बाइनरी वैकल्पिक व्यापार की मूल बाते

वायदा अनुबंध क्या है

वायदा अनुबंध क्या है
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वायदा अनुबंध क्या है

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड शेयर खरीद बिक्री के मामले में खुदरा निवेशकों को सुरक्षित रखने के लिए लगातार काम कर रहा है। इक्विटी डेरिवेटिव्स में कारोबार के लिए अनुबंध का न्यूनतम आकार 2 लाख रुपये से 5 लाख रुपये और फिर इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 10 लाख रुपये करने का इसका हालिया प्रस्ताव इन निवेशकों के लिए बेहतर रहेगा। डेरिवेटिव्स कारोबार शुरू होने के बाद यह पहला मौका होगा जब न्यूनतम अनुबंध के आकार में फेरबदल किया जाएगा। डेरिवेटिव्स से छोटे निवेशकों को दूर रखने के लिए सेबी पहले ही वायदा-विकल्प के छोटे अनुबंध को समाप्त कर चुका है।

डेरिवेटिव्स जोखिम से बचाव करने वाला उपकरण है। उदाहरण के लिए, किसी निवेशक का नकदी बाजार में पोजीशन है तो वह अपने बाजार जोखिम या कीमत जोखिम को घटा सकता है और इसके लिए उसे वायदा अनुबंध में उल्टी दिशा में पोजीशन लेनी होती है। इसमें कम पूंजी के जरिए ज्यादा बड़ा पोजीशन बनाने की अनुमति मिलती है यानी हम 10-20 फीसदी के मार्जिन से पोजीशन ले सकते हैं। क्या अनुबंध का आकार बढ़ाने से निवेशकों को फायदा होगा? इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम अप्रत्यक्ष तौर पर निवेशकों को यह संदेश देने के लिए हो सकता है कि डेरिवेटिव्स में कारोबार के दौरान उन्हें अतिरिक्त सतर्कता बरतने की दरकार है। एक निवेश विश्लेषक अरुण केजरीवाल ने कहा, डेरिवेटिव्स काफी ज्यादा जोखिम वाला क्षेत्र है। यह उन निवेशकों को दूर रखने का अच्छा जरिया है, जिनके पास क्षमता नहीं है या फिर वे ज्यादा जोखिम नहीं ले सकते हैं।

साल 2012 में बाजार नियामक ने पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस (पीएमएस) में निवेश की सीमा 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये कर दी थी। यह छोटे निवेशकों को इस क्षेत्र से दूर रखने के लिए उठाया गया था क्योंकि यह म्युचुअल फंड उद्योग की तरह सख्ती के साथ विनियमित नहीं है। इसी तरह नियामक ने एसएमई क्षेत्र के शेयरों में निवेश के लिए अनुबंध का न्यूनतम आकार 1 लाख रुपये से दो लाख रुपये के बीच तय किया है, ताकि इस क्षेत्र की जानकारी न रखने वाले निवेशक इसमें प्रवेश न करें। एक अनुमान के मुताबिक, एफऐंडओ क्षेत्र में 95 फीसदी निवेशक खुदरा क्षेत्र के हैं और इसमें वायदा अनुबंध क्या है से 80 फीसदी के पोर्टफोलियो का आकार 10 लाख रुपये से कम का है। ऐंजल ब्रोकिंग के प्रमुख (इक्विटी डेरिवेटिव्स) सिद्धार्थ भांमरे ने कहा, ऐसे लोगों को अपने पोर्टफोलियो की हेजिंग से वंचित किया जाएगा। आज निवशक अपने पोर्टफोलियो के लिए बाजार में पुट ऑप्शन की खरीद या कॉल ऑप्शन की बिक्री के जरिए हेजिंग कर सकते हैं।

अनुबंध के आकार में इजाफे से लागत बढ़ेगी और फिर इससे नकदी प्रभावित होगी। उदाहरण के लिए 10 फीसदी मार्जिन पर 2 लाख का वायदा अनुबंध खरीदने के लिए निवेशक को आज 20,000 रुपये देने होते हैं। अनुबंध का आकार 5 लाख रुपये या 10 लाख रुपये करने पर निवेशक को 50,000 रुपये का एक लाख रुपये अग्रिम देने होंगे। ऑप्शन में अगर आप 500 के लॉट साइज के लिए 5 रुपये प्रीमियम चुका रहे हैं तो आप अभी 2500 रुपये चुका रहे हैं। आने वाले दिनों में निवेश को नए अनुबंध के आकार के मुताबिक 5,000 रुपये या 12,000 रुपये देने होंगे। केजरीवाल ने हालांकि कहा कि नई पाबंदी लागू होने के बावजूद खुदरा निवेशक इस व्यवस्था का तोड़ निकाल सकते हैं।

