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मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ

मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ

"Universal" Meaning In Hindi

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हिंदी भाषा के शब्द अर्थ

हिंदी भाषा के शब्द अर्थ – हिंदी भाषा के विकास के क्रम में बहुत सी बोलियों का प्रचलन हुआ। असंख्य लेखकों व कवियों ने विभिन्न भाषाओं में अपनी रचनाएं की हैं। हिंदी भाषा में विभिन्न बोलियों के शब्दों और उनके अर्थ को इस लेख में दिया गया है। हिंदी के साथ अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्दों का भी समन्वय इस पोस्ट में किया गया है।

पालेश्वर मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ शर्मा / परिचय

छत्‍तीसगढ प्रदेश के प्रतिष्ठित साहित्‍यकार, भाषाविद, शिक्षाशास्‍त्री, डॉ. पालेश्‍वर शर्मा किसी परिचय के मोहताज नहीं है । मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ हिन्‍दी के लेखक तथा समीक्षक के रूप में प्रख्‍यात होने के बाद, डॉ. शर्मा ने विगत तीन दशकों से अपने मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ लेखन कर्म को छत्‍तीसगढ़ी भाषा, साहित्‍य एवं संस्‍कृति के संवर्धन के लिए समर्पित कर दिया है । हिन्‍दी एवं छत्‍तीसगढ़ी शब्‍दों के साथ और गोष्ठियों और चर्चाओं में प्राध्‍यापकीय मुद्रा में अर्थ पूछना और फिर उत्‍तर देकर सबकों चमत्‍कृत कर ज्ञान के अछूते क्षेत्र से परिचित कराना उनकी विशेष प्रतिभा और शब्‍द-शिल्‍पी होने का प्रमाण है ।

छत्‍तीसगढ़ी गद्य का सौंदर्य निर्दिष्‍ट कराने वाले तथा लोक कथात्‍मक कहानियों से छत्‍तीसगढी कला साहित्‍य का समारंभ करने वाले ये ऐसे कथाकार हैं जिन्‍हें लोककथ्‍थकड और शिष्‍ट कथाकार का संधिस्‍थल कहा जा सकता है । प्रयास प्रकाशन ने उनकी कहानियों को भोजली त्रैमासिक छत्‍तीसगढी पत्रिका में प्रकाशित करके और फिर सुसक झन कुररी सुरता ले में संग्रहित करके एतिहासिक कार्य किया । बाद में इनकी अन्‍य कहानियां तिरिया जनम झनि देय – शीर्षक से छिपी जिसे एम.ए. हिन्‍दी के पाठ्यक्रम में समावेशित किया गया । इसका द्वितीय संस्‍करण अभी हाल में बिलासा कला मंच ने प्रकाशित किया है । लोक कथात्‍मक आंचलिक कहानियां छत्‍तीसगढ के इतिहास और संस्‍कृति की धरोहर है । इन कहानियों की भाषा शैली अत्‍यंत प्रभावोत्‍पादक और मानक छत्‍तीसगढी गद्य के उदाहरण है । डॉ. शर्मा की अन्‍य लोकप्रिय कृति गुडी के गोठ- बात नवभारत में प्रकाशित स्‍तभं का चुनिंदा संकलन है । छत्‍तीसगढ़ी गद्य की आदर्श संस्‍थापना की दृष्टि से तीनों कृतियां अत्‍यंत म हत्‍वपूर्ण है ।

डॉ. शर्मा ने सन् 1973 में छत्‍तीसगढ़ के कृषक जीवन की शब्‍दावली पर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्‍त की । इसके मुख और पूंछ को जहां छत्‍तीसगढ़ का इतिहास एवं परम्‍परा के रूप में प्रस्‍तुत किया गया वही मुख्‍यांश को छत्‍तीसगढ़ी हिन्‍दी शब्‍दकोश के रूप में विलासा कला मंच ने छापा । इसके पूर्व के डॉ. रमेशचन्‍द्र महरोत्रा के शब्‍दकोश में रायपुरी शब्‍द अधिक थे । डॉ. शर्मा ने उसे बिलासपुरी के साथ समन्वित कर वृहद विस्‍तृत मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ किया । इस तरह प्रमाणिक शब्‍द शिल्‍पी, कोशकार, इतिहास तथा संस्‍कृति के पुरोधा के रूप में डॉ. शर्मा प्रतिष्ठित हुए । रतनपुर और मल्‍हार छत्‍तीसगढ के पुरातत्‍व के संग्रहालय हैं । इन पर दो पुस्‍तकें आपने लिखी । मल्‍हार की डिडिनदाई पर पहली बार प्रमाणिक प्रकाश आपने डाला । इसी तरह छत्‍तीसगढ़ के व्रत, त्‍यौहार पर अरपा पाकेट बुक्‍स की प्रस्‍तुति भी उल्‍लेखनीय कही जा सकती है । छत्‍तीसगढ़ी लोकसाहित्‍य पर तो इनके अनेक लेख प्रकाशित व वार्ताओं के रूप में प्रसारित होकर प्रशांशित हुए हैं । इस तरह डॉ. शर्मा छत्‍तीसगढ के जीवंत इन साइक्‍लोपीडिया हैं ।

