलिंग पर तत्काल स्थिति स्पष्ट करने का भी अनुरोध करते हैं।

कॉइनस्विच कुबेर के संस्थापक और सीईओ आशीष सिंघल ने कहा कि उद्योग निवेशकों की सुरक्षा को सबसे आगे रखते हुए सभी हितधारकों के साथ सक्रिय रूप से संवाद कर रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ हफ्तों में हमारी चर्चा से संकेत मिलता है कि ग्राहकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर एक व्यापक सहमति है, वित्तीय प्रणाली की स्थिरता को सुदृढ़ किया गया है और भारत क्रिप्टो प्रौद्योगिकी क्रांति का लाभ उठाने में सक्षम है। ब्लॉकचेन और क्रिप्टो एसेट्स काउंसिल (बीएसीसी) के सह-अध्यक्ष सिंघल ने कहा कि इस समय, मैं देश के सभी क्रिप्टो संपत्ति निवेशकों से शांत बने रहने की अपील करता हूं, वे घबराहट में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले अपनी तरफ से शोध करें।

ओकेएक्सडॉटकॉम के सीईओ जय हाव ने कहा कि भारत में दुनिया में सबसे अधिक क्रिप्टो धारक हैं और देश में इतने सारे क्रिप्टो निवेशकों के हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी सरकार पर है। उन्होंने कहा कि हम सरकार से भारत में क्रिप्टो परिसंपत्तियों को विनियमित करने के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाने की अपील करते हैं। क्रिप्टोकरेंसी विधेयक के सकारात्मक परिणाम के साथ, भारत क्रिप्टो, डेफी (विकेंद्रित वित्त) और एनएफटी (नॉन फंजिबल टोकन) में वैश्विक गुरू बनने की एक रोमांचक यात्रा शुरू करेगा।

भारत में अभी क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग के संबंध में न तो कोई प्रतिबंध है और न ही कोई नियमन की व्यवस्था है। इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी महीने क्रिप्टोकरेंसी को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की थी और संकेत दिया था कि इस मुद्दे से निपटने के लिए सख्त विनियमन संबंधी कदम उठाए जाएंगे। हाल के दिनों में काफी संख्या में ऐसे विज्ञापन आ रहे हैं जिसमें क्रिप्टोकरेंसी में निवेश मुद्रा पहलू में काफी फायदे का वादा किया गया और इनमें फिल्मी हस्तियों को भी दिखाया गया। ऐसे में निवेशकों को गुमराह करने वाले वादों को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही थी।

पिछले सप्ताह वित्त मामलों पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष एवं भाजपा सांसद जयंत सिन्हा ने क्रिप्टो एक्सचेंजों, ब्लॉकचेन एवं क्रिप्टो आस्ति परिषद (बीएसीसी) के प्रतिनिधियों एवं अन्य लोगों से मुलाकात की थी और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि क्रिप्टो करेंसी को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि इसका नियमन किया जाना चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक ने बार—बार क्रिप्टोकरेंसी के खिलाफ सख्त विचार व्यक्त किए हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी इस महीने के प्रारंभ में क्रिप्टोकरेंसी को अनुमति दिए जाने के खिलाफ सख्त विचार व्यक्त किए थे और कहा था कि ये वित्तीय प्रणाली के लिए गंभीर खतरा है।

सुशासन की दिशा में सफलता की इबारत – लोक सेवा गारंटी Reading Time : 7 minutes -->

इसी भावना एवं लक्ष्य को केंद्र में रखता है – मध्य प्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम, जो सुशासन के लिए प्रदेश का गौरव भी बन गया है और पहचान भी। इस अधिनियम ने जनता के अधिकार को प्राथमिकता तो दी ही, सरकारी स्तर पर होने वाले अनावश्यक विलंब एवं उससे उपजने वाली स्थितियों में आवश्यक सुधार करने की पहल भी की। सुधार के इस क्रांतिकारी कदम के बाद मध्य प्रदेश सुशासन की दिशा में अग्रणी राज्य के रूप में उभरकर सामने आया है।

इस समय भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए भारत में ज़मीनी स्तर पर कई तरह के अहम कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है। इसी प्रगति की अहम कड़ी है, मध्य प्रदेश शासन का लोक सेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम। मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के शब्दों में – “यह अधिनियम नागरिकों को अधिकार संपन्न बनाने का नया आयाम है, यह क़ानून नागरिकों के अधिकारों को मज़बूत करने के साथ ही लोक सेवकों को अधिक संवेदनशील एवं जवाबदेह बनाता है।“

2010 में भारत का पहला राज्य बना मध्य प्रदेश, जिसने लोक सेवा गारंटी कानून लागू किया। इस अधिनियम के बाद आम जनता याचना की मुद्रा में नहीं है, बल्कि अधिकार को अधिकार के रूप में प्राप्त करने की मुद्रा में है।