सेबी ने गेहूं सहित 7 कमोडिटीज़ के वायदा कारोबार पर लगाया प्रतिबंध, जानिए आप पर क्या होगा असर

धान (गैर-बासमती), गेहूं, सोयाबीन, कच्चे पाम तेल और मूंग के लिए नए अनुबंधों की शुरूआत पर नियामक ने अगले आदेश तक रोक लगा दी है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: December 20, 2021 13:14 IST

सेबी ने गेहूं सहित 7. - India TV Hindi News

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सेबी ने गेहूं सहित 7 कमोडिटीज़ के वायदा कारोबार पर लगाया प्रतिबंध, जानिए आप पर क्या होगा असर

Highlights

  • गेहूं, कच्चे पाम तेल, मूंग में नए डेरिवेटिव अनुबंध शुरू नहीं करने का निर्देश
  • एग्री कमोडिटी के वायदा कॉन्ट्रैक्ट में कारोबार को एक साल के लिए निलंबित
  • सरकार चाहती है कि दलहन और तिलहन की कीमतें काबू में रहें

नयी दिल्ली। बाजार नियामक सेबी ने सोमवार को शेयर बाजारों को अगले आदेश तक गेहूं, कच्चे पाम तेल, मूंग और कुछ अन्य जिंसों में नए डेरिवेटिव अनुबंध शुरू नहीं करने का निर्देश दिया। इसके साथ सरकार की कोशिश महंगाई पर काबू पाने की है। वित्त मंत्रालय ने कुछ एग्री कमोडिटी के वायदा कॉन्ट्रैक्ट में कारोबार को एक साल के लिए निलंबित कर दिया है।

एक विज्ञप्ति के अनुसार ये निर्देश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे। धान (गैर-बासमती), गेहूं, सोयाबीन, कच्चे पाम तेल और मूंग के लिए नए अनुबंधों की शुरूआत पर नियामक ने अगले आदेश तक रोक लगा दी है। सूची में चना, और सरसों के बीज और इसके डेरिवेटिव भी शामिल हैं। इन जिंसों में डेरिवेटिव अनुबंधों को इस साल की शुरुआत में निलंबित कर दिया गया था। सेबी के आदेश के तहत पहले से चल रहे अनुबंधों के संबंध में कोई भी नया सौदा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और केवल सौदे को पूरा करने की अनुमति होगी। बयान के मुताबिक ये निर्देश एक साल के लिए लागू होंगे।

किन जिंसों के वायदा पर प्रतिबंध

सरकार ने 7 एग्री कमोडिटी के वायदा पर रोक लगाई है। इसके तहत सोयाबीन और इसके डेरिवेटिव प्रोडक्ट्स पर प्रतिबंध, मूंग, चना, क्रूड पाम तेल सरसों, धान (गैर-बासमती), गेहूं पर 1 साल तक रोक, 20 दिसंबर से नई पोजीशन लेने पर रोक लगी है। निवेशकों के पास मौजूदा सौदे को सिर्फ खत्म करने की इजाजत है। अगले आदेश तक फ्यूचर्स-ऑप्शंस के नए कॉन्टैक्ट लॉन्च नहीं होंगे।

क्यों लगा प्रतिबंध?

महंगाई के आंकड़ सरकार को परेशान करने वाले हैं। सरकार चाहती है कि दलहन और तिलहन की कीमतें काबू में रहें। इसके चलते सरकार ने यह कदम उठाया है। इनकी कीमतों को काबू में करने के लिए सरकार ने इन कमोडिटीज के वायदा कारोबार पर रोक लगाई है। सरकार के इस फैसले से वायदा बाजार का संतुलन कमजोर होगा।

डेली न्यूज़

हाल ही में इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (Indian Council for Research on International Economic Relations-ICRIER) द्वारा किये गए अध्ययन से सामने आया है कि वायदा बाज़ारों (Future Markets) में व्यापार करने के लिये किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organizations-FPOs) को सशक्त बनाने की ज़रूरत है।

सेबी का आदेश : पांच जिंसों में एक साल तक वायदा कारोबार पर रोक, महंगाई थामने के लिए पहली बार उठाया कदम

साल की शुरुआत में भी सरकार ने चना और सरसों के बीच में वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी। फैसले के बाद नेशनल कमोडिटी डेरिवेटिव एक्सचेंज ने कहा कि अगले आदेश तक इन जिंसों में कोई भी नया अनुबंध जारी नहीं किया जाएगा।

