क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है

10 साल मेच्योरिटी पर 8.5% सालाना ब्याज, ‘AA’ रेटिंग; लखनऊ नगर निगम बॉन्ड के बारे में जानें सबकुछ
Lucknow Municipal Corporation Bonds: लखनऊ नगर निगम (LMC) के बॉन्ड की लिस्टिंग बीएसई पर हो गई है.
Lucknow Municipal Corporation Bonds: लखनऊ नगर निगम (LMC) के बॉन्ड की लिस्टिंग बीएसई पर हो गई है.
Lucknow Municipal Corporation Bonds: लखनऊ नगर निगम (LMC) के बॉन्ड क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है की लिस्टिंग बीएसई पर हो गई है. लिस्टिंग के मौके पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे. उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बॉन्ड के जरिए 200 करोड़ रुपये जुटाए हैं. इस बॉन्ड को रेटिंग एजेंसियों से अच्छी रेटिंग मिली है. यह बीएसई बांड प्लेटफॉर्म पर अबतक का 8वां सबसे सफल नगर निगम बॉन्ड है. लखनऊ नगर निगम बॉन्ड जारी करने वाला उत्तर भारत का पहला नगर निगम बन गया है. जानते हैं कि क्या है यह नगर निगम बॉन्ड और इसमें निवेश करने का क्या है फायदा….
8.5 फीसदी सालाना ब्याज
लखनऊ नगर निगम के बॉन्ड की मेच्योरिटी 10 साल की है. इसमें निवेश करने पर निवेशकों को 8.5 फीसदी सालाना ब्याज मिलेगा. बीएसई बॉन्ड प्लेटफॉर्म पर नगर निगम को 450 करोड़ के लिए 21 बिड मिली जो इश्यू साइज की 4.5 गुना है. यह जानकारी बीएसई ने दी है. बीएसई के अनुसार यह उसके प्लेटफॉर्म पर अबतक का 8वां सबसे सफल नगर निगम बॉन्ड है.
बेहतर रेटिंग
लखनऊ नगर निगम बॉन्ड को रेटिंग एजेंसियों से अच्छी रेटिंग मिली है. इंडिया रेंटिंग्स ने इस बॉन्ड के लिए ‘AA’ रेटिंग दी है. वहीं ब्रिकवर्क ने इसे ‘AA (CE)क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है ’ रेटिंग दी है. माना जा रहा है कि इस बॉन्ड के जरिए निवेश जुटाने में भी मदद मिलेगी.
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अबतक 11 ऐसे बॉन्ड जारी हुए
अभी तक कुल 11 नगर निगम बॉन्ड से करीब 3690 करोड़ रुपये जुटाये गये हैं. इनमें से बीएसई बॉन्ड प्लेटफॉर्म का योगदान 3,175 करोड़ रुपये है. इसके पहले अमरावती (2000 करोड़ रुपये), विशाखापत्तनम (80 करोड़ रुपये), अहमदाबाद (200 करोड़ रुपये), सूरत (200 करोड़ रुपये), भोपाल (175 करोड़ रुपये), इंदौर (140 करोड़ रुपये), पुणे (495 करोड़ रुपये), हैदराबाद (200 करोड़ रुपये) नगर निगम बॉन्ड हैं.
क्या होते हैं बॉन्ड
बॉन्ड किसी कंपनी या सरकार के लिए पैसा जुटाने का एक माध्यम है. बॉन्ड से जुटाए गया पैसा कर्ज की श्रेणी में आता है. कंपनी जहां अपने कारोबार के विस्तार के लिए बॉन्ड से पैसा जुटाती हैं तो केंद्र या राज्य सकार भी अपने खर्च के लिए समय-समय पर बॉन्ड जारी करती हैं. इसमें बॉन्ड जारी करने वाली संस्था एक निश्चित समय क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है के लिए रकम उधार लेती है और निश्चित रिटर्न यानी ब्याज देने के साथ मूलधन वापस करने की गारंटी देती है. यह निवेशकों के लिए निश्चित आय का एक निवेश साधन होता है.