कानून की प्रमुख विशेषताएं

  • हर सेवा प्रदान करने के लिए एक समय सीमा तय की गयी है जिसके भीतर ज़िम्मेदार अधिकारी को सेवा प्रदान करनी होगी।
  • समय सीमा में कार्य न करने या अनावश्यक विलंब करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों को अर्थ दंड का प्रावधान मुद्रा पहलू है।
  • प्रावधान के अनुसार दोषी अधिकारियों/कर्मचारियों से दंडस्वरूप मिलने वाली राशि पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति के रूप में प्रदान की जा सकती है।
  • प्रदेश में अब तक इस अधिनियम के अंतर्गत 44 विभागों की 372 सेवाओं को अधिसूचित किया जा चुका है।

सुशासन के 3 प्रमुख पहलू होते हैं और इन तीनों ही पहलुओं पर यह क़ानून अपनी सार्थकता मुद्रा पहलू सिद्ध करते हुए खरा उतरता है –

  1. जवाबदेही: यह क़ानून लोगों को अधिसूचित सेवाएं प्रदान करने के लिए विभाग स्तर पर अधिकारियों की जवाबदेही तय करता है।
  2. पारदर्शिता: इस क़ानून के लागू होने के बाद व्यवस्था और नागरिकों के बीच कार्यवाहियों को लेकर पारदर्शिता बढ़ी है।
  3. समयबद्ध कार्यवाही: इस क़ानून के प्रावधान के अंतर्गत हर सेवा के प्रदाय के लिए एक समय सीमा तय की गयी है जिसमें आवेदन का निराकरण किया जाना है।

मध्य प्रदेश सरकार इस कानून को और अधिक प्रबल करने की दिशा में लगातार गतिशील है। वास्तव में, शक्ति एवं लाभ के केंद्र में आम आदमी को लाने की दृष्टि रखने वाली इस क्रांतिकारी पहल को शुरुआत से ही बेहतर प्रतिसाद प्राप्त हुआ। 2010 में इस कानून के लागू होन के एक साल में ही 70 लाख और 2014 तक 2.75 करोड़ लोग लाभान्वित हो चुके हैं और लगातार हो रहे हैं। प्रदेश सरकार सतत दृष्टि रख रही है कि इस दिशा में सुधार की और चुनौतियां क्या हैं और सटीक समाधान क्या हो सकता है।

हर बढ़ते चरण में, और सेवाओं को इस कानून के दायरे में लाना, गांव.गांव तक सेवा को सुलभ कराना, प्रक्रिया को और सरल बनाना, तकनीक की मदद से क्रियान्वयन करना आदि विषयों को लेकर मध्य प्रदेश सजग रहा है। हर संभव प्रयास के लिए कृत संकल्पित प्रदेश सरकार लोक सेवा प्रदाय गारंटी देते हुए अंतिम व्यक्ति तक अपनी पहुंच बनाने का मिशन और विज़न रखती है। लोक सेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम “सबका साथ, सबका विकास” सूत्रवाक्य की परिकल्पना को चरितार्थ भी कर रहा है। अतिशयोक्ति नहीं है कि सुशासन एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के मामले में मध्य प्रदेश, देश में लगातार मिसाल बन रहा है।

रुपये के कमजोर होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को होने वाले फायदे और नुकसान

1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है. इस लेख में हम यह बताने जा रहे हैं कि रुपये की इस गिरावट का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ मुद्रा पहलू रहा है.

Falling Indian Currency

भारत में इस समय सबसे अधिक चर्चा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारत के गिरते रुपये के मूल्य की हो रही है. अक्टूबर 12, 2018 को जब बाजार खुला तो भारत में एक डॉलर का मूल्य 73.64 रुपये हो गया था. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 मुद्रा पहलू था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है.

लेकिन ऐसा नही है कि डॉलर के सापेक्ष केवल रुपया कमजोर हो रहा है, विश्व के अन्य देशों की मुद्रा जैसे ब्राजीली रियाल, चीनी युआन और अफ़्रीकी रैंड भी कमजोर हो रहे हैं. रुपया, एशिया में सबसे ज्यादा कमजोर होने वाली करेंसी बन गया है लेकिन ब्राजीली रियाल 14 फीसदी और दक्षिण अफ्रीकी रैंड 11 फीसदी तक टूट चुके हैं.

जैसा कि हम सबको पता है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. उसी प्रकार रुपये के कमजोर होने के भी दो पहलू हैं. आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि रुपये के कमजोर होने के भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं.

रूपये के कमजोर होने के निम्न कारण हैं;

1. कच्चे तेल के दामों में वृद्धि

2. अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध

3. भारत का बढ़ता व्यापार घाटा

4. भारत से पूँजी का बहिर्गमन

5. देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल

6. अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि

डॉलर के कमजोर होने के सकारात्मक प्रभाव

1. भारत के निर्यातकों को लाभ

किसी मुल्क की करेंसी में गिरावट उसके लिए बुरी खबर है लेकिन एक्सपोर्ट आधारित सेक्टर्स को इस गिरावट से लाभ होता है. अमेरिकी डॉलर को पूरे विश्व में हर देश द्वारा स्वीकार किया जाता है इसलिए विश्व का 80% व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है.

जब विदेशी आयातक, भारत से सामान आयात करते हैं तो उन्हें एक डॉलर के बदले ज्यादा रुपये मिलते हैं जिससे वे और अधिक आयात करते हैं और भारत का निर्यात बढ़ता है जिससे देश का भुगतान संतुलन सुधरता है.