सेबी

खाद्य महंगाई के बढ़ते दबाव से निपटने के लिए सरकार ने वायदा कारोबार पर रोक लगा दी है। बाजार नियामक सेबी ने सोमवार को बताया कि पाम, मूंग, गेहू सहित पांच कमोडिटी के वायदा कारोबार को एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नोटिफिकेशन के मुताबिक, 2003 में इन खाद्य उत्पादों में वायदा कारोबार शुरू किए जाने के बाद पहली बार इस पर रोक लगाई है।

इसका मकसद खुदरा बाजार में खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों पर काबू पाना है। आदेश के तहत धान (गैर बासमती), गेहूं, सोयाबीन और इसके डेरिवेटिव, कच्चे पाम तेल व मूंग का वायदा कारोबार एक साल तक प्रतिबंधित रहेगा। नए फैसले के बाद वायदा कारोबार से बाहर रहने वाले कुल नौ उत्पाद वायदा अनुबंध क्या है हो जाएंगे।

साल की शुरुआत में भी सरकार ने चना और सरसों के बीच में वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी। फैसले के बाद नेशनल कमोडिटी डेरिवेटिव एक्सचेंज ने कहा कि अगले आदेश तक इन जिंसों में कोई भी नया अनुबंध जारी नहीं किया जाएगा। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज पर भी कारोबार प्रतिबंधित रहेगा।

फैसले के तीन बड़े असर

  • 20 दिसंबर से नई पोजीशन लेने पर रोक।
  • मौजूदा सौदे को ही खत्म करने की इजाजत।
  • अगले आदेश तक नए अनुबंध नहीं होंगे।

कम हो सकती है खाद्य महंगाई दर
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के खुदरा शोध प्रमुख दीपक जसानी ने कहा, घरेलू जिंसों के व्यापार में कमी और आयात बढ़ने के बाद आने वाले समय में खाद्य महंगाई नीचे आ सकती है। नवंबर में खुदरा महंगाई दर 4.91% व थोक महंगाई 14.23% पहुंच गई थी।

इसलिए प्रतिबंध की जरूरत
खाद्य तेल व्यापार महासंघ के अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया कि बड़े सटोरिए वायदा कारोबार के जरिये जरूरी कमोडिटीज पर नियंत्रण बनाते हैं। बढ़ती खाद्य महंगाई से इनके वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग की थी।

कारोबारियों की राय
प्रतिबंध लगाना सरकार का पिछड़ा हुआ कदम है। इससे एग्री कमोडिटी बाजार पर नकारात्मक असर पड़ेगा और बाजार भागीदारों का भरोसा भी कम होगा। -केवी सिंह उपाध्यक्ष, ओरिगो कमोडिटीज

सेबी की रोक के बाद कमोडिटी एक्सचेंज पर सोयाबीन, पाम, सरसों में कारोबार नहीं होगा और ये जिंस बाजार में आएंगी। इससे तिलहन सस्ता होगा। -अतुल चतुर्वेदी, अध्यक्ष भारतीय खाद्य तेल संगठन

विस्तार

खाद्य महंगाई के बढ़ते दबाव से निपटने के लिए सरकार ने वायदा कारोबार पर रोक लगा दी है। बाजार नियामक सेबी ने सोमवार को बताया कि पाम, मूंग, गेहू सहित पांच कमोडिटी के वायदा कारोबार को एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नोटिफिकेशन के मुताबिक, 2003 में इन खाद्य उत्पादों में वायदा कारोबार शुरू किए जाने के बाद पहली बार इस पर रोक लगाई है।

इसका मकसद खुदरा बाजार में खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों पर काबू पाना है। आदेश के तहत धान (गैर बासमती), गेहूं, सोयाबीन और इसके डेरिवेटिव, कच्चे पाम तेल व मूंग का वायदा कारोबार एक साल तक प्रतिबंधित रहेगा। नए फैसले के बाद वायदा कारोबार से बाहर रहने वाले कुल नौ उत्पाद हो जाएंगे।

साल की शुरुआत में भी सरकार ने चना और सरसों के बीच में वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी। फैसले के बाद नेशनल कमोडिटी डेरिवेटिव एक्सचेंज ने कहा कि अगले आदेश तक इन जिंसों में कोई भी नया अनुबंध जारी नहीं किया जाएगा। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज पर भी कारोबार प्रतिबंधित रहेगा।

फैसले के तीन बड़े असर

  • 20 दिसंबर से नई पोजीशन लेने पर रोक।
  • मौजूदा सौदे को ही खत्म करने की इजाजत।
  • अगले आदेश तक नए अनुबंध नहीं होंगे।