क्या होते हैं म्युनिसिपल बॉन्ड
म्युनिसिपल या नगर निगम बॉन्ड शहरी स्थानीय निकायों द्वारा जारी किए जाते हैं. शहर में विकास कामों को जारी रखने के लिए धन की जरूरत इससे पूरी की जाती है. इस तरह से बॉन्ड जारी कर नगर निगम पैसा जुटाते हैं और उसे शहर के बुनियाद ढांचा विकास जैसे कार्यों पर खर्च करते हैं. मार्केट रेगुलेटर सेबी के अनुसार सिर्फ वही नगर निगम ऐसे बॉन्ड जारी कर सकते हैं, जिनका नेटवर्थ लगातार 3 वित्त वर्ष तक निगेटिव न रहा हो. पिछले एक साल में उन्होंने कोई लोन डिफाल्ट न किया हो.
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Gold bond scheme: अगर नहीं खरीदना चाहते हैं ज्वैलरी और करना चाहते हैं सोने में निवेश तो आज से मिल रहा है सस्ते में सोना खरीदने का शानदार मौका
सोने में निवेश करने वाले लोग आज से गोल्ड बांन्ड स्कीम में निवेश का फायदा उठा सकते हैं. जहां पर सस्ते में सोने में निवेश का मौका मिल रहा है.
Published: December 28, 2020 11:16 AM IST
Gold bond scheme: अगर आप सोने की ज्वैलरी नहीं खरीदना चाहते हैं और आपका मन सोने में निवेश का है तो आज से आपको मिल रहा है सोने में निवेश का शानदार मौका. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम में 28 दिसंबर 2020 से निवेश खुल गया है. केंद्र सरकार की स्कीम सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश कर आप डिजिटल गोल्ड खरीद सकते हैं.
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बता दें, चालू वित्त वर्ष के लिए सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की यह नौवीं सब्सक्रिप्शन सीरीज है. आप 28 दिसंबर 2020 से 1 जनवरी 2021 तक इस स्कीम में निवेश कर सस्ते में डिजिटली सोना खरीद सकते हैं.
यह स्कीम भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) पेश करती है. आठवीं सीरीज के मुकाबले इस बार आपको सोने में कम भाव पर निवेश करने का मौका मिल रहा है. आठवीं सीरीज में सोने का भाव 5177 रुपये प्रति ग्राम तय किया गया था.
सरकारी क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है गोल्ड बॉन्ड की कीमत बाजार में चल रहे सोने के भाव से कम होती है. बॉन्ड के रूप में आप सोने में न्यूनतम एक ग्राम और अधिकतम चार किलो तक निवेश कर सकते हैं. इस पर टैक्स छूट भी मिलती है. गोल्ड बांड स्कीम पर बैंक से लोन भी लिया जा सकता है.
बॉन्ड पर सालाना ढाई फीसदी का रिटर्न मिलता है. गोल्ड बॉन्ड में किसी तरह की धोखाधड़ी और अशुद्धता की संभावना नहीं होती. गोल्ड बॉन्ड 8 साल के बाद मैच्योर होते हैं. 8 साल के बाद इसे भुनाकर पैसा निकाला जा सकता है. निवेश के पांच साल के बाद इससे बाहर निकलने का विकल्प भी होता है.
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक के मुताबिक इस बार गोल्ड बॉन्ड की कीमत 5,000 रुपये प्रति ग्राम तय की गई है. हर बार की तरह इस बार भी ऑनलाइन आवेदन करने वाले निवेशकों को बॉन्ड की तय कीमत पर प्रति ग्राम 50 रुपये की छूट दी जाएगी. अगर आप सोना खरीदने के लिए डिजिटल भुगतान करते हैं तो आपको एक ग्राम सोने के लिए 4950 रुपये का भुगतान करना होगा.
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Cryptocurrency : क्रिप्टो में निवेश करें या स्टॉक, बॉन्ड, गोल्ड जैसे विकल्प ही बेहतर होंगे?
Cryptocurrency Investment : स्टॉक, बॉन्ड, गोल्ड जैसे कई पारंपरिक विकल्प मौजूद हैं, लेकिन अब क्रिप्टोकरेंसी भारत में भी निवेशकों को अपनी ओर खींच रही है. लेकिन हम एक बार नजर डालते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी, पहले से मौजूद ट्रेडिशनल ऑप्शन्स से कितनी अलग है.