समय-समय पर इन्‍हें प्रादेशिक व क्षेत्रीय पुरस्‍कारों व सम्‍मानों से अलंकृत किया गया है । इन्‍हें प्रदेश का सर्वोच्‍च साहित्‍य व संस्‍कृति सम्‍मान भी दिया गया है । डॉ. शर्मा तो कबीर की तरह अलमस्‍त और नागर्जुन की तरह फक्‍कड़ साहित्‍यकार हैं । इन्‍हें इन सबसे कोई खास सरोकार भी नहीं ।

डॉ. शर्मा लेखन व व्‍याख्‍यान दोनों में पटु हैं। हिन्‍दी में पहले भी प्राध्‍यापक, निबंधाकर व आलोचक के रूप में आपकी पहचान बना चुके थे । उनका प्रबंध पटल निबंध संग्रह (1969) प्रयास प्रकाशन से प्रकाशित व स्‍नातक स्‍तर पर विद्यार्थियों के लिए पठनीय प्रकाशन प्रमाणित हो चुका है । ऐसे शब्‍दों के जादूगर और छत्‍तीसगढ़ के माटी पुत्र की अनवरत सेवा-साधना का लाभ प्रदेश को मिल रहा है।

माता : श्रीमती सेवती शर्मा

पिता : पंडित श्‍यामलाल शर्मा

जन्‍मतिथि एवं ग्राम: 01 मई 1928, जांजगीर

शिक्षा: पी.एच.डी. भाषा- विज्ञान (छत्‍तीसगढ के कृषक जीवन की शब्‍दावली)

वर्तमान पता: 35 ए, विद्यानगर, बिलासपुर (छत्‍तीसगढ)

व्‍यवसाय: सी.एम.डी. कालेज में 32 वर्षो तक अध्‍यापन

अन्‍य अनुभाव: एन.सी.सी. मेजर, छात्र-संघ प्रभारी प्राध्‍यापक बीस वर्षो तक, वि.वि. परीक्षाऍं अधीक्षक (25 वर्षो तक) प्रमुख निरिक्षक वि.वि. परीक्षाऍं, छात्र जीवन में धावक, खेलकूद कबड्डी का खिलाडी रहा, कहानी प्रतियोगिताओं में अनेक पुरस्‍कार प्राप्‍त।

प्रकाशन/प्रसारण: मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ आकाशवाणी से डेढ सौ से अधिक रचनाऍं प्रसारित, समाचार पत्रों में शताधिक रचनाऍं प्रकाशित एवं छत्‍तीसगढ परिदर्शन एवं गुडी के गोठ – धारावाहिक नवभारत में निरंतर 125 सप्‍ताह तक प्रकाशित ।

शोध निर्देशन : दस छात्रों को पी.एच.डी. उपाधि के लिए सफल निर्देशन ।

प्रकाशित ग्रंथ : 1. प्रबंध पाटल (निजी निबंध संकलन) प्रथम संकलन (1955), द्वितीय संस्‍करण (1971)

2. सुसक झन कुररी सुरता ले, छत्‍तसीगढी कहानियों का निजी संकलन (1972)

3. तिरिया जनम झनि देय (अपनी कहानियों का संग्रह प्रथम संस्‍करण) एम.ए. हिन्‍दी कक्षा में पाठ्य पुस्‍तक (1990) पाठ्य पुस्‍तक दो संस्‍करण द्वितीय संस्‍करण (2002)

4. छत्‍तीसगढ का इतिहास एवं परंपरा प्रथम संस्‍करण। (म.प्र. हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन द्वारा वागीश्‍वरी पुरस्‍कार से सम्‍मानित)

5. नमस्‍तेअस्‍तु महामाये (1997)

6. गुडी के गोठ (पहला भाग)

7. डिडिनेश्‍वरी पार्वती महिमा (2000)

8. छत्‍तीसगढ के तीज-त्‍यौहार (2000)

9. छत्‍तीसगढ के लोकोक्ति मुहावरे (2001)

10. पं. रमाकांत मिश्र अभिनंदन ग्रंथ (2001)

11. छत्‍तीसगढ हिन्‍दी शब्‍द कोश (2001)

12. सुरूज साखी हे (ललित निबंध)