कम हो सकती है खाद्य महंगाई दर
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के खुदरा शोध प्रमुख दीपक जसानी ने कहा, घरेलू जिंसों के व्यापार में कमी और आयात बढ़ने के बाद आने वाले समय में खाद्य महंगाई नीचे आ सकती है। नवंबर में खुदरा महंगाई दर 4.91% व थोक महंगाई 14.23% पहुंच गई थी।

इसलिए प्रतिबंध की जरूरत
खाद्य तेल व्यापार महासंघ के अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया कि बड़े सटोरिए वायदा कारोबार के जरिये जरूरी कमोडिटीज पर नियंत्रण बनाते हैं। बढ़ती खाद्य महंगाई से इनके वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग की थी।

कारोबारियों की राय
प्रतिबंध लगाना सरकार का पिछड़ा हुआ कदम है। इससे एग्री कमोडिटी बाजार पर नकारात्मक असर पड़ेगा और बाजार भागीदारों का भरोसा भी कम होगा। -केवी सिंह उपाध्यक्ष, ओरिगो कमोडिटीज


सेबी की रोक के बाद कमोडिटी एक्सचेंज पर सोयाबीन, पाम, सरसों में कारोबार नहीं होगा और ये जिंस बाजार में आएंगी। इससे तिलहन सस्ता होगा। -अतुल चतुर्वेदी, अध्यक्ष भारतीय खाद्य तेल संगठन

Spot Price- स्पॉट प्राइस

क्या है स्पॉट प्राइस?
स्पॉट प्राइस (Spot Price) यानी हाजिर कीमत किसी मार्केटप्लेस में करेंट प्राइस होती है जिसमें किसी एसेट-जैसे कि सिक्योरिटी, कमोडिटी, या करेंसी वायदा अनुबंध क्या है की तत्काल डिलीवरी के लिए खरीद या बिक्री की जा सकती है। जहां स्पॉट प्राइस समय और स्थान दोनों के लिए विशिष्ट होते हैं, वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक्सचेंज दरों के लिए लेखांकन करते समय अधिकांश सिक्योरिटीज या कमोडिटीज का स्पॉट प्राइस दुनिया भर में बहुत हद तक एकसमान रहता है। स्पॉट प्राइस के विपरीत, फ्यूचर्स प्राइस यानी वायदा कीमत एसेट के भविष्य में डिलीवरी के लिए सहमत कीमत है।

स्पॉट प्राइस की मूल बातें
स्पॉट प्राइस का संदर्भ सबसे अधिक कमोडिटी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट, जैसेकि तेल, गेहूं या सोना के लिए कॉट्रैक्ट के संबंध में दिया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योकि स्टॉक हमेशा स्पॉट पर ट्रेड करते हैं। आप उद्धृत कीमत पर किसी स्टॉक की खरीद या बिक्री करते हैं और फिर स्टॉक को नकदी के लिए एक्सचेंज कर देते हैं। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट प्राइस कमोडिटी की हाजिर कीमत, आपूर्ति और मांग में अपेक्षित बदलावों, कमोडिटी के धारक के लिए रिटर्न की जोखिम मुक्त दर और अनुबंध की परिपक्वता तिथि के संबंध में परिवहन या भंडारण की लागत का उपयोग करने के द्वारा निर्धारित की जाती है। परिपक्वता के लिए लंबे समय वाले वायदा अनुबंध के लिए नजदीक की एक्सपाइरेशन डेट वाले कॉट्रैक्ट की तुलना में अधिक भंडारण लागत होती है। हाजिर कीमतें निरंतर प्रवाह में होती हैं।

जहां सिक्योरिटी, कमोडिटी या करेंसी की हाजिर कीमत तत्काल खरीद एवं बिक्री लेनदेनों के हिसाब से महत्वपूर्ण होती है, शायद बड़े डेरिवेटिव बाजारों के संबंध में इनका अधिक महत्व होता है। ऑप्शंस, वायदा अनुबंध और अन्य डेरिवेटिव सिक्योरिटीज या कमोडिटीज के खरीदारों और विक्रेताओं को भविष्य में विशिष्ट कीमत पर लॉक-इन करने की अनुमति देता है, जब वे डिलीवर करना चाहते हैं या अंडरलाइंग एसेट का स्वामित्व लेना चाहते हैं। डेरिवेटिव के जरिए खरीदार और विक्रेता लगातार बदलती हाजिर कीमतों द्वारा उत्पन्न जोखिम के खतरे को कुछ हद तक कम कर सकते हैं। वायदा अनुबंध कृषि कमोडिटी के उत्पादकों को भी मूल्य में बदलावों के विरुद्ध अपनी फसलों के मूल्य को हेज करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम उपलब्ध कराते हैं।

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