Cryptocurrency और निवेश के ट्रेडिशनल टूल्स में हैं कई फर्क और नफे-नुकसान. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
भारत में जब निवेश की बात आती है तो निवेशक ऐसे विकल्प चुनना चाहते हैं, जहां उन्हें एक निश्चित अवधि में कम रिस्क के साथ ज्यादा रिटर्न मिल जाए. स्टॉक, बॉन्ड, गोल्ड जैसे कई पारंपरिक विकल्प मौजूद हैं, लेकिन अब क्रिप्टोकरेंसी भारत (Cryptocurrency in India) में भी निवेशकों को अपनी ओर खींच रही है. भविष्य में क्रिप्टोकरेंसी की अहमियत को बढ़ता देखकर यहां इसकी स्टोर वैल्यू के लिए निवेश बढ़ रहा है. रिजर्व बैंक (RBI) ने 2018 में डिजिटल करेंसी फ्रॉड के डर से सभी बैंकों पर क्रिप्टोकरेंसी ट्रांजैक्शन करने पर बैन लगा दिया था. हालांकि, 2020 के मार्च महीने में सुप्रीम कोर्ट ने इस बैन को निरस्त कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट के इस रुख के बाद से भारत में क्रिप्टोकरेंसी का बड़ा बाजार तैयार किया है. लेकिन हम एक बार नजर डालते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी, पहले से मौजूद ट्रेडिशनल ऑप्शन्स से कितनी अलग है.
क्रिप्टोकरेंसी vs स्टॉक
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क्रिप्टोकरेंसी और स्टॉक मार्केट में क्या फर्क है, इससे शुरू करते हैं. दोनों ही बाजार में अच्छे-बुरे दिन देखने को मिलते हैं. हालांकि, स्टॉक मार्केट का इतिहास लंबा है, इससे निवेशकों को आगे का रुख तय करने में मदद मिलती है, वो ट्रेंड्स और प्रिडिक्शन के लिए इन आंकड़ों की मदद लेते हैं, लेकिन क्रिप्टोकरेंसी का बाजार अभी काफी नया है. यहां उतने आंकड़ों का सहारा नहीं होता. स्टॉक मार्केट में कई तरह के रिस्क होते हैं, बिजनेस, फाइनेंशियल, बाजार में वॉलेटिलिटी यानी अस्थिरता, सरकार का नियंत्रण और नियमन वगैरह जैसी चीजें हैं, जो इस बाजार को प्रभावित करती हैं. लेकिन क्रिप्टोकरेंसी का इकोसिस्टम डिसेंट्रलाइज्ड है, यानी अधिकतर करेंसी को कोई सरकार या कोई समूह या संस्था कंट्रोल नहीं करती है.
क्रिप्टोकरेंसी vs बॉन्ड्स
बॉन्ड्स भी निवेश का एक माध्यम होते हैं. ये एक तरह से किसी कंपनी या सरकार की ओर से किसी निवेशक से लिए जाने वाले लोन की तरह होते हैं. यानी कि जब कोई निवेशक किसी कंपनी से या सरकार से कोई बॉन्ड खरीदता है तो वो कंपनी या सरकार उसके कर्ज में आ जाती है. जब तक वो कंपनी या सरकार उस निवेशक का लोन नहीं चुकाती है, तब तक उसे इसपर ब्याज मिलता रहता है. बॉन्ड के साथ रिस्क वाली बात यह है कि अगर कंपनी दिवालिया हो जाती है तो एक तो उसे ब्याज मिलना बंद हो जाएगा, दूसरा उसका मूलधन भी डूब जाएगा.
क्रिप्टोकरेंसी vs फॉरेक्स
फॉरेक्स या फॉरेन एक्सचेंज, में निवेशक विदेशी करेंसीज़ में निवेश करते हैं. क्रिप्टोकरेंसी दुनिया भर में कई जगहों पर पेमेंट के तौर पर स्वीकार की जाने वाली करेंसी है और फॉरेक्स में निवेशक भी ग्लोबल बाजार से डील करते हैं. लेकिन जो बड़ा फैक्टर है वो अलग-अलग देशों की आर्थिक स्थिति. निवेशकों को किसी भी फॉरेन करेंसी से अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना तभी होती है, जब उस देश की अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही हो, इसी आधार पर यह देखा जा सकता है कि उन्हें कितना लाभ हो रहा है. ऐसे में क्रिप्टोकरेंसी के मुकाबले यह माध्यम थोड़ा रिस्की है.