13. ज्‍योति धाम रतनपुर – मां महामाया (2003)

14. छत्‍तीसगढ की खेती किसानी (2003)

संपादित ग्रंथ: : पाठ्य पुस्‍तकें – एम.ए. हिन्‍दी कक्षा के लिए –

1. छत्‍तीसगढी काव्‍य संकलन (1988)

2. हिन्‍दी कहानी संकलन (1977)

3. रेखाचित्र तथा संस्‍मरण (1978)

4. रविशंकर वि.वि. घासीदास वि.वि. एम.ए. छत्‍तीसगढ में पाठय रचनाऍं –

अभिनंदन ग्रंथ: भारतेंदु साहित्‍य समिति द्वारा अभिनंदित अभिनंदन गंथ.

वर्ष का ग्रंथ : छत्‍तीसगढी हिन्‍दी शब्‍दकोश का संपादन । बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा विद्याकर कवि सम्‍मान (2003) ।


सम्‍मान : मध्‍यप्रदेश हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन द्वारा वागीश्‍वरी पुरस्‍कार, महंत बिसाहू दास स्‍मृति द्वारा छत्‍तीसगढ अस्मिता पुरस्‍कार (गुडी के गोठ) अखिल भारतीय लोक कथा पुरस्‍कार, विलासा कला मंच द्वारा बिलासा साहित्‍य सम्‍मान, तथा भारतेंदु साहित्‍य समिति बिलासपुर, छत्‍तीसगढ साहित्‍य समिति, रायपुर, भिलाई, भाटापारा, समन्‍वय, अमृत लाल महोत्‍सव समिति, गुरू घासीदास वि.वि. बिलासपुर, बालको लोक कला महोत्‍सव समिति द्वारा सम्‍मानित छत्‍तीसगढ लोक कला उन्‍नयन मंच भाटापारा द्वारा छत्‍तीसगढ निबंध प्रतियोगिता में विशेष सम्‍मान पुरस्‍कार आदि । बिलासा कला मंच द्वारा वयोवृद्ध सृजनशील साहित्‍यकार सम्‍मान निधि प्रदत्‍त। रोटरी क्‍लब, बिलासपुर वेस्‍ट 2002 का प्रशस्ति पत्र । बाबू रेवाराम साहित्‍य समिति रतनपुर छ.ग. अभिनंदन पत्र, वशिष्‍ठ सम्‍मान 1998 गुरू घासीदास विश्‍व विद्यालय छात्र संघर्ष समिति, मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ बिलासपुर द्वारा सम्‍मान, संरक्षक छत्‍तीसगढ हिन्‍दी साहित्‍य परिषद (छत्‍तीसगढ प्रदेश) छत्‍तीसगढ शासन द्वारा संस्‍कृत भाषा परिषद् छत्‍तीसगढी भाषा परिषद के मनोनीत सदस्‍य संस्‍कृति विभाग की पत्रिका बिहनिया के परामर्शक। रविशंकर वि.वि. बख्‍शी शोध-पीठ द्वारा साधना सम्‍मान (2005) पदुमलाल पुन्‍नालाल बख्‍शी सृजनशील साहित्‍य साधक सम्‍मान 2005। संस्‍कृति विभाग छत्‍तीसगढ शासन द्वारा पं. सुंदरलाल शर्मा सम्‍मान 2005।

"Cobra" Meaning In मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ Hindi

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मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ

दीनार स्वर्ण का सिक्का, जो प्राचीन समय में एशिया तथा यूरोप में प्रमुखता से चलता था। संस्कृत में दीनार का उल्लेख 'दीनारः' के रूप में मिलता है। कुषाण शासन काल के सोने के सिक्के का वजन 124 ग्रेन होता था, जबकि गुप्त काल में इस सिक्के का वजन 144 ग्रेन था। यह कुषाण के सिक्कों पर आधारित था। अपने रोमन रूप में दीनार का मूल्य क़रीब साढ़े चार ग्राम स्वर्ण के बराबर था। आज दुनिया के तमाम मुल्कों में दीनार धातु की मुद्रा की बजाय काग़ज़ के नोट के रूप में डटी हुई है।

विषय सूची

'दीनार' शब्द को अधिकतर भारतीय हिन्दी में मुस्लिम हमलावरों के साथ आया हुआ शब्द मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ मानते हैं। 'दीनार' का मतलब होता है- 'एक स्वर्ण मुद्रा' या 'अशरफी'। मूलतः यह शब्द रोमन शब्द से जन्मा है और क़रीब तीन सदी ईसा पू्र्व स्वर्ण मुद्रा के तौर पर इसका रोमन गणतंत्र में प्रचलन शुरू हुआ। रोम से ही 'दिनारियस' अरब क्षेत्र मे दीनार के रूप में पहुंचा। किसी ज़माने में यह मुद्रा भारत में चलती थी, लेकिन मुस्लिम शासन में दीनार का चलन नहीं रहा। [1]