ऐसे में डॉलर को रुपया में एक्सचेंज करने पर उसकी वैल्यू बढ़ जा रही है. साथ ही एक्सपोर्ट्स जो नई डील कर रहे हैं वो नए रेट पर हो रही है, डॉलर मजबूत होने से एक्सपोर्टर्स को ज्यादा रकम मिल रही है.

यही वजह है कि भारत समेत कई एशियाई देश अपने करेंसी को गिरने दे रहे हैं क्योंकि उन्हें पेमेंट जो मिलता है वो डॉलर में होता है. ये देश चाहते हैं कि ट्रेड वॉर के चलते इनका एक्सपोर्ट कम न हो.

2. पर्यटन क्षेत्र को फायदा

जिन देशों की करेंसी का मूल्य डॉलर के सापेक्ष मूल्य घट रहा है वहां यात्रियों की संख्या में जोरदार वृद्धि हो रही है. विदेशी पर्यटकों को कम कीमत में अधिक घरेलू करेंसी मिलेगी और यात्रा का खर्च कम हो जाएगा.

रुपया कमजोर होने से विदेशी पर्यटक भारत की ओर खिंचे चले आ रहे हैं. क्योंकि भारत के लिए टूर पैकेज सस्ते हो गए हैं. टूर ऑपरेटर्स की मानें तो गिरते रुपये के चलते टूरिस्ट कारोबार इस साल बेहतर रिजल्ट दे सकता है. शुरुआती रिजल्ट अच्छे मिल भी रहे हैं, पिछले कुछ महीनों में होटल की बुकिंग में करीब 10 फीसदी की वृद्धि हुई है. हालांकि डॉलर के मजबूत होने से भारतीय लोग विदेश घूमने से कतरा रहे हैं क्य़ोंकि विदेश घूमने का पैकेज दिनों दिन महंगा होता जा रहा है.

3. आईटी-ऑटो सेक्टर के लिए अच्छे दिन

रूपये में गिरावट का फायदा आईटी-ऑटो सेक्टर को हो रहा है. सॉफ्टवेयर मुद्रा पहलू सर्विसेज एक्सपोर्ट से आईटी इंडस्ट्री को फायदा होगा क्योंकि उन्हें अब निर्यात करने पर जो डॉलर मिल रहे हैं उनकी वैल्यू दिनों दिन बढती जा रही है.

इसके अलावा विदेश में गाड़ियों का निर्यात करने वाली कंपनियों का रेवेन्यू भी बढ़ेगा. गौरतलब है कि इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी बड़ी आईटी कंपनियां का मुख्यालय अमेरिका में है और वो वहां बड़े पैमाने पर कारोबार करती है.

डॉलर के कमजोर होने के नकारात्मक प्रभाव

1. चालू खाता घाटा और विपरीत भुगतान संतुलन में वृद्धि;

जैसा कि हम सभी को पता है कि भारत अपनी जरुरत का केवल 17% तेल ही पैदा करता है और बकाया का 83% आयात करता है और यही कारण है कि मुद्रा पहलू भारत के आयात बिल में सबसे बड़ा हिस्सा कच्चे तेल के मूल्यों का होता है.

यदि रुपया कमजोर होता है तो भारत की कच्चा तेल आयात करने वाली कंपनियों को डॉलर के रूप में अधिक भुगतान करना पड़ता है. इसलिए जब देश में डॉलर कम आता है और बाहर ज्यादा जाता है तो देश का भुगतान संतुलन विपरीत और चालू खाता घाटा बढ़ जाता है.

2. विदेशी मुद्रा भंडार में कमी:

देश के अंदर जब देश के रूपये का मूल्य घट जाता है तो इसका बड़ा कारण डॉलर की मांग की तुलना में पूर्ती कम होना होता है. ऐसी स्थिति में देश का केन्द्रीय बैंक पूँजी बाजार में डॉलर की पूर्ती बढ़ाने के लिए देश के विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर निकालता है जिससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी हो जाती है. इससे भविष्य में देश के लिए आयात संकट पैदा हो सकता है और यदि भारत ने विदेशों को डॉलर में भुगतान नही किया तो वे भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डिफाल्टर भी घोषित किया करा सकते हैं जिससे कोई भी देश भारत को सामान नहीं बेचेगा.

3. देश में महंगाई का बढ़ना:

भारत अपनी जरूरत का करीब 83% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं. जो कि आगे चलकर माल धुलाई की लागत को मुद्रा पहलू बढ़ा देता है जिससे फलों, सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ जाते.

एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

सारांश में यह कहना ठीक है कि डॉलर की तुलना में रूपए का गिरना अंततः अर्थव्यवस्था के लिए कई सकरात्मक बदलाव के साथ साथ नकारात्मक बदलाव भी लाता है. लेकिन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत होने के लिए उस देश की मुद्रा का मजबूत होना बहुत जरूरी होता है. इसलिए सरकार और रिज़र्व बैंक को मिलकर रुपये की गिरावट को रोकने के प्रयास करने चाहिए.

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