क्रिप्टोकरेंसी vs सोना-चांदी
सोना-चांदी खरीदना हमारे देश की पसंद के अलावा एक परंपरा भी रही है. आज के वक्त में लोग इन बहुमूल्य धातुओं में विशेषतौर पर आभूषण वगैरह खरीदने के लिए लिहाज से निवेश करते हैं. ऐसे में इनकी कीमत तय करने में मार्केट सेंटिमेंट यानी बाजार की धारणा सबसे बड़ी भूमिका निभाता है. अगर रिस्क की बात करें तो इनमें जो निगेटिव पॉइंट है वो है- पोर्टेबिलिटी, इंपोर्ट टैक्स और इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना. वहीं, क्रिप्टोकरेंसी के साथ ऐसा कुछ नहीं है. ये डिजिटल करेंसी है, न इसे कहीं से लाना-ले जाना है, न ही आपको इसपर कोई इंपोर्ट टैक्स देना है. इसकी सिक्योरिटी भी डिजिलाइज्ड क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है है, ऐसे में इन कारणों से क्रिप्टो, मेटल्स के मुकाबले ज्यादा आसान निवेश माध्यम है.
क्रिप्टोकरेंसी vs फिक्स्ड डिपॉजिट
फिक्स्ड डिपॉजिट तब सही होते हैं, जब आपको कोई लॉन्ट टर्म इन्वेस्टमेंट करना हो. इसमें आपको रिटर्न के लिए मैच्योरिटी तक इंतजार करना पड़ता है. अगर आप रिटर्न के लिए लंबा इंतजार नहीं करना चाहते या एफडी का विकल्प छोड़ रहे हैं तो आप क्रिप्टोकरेंसी में निवेश कर सकते हैं. यहां बाजार में तेजी-से उतार-चढ़ाव आता है और आप तेजी से फैसले ले क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है सकते हैं. यहां बाजार के गिरने पर आप अपना पैसा निकाल सकते हैं. लेकिन एक बात जो जाननी चाहिए वो ये कि एफडी को माइन करने या जेनरेट क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है करने के लिए किसी को अलग से कुछ नहीं करना पड़ता. बस एफडी बनवाई और मैच्योरिटी तक भूल गए. लेकिन क्रिप्टोकरेंसी को सर्कुलेशन में लाने के लिए माइनिंग की जाती है. निवेशकों को इनपर अपना वक्त देना होता है क्योंकि बाजार में काफी अनिश्चितता होती है.
निवेश के ट्रेडिशनल टूल्स में लोग सहज महसूस कर सकते हैं क्योंकि इनकी आदत हैं. वहीं क्रिप्टोकरेंसी का बाजार नया है और इसके अपने अलग फायदे और नुकसान हैं, ऐसे में आपको समझदारी से अपना चुनाव करना चाहिए.
WATCH VIDEO : कॉफी एंड क्रिप्टो : क्रिप्टोकरेंसी में अच्छा क्या है? किस में कर सकते हैं ट्रेडिंग?
क्यों प्रधानमंत्री नहीं कर सकते हैं वित्तीय आपातकाल की घोषणा
विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार के पास धन की व्यवस्था करने के लिए कई उपकरण हैं और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह आपातकालीन प्रावधानों को लागू नहीं करेगा क्योंकि इससे विदेशी निवेशकों की आँखों में देश की छवि धूमिल होगी.
नई दिल्ली: संवैधानिक और आर्थिक मुद्दों पर दो विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केंद्र सरकार के कमजोर वित्त के बावजूद कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है की संभावना नहीं है.
विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार के पास धन की व्यवस्था करने के लिए कई उपकरण हैं और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह आपातकालीन प्रावधानों को लागू नहीं करेगा क्योंकि इससे विदेशी निवेशकों की आँखों में देश की छवि धूमिल होगी.
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा, "इटली, स्पेन, यूके और यूएसए जैसे देश, जिन्होंने भारत की तुलना में बहुत अधिक नुकसान झेला है, ने वित्तीय आपातकाल घोषित नहीं किया है."
अत्यधिक संक्रामक कोविड-19, जिसे कोरोना वायरस के नाम से भी जाना जाता है, के कारण होने वाली वैश्विक महामारी ने देश में 200 से अधिक लोगों और दुनिया भर में 90,000 से अधिक लोगों की जान ले ली है. अत्यधिक संक्रामक वायरस ने प्रभावित लोगों की औसत मृत्यु दर के साथ दुनिया में 1.5 मिलियन से अधिक लोगों को संक्रमित किया है.