संस्कृत में उल्लेख

संस्कृत में दीनार का उल्लेख दीनारः के रूप में मिलता है। भारतीय संस्कृति में दीनार किस हद तक रची-बसी थी, इसका उल्लेख आठवी सदी में लिखे गए 'दशकुमारचरित' में मिलता है, जिसमें द्यूतक्रीड़ा [2] के संदर्भ में उल्लेख है कि 16000 दीनारों की बाजी में द्यूत अध्यक्ष के निर्णयानुसार आधी राशि जीतने वाले को और बाकी आधी राशि द्यूत अध्यक्ष व द्यूत सभा के कर्मचारी आपस में बांट सकते हैं।

रोम की 'दिनारियस'

रोम में भारतीय मसाले और मलमल की बेहद मांग रही थी। क़रीब पहली सदी ईसा पूर्व से लेकर चौथी-पांचवीं सदी तक रोमन साम्राज्य से भारत के कारोबारी रिश्ते रहे। भारत के पश्चिमी समुद्र तट के जरिये ये कारोबार चलता रहता था। भारतीय माल के बदले रोमन अपनी स्वर्ण मुद्रा 'दिनारियस' में भुगतान करते रहे। ये कारोबारी रिश्ते इतने फले- फूले की दिनारियस 'दीनार' के रूप में लंबे अर्से तक लेन-देन का जरिया बनी रही। 98 ई. में कुषाण सम्राट कनिष्क के जमाने का एक रोमन उल्लेख महत्त्वपूर्ण है- "भारतवर्ष हर साल मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ रोम से साढ़े पांच करोड़ का सोना खींच लेता है।" जाहिर है यह आंकड़ा रोमन स्वर्ण मुद्रा दिनारियस के संदर्भ में बताया गया है। [1]

राजकीय मुद्रा

अपने रोमन रूप में दीनार का मूल्य क़रीब साढ़े चार ग्राम स्वर्ण के बराबर था। आज दुनिया के तमाम मुल्कों में दीनार धातु की मुद्रा की बजाय काग़ज़ के नोट के रूप में डटी हुई है। बाद के सालों में रोम से ऐसे ही कारोबारी रिश्तों के चलते दीनार ईरान और कुछ अरब मुल्कों में भी प्रचलित हुई और अब तक डटी हुई है। यही नहीं अरब मुल्कों समेत दीनार सर्बिया, युगोस्लाविया, बोस्निया-हर्जेगोविना, अल्जीरिया, यमन, ट्यूनीशिया, सुडान और मोंटेनेग्रो जैसे देशों की भी राजकीय मुद्रा है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि भारत से गायब होने के बावजूद हिन्दी के शब्दकोशों में आज भी दीनार संस्कृत शब्द के रूप में स्वर्ण मुद्रा के अर्थ में विराजमान है, जबकि उर्दू-फ़ारसी शब्दकोश में यह फ़ारसी शब्द के तौर पर 'अशरफी' बन कर जमा है। लेकिन इसके रोमन मूल का कहीं भी ज़िक्र तक नहीं है। हिन्दी में इसका एक रूप 'दिनार' भी है। [1]

सबसे महंगी दीनार

यदि कोई यह सोचे कि विश्व की सबसे महंगी मुद्रा ब्रिटिश 'पाउंड' है तो यह ग़लतफहमी है। पाउंड एक महंगी मुद्रा तो है, लेकिन उतनी महंगी भी नहीं कि इसे विश्व की सबसे महंगी मुद्रा का खिताब दिया मुद्रा शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ जाए। दरअसल विश्व की सबसे महंगी मुद्रा एक छोटे-से देश की है, जिसके बारे में अधिक सुना नहीं जाता। यह देश है कुवैत और यहाँ की मुद्रा है- दीनार। यह दुनिया की सबसे महंगी मुद्रा है। कुवैती दीनार इतनी महंगी है कि एक दीनार 3.60 अमेरिकी डॉलर के बराबर होता है। यानी एक कुवैती दीनार 176 रुपए 73 पैसे का है। कुवैती दीनार शुरू से बहुत महंगी मुद्रा रही है, लेकिन इससे इस देश को कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यह तेल से भरपूर देश है। यह कच्चे तेल के सबसे बड़े उत्पादक देशों में शामिल है। इसे तेल के एक्सपोर्ट से अरबों डॉलर हर साल मिलते हैं, जो इसकी छोटी-सी आबादी के लिए पर्याप्त है। [3]

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