देश में वायरस के प्रसार को धीमा करने के लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने 21 दिनों के पूर्ण क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है लॉकडाउन की घोषणा की जिसने आर्थिक गतिविधि को बाधित कर दिया. अभूतपूर्व चुनौती से निपटने के लिए, केंद्र सरकार ने पिछले महीने भारत के 80 करोड़ गरीब लोगों के लिए 1.7 लाख करोड़ (23 बिलियन डॉलर) राहत पैकेज की घोषणा की.
कोरोना के प्रकोप ने केंद्र सरकार को संसद के सदस्यों के वेतन में कटौती करने और अपने स्थानीय क्षेत्र विकास निधि (एमपीलैड फंड) को दो साल के लिए निलंबित करने के लिए मजबूर किया ताकि मुश्किल समय पर धन की व्यवस्था की जा सके.
इससे यह अटकलें शुरू हो गईं कि सरकार संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकती है क्योंकि यह प्रावधान केंद्र को अपने कर्मचारियों और अन्य संवैधानिक कार्यालयों के वेतन को कम करने और राज्यों के बजट और व्यय को नियंत्रित करने के लिए व्यापक अधिकार देता है.
पीडीटी आचार्य ने ईटीवी भारत को बताया, "अगर आप (सरकार) वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने की सोच रहे हैं तो आप पूरी दुनिया को विज्ञापन दे रहे हैं कि भारत सरकार के पास कोई क्रेडिट नहीं है, इसकी कोई वित्तीय स्थिरता नहीं है."
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा ने भी संविधान के अनुच्छेद क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है 360 के तहत वित्तीय आपातकाल लागू करने की संभावना से इनकार किया.
यूपीए सरकार के दौरान योजना आयोग में सचिव स्तर पर काम करने वाले संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि कई कारणों से वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने की कोई संभावना नहीं है.
संतोष मेहरोत्रा ने ईटीवी भारत को बताया, "सरकार को इस समय क्या चाहिए? इसकी जेब में और पैसे की जरूरत है और इसमें कई उपकरण हैं जो इसे इस उद्देश्य के लिए तैनात कर सकते हैं."
उन्होंने कहा कि 1 लाख करोड़ रुपये, जो कि सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) के साथ उपलब्ध है, का उपयोग कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, "यह 1 लाख करोड़ रुपये है, जो देश की जीडीपी का आधा प्रतिशत है."
उन्होंने सरकार के लिए उपलब्ध विभिन्न विकल्पों के बारे में बात करते हुए समझाया, "अगर सरकार का उद्देश्य एक उद्देश्य से दूसरे पर स्विच करने में खर्च हो रहा है, तो सरकार को पीएफएमएस में क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है पहले से ही उपलब्ध धन को जुटाने से रोकने वाली कोई चीज नहीं है."
उन्होंने कहा कि पीएफएमएस में उपलब्ध धन का उपयोग करने के अलावा, सरकार के पास कई अन्य उपकरण हैं: यह ट्रेजरी बॉन्ड जारी कर सकता है, यह राज्यों को अधिक धन उधार लेने की अनुमति भी दे सकता है और बड़े शहरी स्थानीय निकायों को भी धन जुटाने के लिए बॉन्ड जारी करने की अनुमति दी जा सकती है.
संतोष मेहरोत्रा और पीडीटी आचार्य भी अंतरराष्ट्रीय नतीजों की ओर इशारा करते हैं जो सरकार द्वारा वित्तीय आपातकाल घोषित किए जाने के बाद होगा.
उन्होंने कहा कि इस तरह के किसी भी कदम से देश की छवि विदेशों में धूमिल हो जाएगी क्योंकि सरकार इस बात पर गर्व करती है कि देश दुनिया की सबसे तेजी से उभरती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है और यह फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है.
पीडीटी आचार्य ने ईटीवी भारत को बताया, "अगर हम वित्तीय आपातकाल की घोषणा करते हैं तो इसके अंतरराष्ट्रीय नतीजे होंगे. यह विदेशी निवेश और कई सारी चीजों को प्रभावित करेगा."